बिहार फ़र्ज़ी डिग्री मामला: पांच साल में 1.10 लाख शिक्षकों की डिग्री सत्यापित नहीं हुईं

मामला बिहार में 2007 के बाद से हुई साढ़े तीन लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्तियों से संबंधित है. सतर्कता विभाग 2014 से फ़र्ज़ी डिग्री के आधार पर नियुक्तियों के आरोपों की जांच कर रहा है. अब तक राज्य का शिक्षा विभाग 1,10,418 शिक्षकों का विवरण देने में विफल रहा है.

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पटना हाईकोर्ट (फोटोः पीटीआई)

मामला बिहार में 2007 के बाद से हुई साढ़े तीन लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्तियों से संबंधित है. सतर्कता विभाग 2014 से फ़र्ज़ी डिग्री के आधार पर नियुक्तियों के आरोपों की जांच कर रहा है. अब तक राज्य का शिक्षा विभाग 1,10,418 शिक्षकों का विवरण देने में विफल रहा है.

पटना हाईकोर्ट (फोटोः पीटीआई)
पटना हाईकोर्ट (फोटोः पीटीआई)

पटना: पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 1.10 लाख से अधिक शिक्षकों, जिनकी नियुक्तियां फर्जी डिग्री के आरोपों के घेरे में हैं, की शैक्षणिक योग्यता की पुष्टि करने की प्रक्रिया पर रिपोर्ट देने के लिए 9 जनवरी की समयसीमा दी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मामला 2007 के बाद से 3,52,818 शिक्षकों की नियुक्तियों से संबंधित है.

सतर्कता विभाग 2014 से फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्तियों के आरोपों की जांच कर रहा है. अब तक राज्य का शिक्षा विभाग 1,10,418 शिक्षकों का विवरण देने में विफल रहा है.

उस समय मुखियाओं को इन नियुक्तियों का प्रभारी बनाया गया था. कथित तौर पर फर्जी शैक्षणिक और पेशेवर डिग्री के आधार पर बड़े पैमाने पर नियुक्तियां की गईं.

पटना हाईकोर्ट में एक रजत पंडित द्वारा दायर जनहित याचिका के बाद सतर्कता जांच का आदेश दिया गया था. शुक्रवार को अदालत ने राज्य सरकार को सत्यापन विवरण प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि के रूप में 9 जनवरी निर्धारित की.

अब तक 1,200 से अधिक शिक्षक, जिनकी नियुक्ति फर्जी डिग्री के आधार पर की गई थी, ने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया है और इसलिए अदालत के निर्देशों के अनुसार किसी भी कार्रवाई का सामना नहीं किया.

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील दीनू कुमार ने बताया, ‘हाईकोर्ट ने इस साल 31 जनवरी के अपने आदेश में शिक्षकों के फोल्डर के पेंडेंसी के आंकड़ों का उल्लेख किया है. हमें आश्चर्य है कि शिक्षा विभाग अदालत को विवरण क्यों नहीं दे पा रहा है. भले ही 1.10 लाख से अधिक शिक्षकों की शिक्षा की डिग्री की जांच नहीं की गई है, फिर भी वे सेवा कर रहे हैं और अपनी सैलरी पा रहे हैं.’

कुमार ने कहा कि राज्य शिक्षा विभाग ने 2008 में शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता का सत्यापन अनिवार्य कर दिया था. उन्होंने कहा, ’12 साल बाद भी कुछ नहीं हुआ है.’

26 अगस्त, 2019 को जारी एक आदेश में जस्टिस शिवाजी पांडे और जस्टिस अनीति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने कहा था, ‘सतर्कता (विभाग) एक विस्तृत काउंटर हलफनामा दायर करें, रिकॉर्ड पर लाएं कि जांच को समाप्त करने के लिए कितना समय लगेगा और उन शिक्षकों की पहचान करें जो अभी भी फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर जारी हैं. राज्य एक जवाबी हलफनामा भी दाखिल करेगा, जिसमें बताया गया है कि सतर्कता विभाग द्वारा रिपोर्ट किए गए लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है और उन लोगों के खिलाफ क्या कदम उठाए गए हैं जो इस अदालत द्वारा दी गई सामान्य माफी से कवर नहीं किए गए हैं.’

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