‘सालों के संघर्ष के बाद भर्ती परीक्षा हो, जिसमें फ़र्ज़ीवाड़ा हो जाए तो बेरोज़गार युवा क्या करेगा’

विशेष रिपोर्ट: मध्य प्रदेश में बीते महीने कृषि विभाग के पदाधिकारियों के 863 पदों पर भर्ती की परीक्षा हुई थी. परिणाम आने के बाद टॉपर्स छात्रों के एक ही कॉलेज-क्षेत्र-समुदाय से होने से लेकर एक जैसे प्राप्तांक और ग़लतियों संबंधी कई सवाल उठे, जिसे लेकर ग्वालियर एग्रीकल्चर कॉलेज के छात्र इसे दूसरा व्यापमं घोटाला कहते हुए क़रीब महीने भर से आंदोलनरत हैं.

ग्वालियर में पीईबी के प्रमुख का पुतला जलाकर प्रदर्शन करते छात्र. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

विशेष रिपोर्ट: मध्य प्रदेश में बीते महीने कृषि विभाग के पदाधिकारियों के 863 पदों पर भर्ती की परीक्षा हुई थी. परिणाम आने के बाद टॉपर्स छात्रों के एक ही कॉलेज-क्षेत्र-समुदाय से होने से लेकर एक जैसे प्राप्तांक और ग़लतियों संबंधी कई सवाल उठे, जिसे लेकर ग्वालियर एग्रीकल्चर कॉलेज के छात्र इसे दूसरा व्यापमं घोटाला कहते हुए क़रीब महीने भर से आंदोलनरत हैं.

ग्वालियर में पीईबी के प्रमुख का पुतला जलाकर प्रदर्शन करते छात्र. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)
ग्वालियर में प्रदर्शन करते छात्र. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

फरवरी 10-11, 2021. यह तारीखें मध्य प्रदेश के कृषि संकाय के छात्रों के लिए कुछ खास थीं. वो इसलिए क्योंकि कई वर्षों बाद राज्य सरकार के कृषि विभाग ने ‘ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी’ और ‘वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी’ के कुल 863 पदों पर भर्ती निकाली थी, जिसकी चयन परीक्षा उक्त तारीखों पर होनी थी.

परीक्षा कराने की जिम्मेदारी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीईबी) के जिम्मे थी. पीईबी, जो कुछ वर्षों पहले तक व्यापमं के नाम से जाना जाता था और देश के सबसे चर्चित शिक्षा जगत के घोटाले यानी व्यापमं घोटाले का सूत्रधार रहा था, उसका नाम तो बदल गया लेकिन काम नहीं बदला. यह इन परीक्षाओं ने फिर साबित कर दिया.

राज्य के 13 शहरों के 57 केंद्रों पर आयोजित इस परीक्षा में करीब 23,300 उम्मीदवार शामिल हुए. 10-11 फरवरी को परीक्षा तो शांतिपूर्वक निपट गई, लेकिन जब पीईबी द्वारा परीक्षा के अंतिम नतीजे जारी करने से पहले नतीजों पर उम्मीदवारों की आपत्तियां मांगने के लिए 17 फरवरी को प्रश्न-पत्रों की उत्तर-पुस्तिका (आंसर शीट) और सफल उम्मीदवारों की सूची जारी की गई तो बवाल खड़ा हो गया.

बवाल का केंद्र ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय का ग्वालियर एग्रीकल्चर कॉलेज बना. आंसर शीट के आधार पर नतीजों का आकलन करने के बाद परीक्षा में सम्मिलित हुए कॉलेज के छात्रों ने इस परीक्षा को ‘व्यापमं घोटाला-2’ करार दिया और अगले ही दिन यानी 18 फरवरी से कॉलेज परिसर से ही परीक्षा के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया.

