विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा है कि गणतंत्र दिवस पर हिंसा की घटनाओं, लाल क़िले में तोड़फोड़ ने भारत में उसी तरह की भावनाएं और प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं, जैसा छह जनवरी को अमेरिका में कैपिटल हिल घटना के बाद देखने को मिला था.
नई दिल्ली: भारत में जारी किसान आंदोलन पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में अमेरिका के नए प्रशासन ने बीते गुरुवार को कहा कि वह दोनों पक्षों के बीच वार्ता के जरिये मतभेदों के समाधान को प्रोत्साहित करता है और शांतिपूर्ण प्रदर्शन किसी भी ‘जीवंत लोकतंत्र की निशानी’ होती है.
इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत ने लाल किले की घटना की तुलना अमेरिका के संसद भवन ‘कैपिटल बिल्डिंग’ पर हुए हमले से की.
अमेरिका ने इसके साथ ही भारत सरकार के कदमों का समर्थन भी किया और कहा कि इनसे भारतीय बाजारों की क्षमता में सुधार हो सकता है तथा व्यापक निवेश आकर्षित हो सकता है. इस टिप्पणी को भारत ने कृषि सुधारों की दिशा में सरकार के कदमों को मिली मान्यता के रूप में देखा.
अमेरिका ने यह भी कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन और इंटरनेट तक निर्बाध पहुंच किसी भी ‘सफल लोकतंत्र की विशेषता’ है.
दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन से संबंधित सवालों के जवाब में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने वाॅशिंगटन में और अमेरिकी दूतावास ने दिल्ली में ये टिप्पणियां कीं.
इसके कुछ घंटे बाद ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने टिप्पणियों का संज्ञान लिया है और उन्हें संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखना महत्वपूर्ण है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि किसी भी प्रदर्शन को लोकतांत्रिक आचार एवं राजनीतिक व्यवस्था के संदर्भ में तथा गतिरोध खत्म करने के लिए सरकार एवं संबद्ध किसान संगठनों के प्रयासों को अवश्य ही देखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘गणतंत्र दिवस पर 26 जनवरी को हिंसा की घटनाओं, लाल किले में तोड़फोड़ ने भारत में उसी तरह की भावनाएं और प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं, जैसा कि छह जनवरी को (अमेरिका में) ‘कैपिटल हिल’ घटना के बाद देखने को मिला था. साथ ही, भारत में हुई घटनाओं से हमारे संबद्ध स्थानीय कानूनों के मुताबिक निपटा जा रहा है.’
मालूम हो कि अमेरिकी चुनाव में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हार के परिणाम को बदलने के प्रयास में सैकड़ों की तादाद में ट्रंप के समर्थक कैपिटल बिल्डिंग में इकट्ठे हो गए थे, जिसके बाद ट्रंप समर्थकों और पुलिस में हिंसक झड़पें हुई थीं.
श्रीवास्तव ने कहा, ‘हमने अमेरिकी विदेश विभाग की टिप्पणियों पर गौर किया है. इस तरह की टिप्पणियों को उसी संदर्भ में देखने की जरूरत है, जिस संदर्भ में वे की गई हैं और उन्हें संपूर्णता में देखे जाने की भी आवश्यकता है.’
उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका साझा मूल्यों वाले अनूठे लोकतंत्र हैं.
श्रीवास्तव ने कहा, ‘एनसीआर क्षेत्र के कुछ हिस्सों में इंटरनेट सेवाओं तक पहुंच के सिलिसले में कुछ अस्थायी कदम उठाए गए थे, जो और अधिक हिंसा को रोकने के उद्देश्य से थे.’
उन्होंने कहा कि अमेरिकी विदेश विभाग ने कृषि सुधारों की दिशा में भारत द्वारा उठाए गए कदमों का समर्थन किया है.
इससे पहले, अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम मानते हैं कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन किसी भी सफल लोकतंत्र की विशेषता है और भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी यही कहा है. हम पक्षों के बीच किसी भी मतभेद का समाधान वार्ता के जरिये करने को प्रोत्साहित करते हैं.’
वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने वाॅशिंगटन में कहा, ‘अमेरिका उन कदमों का स्वागत करता है, जिससे भारत के बाजारों की क्षमता में सुधार होगा और निजी क्षेत्र की कंपनियां व्यापक निवेश के लिए आकर्षित होंगी.’
प्रदर्शन स्थलों पर इंटरनेट संबंधी प्रतिबंधों के बारे में अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारा मानना है कि इंटरनेट सहित सूचना तक निर्बाध पहुंच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बुनियाद है तथा किसी भी सफल लोकतंत्र की विशेषता है.’
