ट्विटर पर की गई दो टिप्पणियों के लिए अवमानना के दोषी ठहराए गए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार का समय दिया था. भूषण ने अपने पूरक बयान में कहा है कि यदि वे अपने उन बयानों, जो उनके विचार में सही हैं, को वापस लेंगे या माफ़ी मांगेंगे, तो यह उनकी अंतरात्मा को गवारा नहीं होगा.
नई दिल्ली: दो ट्वीट के चलते अदालत की अवमानना के दोषी ठहराए गए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एक बार फिर इस मामले में माफी मांगने से इनकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को दायर एक सप्लीमेंट्री बयान में उन्होंने कहा कि उनकी टिप्पणियां न्यायालय को लेकर की गई ‘सार्थक आलोचना’ थी.
Advocate Prashant Bhushan issues a Supplementary Statement in the Suo Moto Contempt case initiated against him by the Supreme Court for two tweets. @pbhushan1 #ContemptofCourt pic.twitter.com/3VF1awdJrK
— Live Law (@LiveLawIndia) August 24, 2020
वकील ने कहा कि कोर्ट का कर्मचारी होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है कि जब भी उन्हें लगता है कि न्यायिक तंत्र अपने कार्यों से पीछे हट रहा है तो वे आवाज उठाएं.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए मैंने सही भावना के साथ अपनी बात रखी, किसी मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट को अपमानित करने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि एक सार्थक आलोचना की, ताकि न्यायालय संविधान की रक्षा करने और लोगों के अधिकारों को बरकार रखने की मूल जिम्मेदारियों को निभाता रहे.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने पूरे होश में ये टिप्पणी की थी और पूरी डिटेल के साथ सत्यतता की दलीलें दी, जिस पर कोर्ट ने खास ध्यान नहीं दिया. यदि मैं अपने इन बयानों को वापस लेता हूं जो मेरे विचार में सही हैं या गलत माफी मांगता हूं तो मेरी निगाह में ये मेरी अंतरात्मा और उस संस्थान के प्रति अवमानना होगी, जिसे मैं सर्वोच्च स्थान पर रखता हूं.’
Bhushan refuses to tender an apology in line with the Supreme Court order of August 20, as offering an insincere apology would amount to a contempt of his conscience and of an institution that he holds in the highest esteem. @pbhushan1 #PrashantBhushan #ContemptofCourt pic.twitter.com/mOUUu0HxZQ
— Live Law (@LiveLawIndia) August 24, 2020
भूषण ने आगे कहा, ‘मेरा मानना है कि मौलिक अधिकारों, वॉचडॉग संस्थाओं और यहां तक संवैधानिक लोकतंत्र की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट उम्मीद की आखिरी किरण होती है. इसलिए ये सही कहा गया है कि लोकतांत्रिक दुनिया में ये सबसे ताकतवर कोर्ट है. आज के कठिन समय में देश की जनता इस न्यायालय से आस लगाए बैठी है कि वे संविधान और कानून का शासन लागू करेंगे.’
मालूम हो कि बीते 20 अगस्त को अवमानना मामले में सजा निर्धारण को लेकर हुई बहस के दौरान भूषण ने अपना बयान पेश करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सहा कि वे माफी नहीं मागेंगे और न ही उनके प्रति किसी भी तरह की उदारता बरतने की अपील करते हैं.
उन्होंने कहा कि कोर्ट जो भी सजा उन्हें देगा, वह उन्हें स्वीकार होगी. वहीं, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी प्रशांत भूषण का साथ दिया और कोर्ट से अपील की कि उन्हें कोई सजा न दी जाए.
हालांकि कोर्ट ने इस पर कहा था कि जब तक भूषण अपना बयान नहीं बदलते हैं, तब तक कोर्ट उन्हें सजा देने से इनकार नहीं कर सकता है.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रशांत भूषण को उनके बयान पर पुनर्विचार करने के लिए 2-3 दिन का समय दिया.
हालांकि वरिष्ठ वकील ने तब कहा था कि उन्होंने बहुत सोच-समझकर अपना बयान पेश किया है और इस तरह बेवजह समय देना कोर्ट के समय को बर्बाद करना होना.
उन्होंने कहा कि उनके बयान में परिवर्तन होने की संभावना नहीं है. पूरी सुनवाई के दौरान पीठ इस बात पर जोर देती रही कि यदि भूषण गलती मान लेते हैं या उन्हें अपनी गलती का बोध होता है, तो कोर्ट माफ करने की दिशा में सोच सकता है.
मालूम हो कि प्रशांत भूषण के खिलाफ एक और अवमानना मामला चल रहा है, जिसमें ये आरोप लगाया गया है कि भूषण ने साल 2009 में तहलका पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि पिछले 16 मुख्य न्यायाधीशों में से कम से कम आधे भ्रष्ट थे.