आंदोलनरत छात्र सुदीप विलगैया बताते हैं, ‘मध्य प्रदेश में 52 जिले हैं और हर जिले में छात्र इस परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. 23,000 से ज्यादा उम्मीदवार परीक्षा में बैठे लेकिन परीक्षा में टॉप करने वाले सभी टॉपर भिंड और मुरैना जिले से हैं. इसे संयोग माना जा सकता था, लेकिन वे सभी एक ही कॉलेज यानी हमारे कॉलेज के ही हैं. सभी आपस में दोस्त और रूममेट्स हैं. क्या इतने संयोग एक साथ होना संभव है?’

केवल इतना ही नहीं, छात्रों द्वारा टॉपर्स की जो सूची द वायर  को उपलब्ध कराई गई है उसके मुताबिक एक-दो नामों को छोड़ दें तो अधिकांश टॉपर समान उपनाम वाले हैं और एक जाति विशेष से ताल्लुक रखते हैं.

हालिया भर्ती परीक्षा के टॉपर्स के नामों की सूची. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)
हालिया भर्ती परीक्षा के टॉपर्स के नामों की सूची. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

परीक्षा पर संदेह गहराने के पीछे और भी कारण हैं. जिन पर आंदोलनकारी छात्रों ने हमसे विस्तार से बात की. छात्र राजेंद्र पटेल बताते हैं, ‘इस परीक्षा में टॉप करने वाले उम्मीदवारों का शैक्षणिक रिकॉर्ड खंगाला जाए तो पाएंगे कि चार साल की बीएससी डिग्री इन्होंने आठ-आठ सालों में पूरी की है. दो सालों की एमएससी की डिग्री चार सालों में भी अब तक पूरी नहीं कर पाए हैं. इनके 200 में से 196-195 नंबर आ रहे हैं. जबकि हमारे कॉलेज के जो गोल्ड मेडलिस्ट छात्र रहे, उनके नंबर 150-160 आ रहे हैं.’

रवि शिंदे बताते हैं, ‘परीक्षा में गणित और अंग्रेजी 17-17 नंबर के आए थे. इनके गणित में 17 में से 17 और अंग्रेजी में 17 में से 16 नंबर आए. जबकि इन्हीं दो विषयों में बार-बार बैक के चलते ये लोग अपनी एमएससी चार सालों में भी पूरी नहीं कर पाए हैं. गणित में 17 में से 17 नंबर लाने वाला बीएससी में चार बार सांख्यिकी में फेल हुआ था. जिसके चलते आठ सालों में बीएससी पास की थी.’

सुदीप कहते हैं, ‘परीक्षा में 100-100 नंबर के दो प्रश्न-पत्र थे. जिनमें एक-एक नंबर के 100 सवाल थे. परीक्षा में एडवांस लेवल के गणित के 17 सवाल आए थे. गणित का एक सवाल हल करने में मान लीजिए कम से कम दो मिनट भी लिए तो 34 मिनट होते हैं, लेकिन ये लोग घंटे भर के भीतर ही परीक्षा हल करके चले गए थे. यानी कि बाकी के 83 सवाल इन्होंने महज 10-20 मिनट में कर डाले. यह संभव ही नहीं है. ये लोग अंग्रेजी का एक वाक्य नहीं पढ़ सकते हैं लेकिन 17 में से 16 नंबर ला रहे हैं.’

इसलिए छात्रों की मांग है कि टॉप करने वाले सभी संदिग्ध उम्मीदवारों के परीक्षा केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज जांचे जाएं और देखा जाए कि इन्होंने प्रश्न-पत्र हल करने में कितना समय लिया?

छात्रों का मानना है कि परीक्षा के पहले ही प्रश्न-पत्र और आंसर शीट लीक किए गए होंगे जिन्हें खरीदकर अयोग्य छात्र टॉपर बन बैठे. इसलिए एक जांच समिति का गठन करके उनकी बौद्धिक क्षमता का टेस्ट लिया जाए तो उनके जवाब बिहार के टॉपर्स घोटाले के छात्रों की तरह ही होंगे.

आंदोलनकारी छात्रों के इस दावे को इस बात से भी बल मिलता है कि पीईबी ने जो आंसर शीट जारी की है, उसमें कुछ प्रश्नों के गलत उत्तर चुने गए हैं. संदेही टॉपर्स ने भी परीक्षा हल करते वक्त उन्हीं गलत उत्तरों का चयन किया है.