अमेरिका के नए प्रशासन की ओर से टिप्पणियां ऐसे समय आई हैं जब अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने अपने ट्वीट के जरिये दिल्ली की सीमाओं पर तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों को समर्थन दिया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने किसानों के प्रदर्शन पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर बुधवार को कड़ी आपत्ति जताई थी. भारत ने कहा था कि देश की संसद ने ‘सुधारवादी कानून’ पारित किया है, जिस पर ‘किसानों के एक बहुत ही छोटे वर्ग’ को कुछ आपत्तियां हैं और वार्ता पूरी होने तक कानूनों पर रोक भी लगाई गई है.
इस बीच, कई अमेरिकी सांसदों ने भारत में किसानों का समर्थन किया है.
सांसद हैली स्टीवेंस ने कहा, ‘भारत में नए कृषि कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की खबर से चिंतित हूं.’
उन्होंने एक बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के प्रतिनिधियों को सकारात्मक बातचीत के लिए प्रोत्साहित किया. अन्य सांसद इलहान उमर ने भी प्रदर्शनकारी किसानों के प्रति एकजुटता दिखाई.
किसानों के प्रदर्शन का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति कमला देवी हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने कहा है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अभी खतरे में है.
‘सिख्स पॉलिटिकल एक्शन कमेटी’ के अध्यक्ष गुरिंदर सिंह खालसा ने एक बयान में कहा, ‘ऐतिहासिक किसान आंदोलन भारत सरकार की पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ सबसे बड़ी क्रांति’ बनने जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी हाल ही में कहा था कि भारत के नए कृषि कानूनों में कृषि क्षेत्र में सुधार की दिशा में ‘उल्लेखनीय कदम’ उठाने की क्षमता है.
इसके अलावा अमेरिकी प्रतिनिधि जिम अकोस्टा, ब्रिटिश सांसद क्लॉडिया वेब, कार्यकर्ता जेमी मार्गोलिन और अभिनेता जॉन कुसक ने भी किसान आंदोलन के प्रति समर्थन जताया है.
रिहाना और थनबर्ग के बाद जहां दुनियाभर की कई अन्य हस्तियों ने भी किसानों के समर्थन में अपनी आवाज दी, वहीं दोनों को भारत में ट्रोलिंग का शिकार भी होना पड़ा.
भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि विरोध प्रदर्शन के बारे में टिप्पणी करने की जल्दबाजी से पहले तथ्यों की जांच-परख की जानी चाहिए.
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ‘खास तौर पर मशहूर हस्तियों एवं अन्य द्वारा सोशल मीडिया पर हैशटैग और टिप्पणियों को सनसनीखेज बनाने की ललक न तो सही है और न ही जिम्मेदाराना है.’
मंत्रालय की इस टिप्पणी के बाद भारतीय कलाकारों, क्रिकेटरों, गायकों इत्यादि की एक पूरी फौज खड़ी हो गई, जिन्होंने करीब एक जैसा ट्वीट करके कहा, ‘भारत अपने मसले खुद हल कर सकता है और वे किसी भी प्रोपेगैंडा के खिलाफ हैं.’
खास बात ये है कि इनमें से कई लोगों ने किसान आंदोलन पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की थी. इसमें सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार, करण जौहर जैसे लोग शामिल हैं.
वहीं कुछ कलाकारों/सेलिब्रिटीज ने इसका जवाब देते हुए कहा कि यदि किसी मसले पर विदेशियों के महज एक ट्वीट से भारत को खतरा महसूस होने लगता है, तो हमें किसी और की आलोचना करने से पहले खुद के गिरेबान में झांकने की जरूरत है.
मालूम हो कि किसान आंदोलन ने उस समय अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचा है, जब दिल्ली की सीमाओं को किले में तब्दील कर दिया गया है. पुलिस ने वाहनों की आवाजाही को रोकने के लिए कई स्तरीय बैरिकेडिंग की और इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया.
कृषि कानूनों को निरस्त करने, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देने तथा दो अन्य मुद्दों को लेकर हजारों किसान दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर डटे हुए हैं.
इस साल सितंबर में अमल में आए तीनों कानूनों को भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश किया है. उनका कहना है कि इन कानूनों के आने से बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकेंगे.
दूसरी तरफ, प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से एमएसपी का सुरक्षा कवच खत्म हो जाएगा और मंडियां भी खत्म हो जाएंगी तथा खेती बड़े कॉरपोरेट समूहों के हाथ में चली जाएगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)