महाराष्ट्र में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर सर्वाधिक जोखिम, 16 सालों में सोलह कार्यकर्ताओं की हत्या: रिपोर्ट

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 36 मामलों में आरटीआई कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न किया गया. 41 अन्य को या तो प्रताड़ित किया गया या नतीजे भुगतने की धमकी दी गई. वहीं, पुख़्ता सबूत होने के बावजूद एक भी मामले में दोषियों को सज़ा नहीं हुई.

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सतीश शेट्टी के लिए न्याय की मांग करते हुए प्रदर्शन करते आरटीआई कार्यकर्ता. (फोटो: वर्षा तोरगलकर)

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 36 मामलों में आरटीआई कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न किया गया. 41 अन्य को या तो प्रताड़ित किया गया या नतीजे भुगतने की धमकी दी गई. वहीं, पुख़्ता सबूत होने के बावजूद एक भी मामले में दोषियों को सज़ा नहीं हुई.

सतीश शेट्टी के लिए न्याय की मांग करते हुए प्रदर्शन करते आरटीआई कार्यकर्ता. (फोटो: वर्षा तोरगलकर)
सतीश शेट्टी के लिए न्याय की मांग करते हुए प्रदर्शन करते आरटीआई कार्यकर्ता. (फोटो: वर्षा तोरगलकर)

मुंबई: साल 2005 में देश में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम आने के बाद से अब तक महाराष्ट्र में कम से कम 16 कार्यकर्ता अपनी जान गंवा चुके हैं.

वहीं, 36 अन्य मामलों में आरटीआई कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न किया गया और 41 अन्य को या तो प्रताड़ित किया गया या परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई.

लेकिन पुख्ता सबूत होने के बावजूद एक भी मामले में दोषियों को सजा नहीं दिलाई जा सकी. इससे भी खराब बात यह है कि राज्य और उसकी पुलिस ने कई मामलों में हमले और हत्या का दोष कार्यकर्ताओं पर ही मढ़ दिया.

एक स्वतंत्र, गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संगठन कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) द्वारा प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट में महाराष्ट्र में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले की घटनाओं को विस्तारपूर्वक संकलित किया गया है.

आरटीआई का उपयोग करके सरकारी एजेंसियों को जवाबदेह बनाने वाले नागरिकों और कार्यकर्ताओं पर सबसे अधिक हमलों के मामले में महाराष्ट्र का बेहद खराब रिकॉर्ड है.

सीएचआरआई की रिपोर्ट में पाया गया है कि राज्य और न्यायिक हस्तक्षेपों के मामले में यह सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है.

इस शोध का नेतृत्व अनुभवी पत्रकार विनीता देशमुख और प्रसन्नकुमार केस्कर ने किया, जिन्होंने अपने करिअर का एक बड़ा हिस्सा राज्य में आरटीआई संबंधी एक्टिविज्म के बारे में लिखने के लिए समर्पित किया है.

मृतक आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी.
मृतक आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी.

यह रिपोर्ट साल 2010 में पुणे स्थित आरटीआई कार्यकर्ता सतीश शेट्टी की मौत के साथ शुरू होती है, जिनकी मोटरसाइकिल सवार दो लोगों ने एक व्यस्त सड़क पर दिनदहाड़े हत्या कर दी थी.

जब 13 जनवरी, 2010 को चाकू घोंपकर 38 वर्षीय सतीश शेट्टी की हत्या की गई थी तब उनका मानना था कि वह करोड़ों रुपये की जमीन हड़पने के घोटाले को उजागर करने की प्रक्रिया में थे.

हत्या से छह महीने पहले करीब जून-जुलाई 2009 में शेट्टी ने कथित तौर पर आइडियल रोड बिल्डर्स (आईआरबी) ग्रुप से जुड़े अवैध भूमि सौदों और भूमि घोटालों को उजागर करना शुरू कर दिया था. आईआरबी ग्रुप महाराष्ट्र में एक प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी है.

उनके अधिकांश आरटीआई दस्तावेज मावल में तहसीलदार के कार्यालय से संबंधित थे, जिसके तहत पुणे-मुंबई एक्सप्रेसवे के और उसके आसपास के कई गांव आते थे.

अपने काम के कारण शेट्टी लोगों के निशाने पर आ गए थे और उन्होंने स्थानीय पुलिस को कई शिकायतें की थीं और अपनी जान का खतरा होने को लेकर चेतावनी दी थी.

शेट्टी की मौत के 11 साल से अधिक समय बाद भी उनके भाई संदीप लगातार केस को आगे बढ़ा रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं.

शेट्टी की हत्या रहस्य में डूबी हुई है और स्थानीय पुलिस और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) दोनों ने पर्याप्त सबूतों की कमी का हवाला देते हुए क्लोजर रिपोर्ट दायर की है. उनके भाई ने सितंबर, 2019 में सीबीआई की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

रिपोर्ट में शेट्टी के करीबी दोस्त अरुण माने का भी उल्लेख किया गया है जो उनके निधन के बाद शेट्टी के मिशन को आगे ले जाने में लगे हैं.