आंदोलनरत छात्र कहते हैं, ‘माना कि पीईबी ने गलत उत्तर जारी किया लेकिन जो व्यक्ति 200 में से 196 नंबर ला रहा हो, ऐसा बुद्धिमान तो सही उत्तर पर निशान लगा सकता था न. पर सभी टॉपर्स ने वही गलत उत्तर चुना जो पीईबी ने चुना. इससे स्पष्ट है कि उन्हें परीक्षा से पहले ही पीईबी की आंसरशीट मिल गई थी जिसके अनुसार उन्होंने वही उत्तर चुना जो पीईबी ने चुना था. अपना दिमाग नहीं लगाया कि वह गलत है या सही?’

परीक्षा पर संदेह इसलिए भी गहराता है क्योंकि छात्रों के मुताबिक इन दो पदों की परीक्षाओं में आज तक कभी भी कोई इतने ज्यादा नंबर नहीं ला पाया है.

2015 में आयोजित पिछली परीक्षा में ही टॉप रैंक 162 नंबर अर्जित करने वाले उम्मीदवार को मिली थी. जबकि 140 से 162 नंबर के बीच केवल तीन-चार उम्मीदवार ही रहे थे, लेकिन इस बार टॉप रैंक 196 नंबर पर है तो वहीं 190 से ऊपर 4 उम्मीदवार, 180 से ऊपर 8 और सभी टॉपर 175 से ऊपर नंबर लाए हैं.

छात्र विकास सिंह कहते हैं, ‘यदि योग्यता के आधार पर हकीकत में इन उम्मीदवारों के इतने अंक आते तो वे ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी और वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी स्तर की कृषि विभाग की सबसे निम्न पद की परीक्षा के लिए आवेदन नहीं करते बल्कि सहायक संचालक कृषि तो छोड़िए, आईएएस के लिए आवेदन करते और चयनित भी हो जाते.’

आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि परीक्षा के दो दिन पहले सभी संदिग्ध अचानक से एक साथ ग्वालियर एग्रीकल्चर कॉलेज के हॉस्टल से गायब हो गए थे और परीक्षा के बाद वापस लौटे जिसकी जांच छात्रावासों के सीसीटीवी से की जा सकती है.

इस बीच मामला सामने आने के करीब दो हफ्ते बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को इस परीक्षा की जांच के आदेश दे दिए थे.

वहीं, सीहोर में भी ऐसे ही मामले सामने आए कि एक ही जिले के परीक्षार्थी टॉपर्स में दिखे तो कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी परीक्षा पर संदेह जताते हुए पीईबी निदेशक केके सिंह को जांच के आदेश दिए हैं. जांच पूरी होने तक पीईबी ने परीक्षा परिणामों को रोक दिया है.

लेकिन छात्र जांच को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं. उनका कहना है कि जो पीईबी स्वयं कटघरे में खड़ा है, उसी से जांच कराकर मामले पर लीपापोती की जा रही है.

कन्हैया कुमावत एवं अन्य छात्र बताते हैं, ‘पीईबी ने उक्त परीक्षा का ठेका एनसीईआईटी नामक कंपनी को दिया था. यह वह कंपनी है जो कि उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में ब्लैकलिस्टेड की जा चुकी है क्योंकि वहां भी इसके द्वारा आयोजित कराई गई परीक्षाओं में धांधली हुईं थीं.’

इस संबंध में पीईबी ने अपनी सफाई जारी करते हुए कहा है, ‘पीईबी द्वारा अनुबंधित परीक्षा संचालन एजेंसी और प्रश्न-पत्र निर्माण एजेंसी का चयन पूर्णत: पारदर्शी टेंडर प्रक्रिया के तहत किया गया है जिसमें एजेंसियों द्वारा ब्लैक लिस्ट नहीं होने संबंधी प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया गया है.’

पीईबी की इस सफाई पर छात्र सवाल उठाते हुए पूछते हैं कि क्या महज एक प्रमाण-पत्र देकर कोई भी स्वयं को पाक-साफ साबित कर सकता है? क्या पीईबी की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह स्वयं के स्तर पर ब्लैक लिस्टेड कंपनी एनसीईआईटी की जांच करती, तब ठेका देती?

वहीं, छात्रों का यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश तो दे दिए लेकिन अब तक किसी भी जांचकर्ता ने हमसे संपर्क तक नहीं किया है जबकि हमारे पास तथ्य हैं.

यही कारण हैं कि छात्रों ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष आदि सभी जिम्मेदारों को पत्र लिखकर मामले की जांच सीबीआई, लोकायुक्त या फिर विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा कराए जाने की मांग की है. वहीं, अगर छात्रों की मानें तो यह घोटाला सिर्फ वर्तमान परीक्षा तक सीमित नहीं है. इसके तार 2011-13 के व्यापमं घोटाले से भी जुड़े हुए हैं.

उल्लेखनीय है कि तब मध्य प्रदेश का बहुचर्चित व्यापमं घोटाला सामने आया था जिसे भारत में शिक्षा जगत का सबसे बड़ा घोटाला माना जाता है. जिसकी सीबीआई जांच अब तक चल रही है और मामला अदालत में है.

उस समय व्यापमं के तहत होने वाली प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) की परीक्षा में सैकड़ों नकल के प्रकरण सामने आए थे. छात्र बताते हैं कि पीएमटी की तरह ही व्यापमं तब प्री-एग्रीकल्चर टेस्ट (पीएटी) की परीक्षा भी आयोजित कराता था जिसके तहत कृषि कॉलेज में दाखिले होते थे.

उस समय इन परीक्षाओं में भी धांधली की बात सामने आई थी लेकिन पीएमटी की परीक्षा बड़े स्तर की थी जिसके चलते पीएटी की धांधली पर कोई खास कार्रवाई नहीं हो पाई थी.

छात्रों का दावा है कि ‘ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी’ और ‘वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी’ की वर्तमान परीक्षा में जिन उम्मीदवारों ने धांधली करके टॉप किया है, उनमें से छह नाम ऐसे हैं जिन्होंने 2011, 2012 और 2013 की पीएटी परीक्षा में भी धांधली करके ग्वालियर के कृषि कॉलेज में दाखिला लिया था.

उपलब्ध दस्तावेजों की प्रतिलिपि बताती हैं कि उक्त छह नामों में से दो महाविद्यालय के स्तर पर कराई गई जांच में संदिग्ध भी पाए गए थे.

महाविद्यालय प्रबंधन द्वारा 19 जून 2013 को व्यापमं को एक पत्र लिखा गया था, जिसमें व्यापमं को सूचित किया गया था कि महाविद्यालय द्वारा गठित समिति की जांच में पीएटी 2012 की परीक्षा में 21 छात्र संदेहास्पद पाए गए हैं.

महाविद्यालय ने पत्र के माध्यम से व्यापमं से जांच में सहयोग मांगा था और छात्रों के मूल दस्तावेज एवं उत्तर-पुस्तिक सहित अन्य दस्तावेजों की मांग की थी. उन 21 छात्रों में दो नाम वर्तमान परीक्षा में धांधली के आरोप झेल रहे छात्रों के भी हैं.

पीएटी परीक्षा 2012 में हुई धांधली के आरोपों के बाद संदिग्ध पाए गए छात्रों की सूची में दो ऐसे छात्र भी हैं, जिनका नाम कृषि विभाग की हालिया भर्ती परीक्षा के परिणाम की लिस्ट में बतौर टॉपर्स शामिल है. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)
पीएटी परीक्षा 2012 में हुई धांधली के आरोपों के बाद संदिग्ध पाए गए छात्रों की सूची में दो ऐसे छात्र भी हैं, जिनका नाम कृषि विभाग की हालिया भर्ती परीक्षा के परिणाम की लिस्ट में बतौर टॉपर्स शामिल है. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

इसी तरह 2011 की पीएटी परीक्षा में भी धांधली की बात सामने आई थी और महाविद्यालय प्रबंधन ने 9 छात्रों की जांच कराने के लिए संबंधित पुलिस थाने को पत्र लिखा था.