शेट्टी की मौत के ठीक एक साल बाद माने को भी उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा था. हालांकि, वह बच गए थे लेकिन उस उत्पीड़न के कारण उन्हें एक्टिविज्म छोड़ना पड़ा था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि माने ने पारिवारिक दबाव के कारण काम छोड़ दिया था, यह वास्तव में उन दोषियों का दबाव था जिन्होंने उन्हें इस काम को छोड़ने के लिए मजबूर किया था.

भ्रष्टाचार और अनियमितता का खुलासा करती रिपोर्ट

रिपोर्ट में 12 अन्य मौतों का विवरण दिया गया है, जिनमें से प्रत्येक की या तो हत्या हुई है या तो संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई है.

रिपोर्ट कहती है कि ये व्हिसलब्लोअर एक खास तरह की एक्टिविज्म में लगे हुए थे, जिसने उन्हें एक आसान लक्ष्य बना दिया था.

कार्यकर्ता सहकारी समितियों में भ्रष्टाचार और सहकारी बैंकों में अनियमितताओं को उजागर करने, शहरी भूमि माफिया से जुड़े भूमि-कब्जे और अचल संपत्ति के घोटाले, कस्बों और शहरों में निर्माण-रियल एस्टेट माफिया का विरोध, अवैध रेत खनन को उजागर करना और शिक्षण संस्थानों के स्टाफ और प्रबंधन में अनियमितता सहित अन्य को उजागर करने में शामिल थे.

जहां उनकी हत्या किए जाने के तथ्य को स्थापित कर दिया गया लेकिन किसी भी मामले में आरोपी व्यक्तियों की पहचान नहीं की गई है, न ही उनकी हत्या का मकसद साबित हुआ.

रिपोर्ट में दर्ज लगभग सभी मौतें कम से कम कुछ साल पुरानी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य और न्यायपालिका दोनों ही इन मामलों में न्याय सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया, इस अध्ययन में सबसे चिंताजनक बात हत्यारों की पहचान और उन्हें दंडित करने में आपराधिक न्याय प्रणाली की विफलता के बारे में पता चली है. कम से कम चार मामलों में पर्याप्त सबूतों के अभाव में आरोपी बरी हो गए. इसलिए, जबकि हत्या का तथ्य निर्विवाद है, किसी को भी अपराध करने का दोषी नहीं पाया गया है. अधिकांश अन्य मामलों में मुकदमा पूरा नहीं हुआ है.

ये सभी मृतक कार्यकर्ता अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते थे लेकिन सभी न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध थे.

शेट्टी के अलावा 12 अन्य मृतक कार्यकर्ता कोल्हापुर जिले के इचलकरंजी से दत्तात्रेय पाटिल, नांदेड़ के गाडेगांव से रामदास-उबाले गाडेगांवकर, बीड से विट्ठल गीते, ठाणे जिले के विरार से प्रेमनाथ झा, मुंबई के कॉमरेड कपूरचंद गुप्ता, ठाणे से सुनील लोहारी, मुंबई से वसंत पाटिल, भिवंडी से अबरार अहमद जमील अंसारी, मुंबई के भूपेंद्र विरा, यवतमाल जिले से मोहन वाघमारे, पुणे से सुहास हल्दनकर और ठाणे जिले के शैलेश निमसे शामिल हैं.

दत्तात्रेय पाटिल, वसंत पाटिल और विट्ठल गीते के मामलों में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. सात अन्य मामलों में मुकदमा शुरू होना बाकी है.

वहीं, स्थानीय पुलिस ने गडगांवकर की हत्या के मामले को यह कहकर बंद कर दिया कि उनकी मौत अधिक शराब पीने के कारण दुर्घटनावश हुई.

रिपोर्ट में उन महिला कार्यकर्ताओं के मामलों को भी संकलित किया गया है, जिन पर उनके आरटीआई से जुड़े कामों के लिए हमला किया गया था.

जयश्री माने, दीप्ति घोषाल, सुमैरा अब्दुलाली को महाराष्ट्र में अपने आरटीआई हस्तक्षेप के कारण शारीरिक हमले का सामना करना पड़ा.

रिपोर्ट में कहा गया कि अन्य पांच महिलाओं – अमिता जायसवाल, शोभा वानखेड़े, अर्पिता साल्वे, उज्ज्वला बारवकर और अनिकता साह को आरटीआई का उपयोग करने के लिए धमकियों या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.

महाराष्ट्र पुलिस. (प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)
महाराष्ट्र पुलिस. (प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए फरवरी 2014 में संसद द्वारा लाए गए व्हिसलब्लोअर्स प्रोटेक्शन (डब्ल्यूबीपी) अधिनियम के साथ ही राज्य-स्तरीय तंत्र को सक्रिय किया जाना चाहिए.

रिपोर्ट में कहा गया है कि देशभर में आरटीआई कार्यकर्ताओं की कम से कम 86 हत्याएं हुई हैं. मीडिया द्वारा यह बताया गया कि आरटीआई एक्टिविज्म से जुड़े शारीरिक हमले के कम से कम 170 मामले (कुछ मामलों में एक ही व्यक्ति पर कई हमले) और धमकी या उत्पीड़न के 183 मामले सामने आए हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)