हालांकि, इन दोनों ही मामलों में संदिग्ध छात्रों पर क्या कार्रवाई हुई और जांच के क्या निष्कर्ष निकलकर सामने आए? यह स्पष्ट नहीं है.

आंदोलनकारी छात्रों में से ही एक सुनील उपाध्याय बताते हैं, ‘मैंने इस संबंध में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत महाविद्यालय प्रबंधन से जानकारी भी मांगी थी लेकिन उन्होंने यह कहते हुए जानकारी देने से मना कर दिया कि मांगी गई जानकारी लोकहित में नहीं है. हजारों छात्रों के भविष्य पर कुठाराघात करना क्या लोकहित से जुड़ा मुद्दा नहीं है?’

हालिया परीक्षा में धांधली सामने आने के बाद छात्रों ने अपने स्तर पर ही जानकारी जुटाकर ऐसे 65 छात्रों की सूची बनाई है जिन पर उन्हें 2011, 2012 और 2013 की पीएटी परीक्षा में धांधली करके पास होने का संदेह है.

सुनील कहते हैं, ‘ये वे छात्र हैं जो 11वी-12वीं कक्षा में गणित या कृषि संकाय के छात्र हुआ करते थे लेकिन पीएटी की परीक्षा इन्होंने बायोलॉजी संकाय से दी. गणित और कृषि वालों के लिए बायोलॉजी से परीक्षा पास करना असंभव के समान होता है. जबकि कृषि संकाय से पीएटी निकालना सबसे आसान, लेकिन ये लोग उल्टे पैर भागे. बायोलॉजी और गणित वाले पीएटी की परीक्षा कृषि से देते हैं क्योंकि वह आसान होती है. जबकि ये लोग कृषि वाले ही थे, फिर भी सबसे कठिन विषय बायोलॉजी चुना और असंभव काम को संभव कर दिखाया.’

छात्रों को संदेह है कि तब उक्त छात्रों ने अपनी पीएटी परीक्षा स्वयं न देकर मुन्ना भाई फिल्म की तर्ज पर पीएमटी छात्रों से दिलवाई थी. पीएमटी वाले बायोलॉजी संकाय के होते हैं और उनके लिए पीएटी निकालना बेहद आसान होता है.

सुनील की बात को आगे बढ़ाते हुए सुदीप बताते हैं, ‘जब इनका दाखिला ग्वालियर एग्रीकल्चर कॉलेज में हो गया तो उसके बाद पीएटी परीक्षाओं की जांच की बात सामने आई, जिसकी भनक लगते ही कई छात्र रात ही रात कॉलेज से गायब हो गए थे. यहां तक की कॉलेज में जमा अपने दस्तावेज तक लेने वापस नहीं आए. जो बचे उनके ये हालात थे कि उन्होंने बायोलॉजी से पीएटी की परीक्षा पास की लेकिन सात-सात साल तक बायोलॉजी विषय में पास नहीं हो पाए. जिससे संदेह होता है कि वे पीएटी में धांधली करके पास हुए थे.’

सुदीप आगे कहते हैं, ‘अगर वर्तमान परीक्षा में धांधली करने वालों की जांच उनकी ग्याहरवी-बारहवीं और पीएटी परीक्षा पास करने के समय से की जाए तो व्यापमं जैसा एक और बड़ा घोटाला सामने आएगा. अगर उस वक्त उन पर कार्रवाई हो गई होती तो आज वे वापस धांधली नहीं कर पाते.’

छात्रों का दावा है कि पीएटी परीक्षा में 2005 से धांधली चल रही है.

यहां यह भी बताना आवश्यक हो जाता है कि टॉप करने वाले छात्रों का शैक्षणिक रिकॉर्ड तो खराब है ही, साथ ही साथ उनका आपराधिक रिकॉर्ड भी रहा है.

आंदोलनकारी छात्रों के मुताबिक, उनमें से कुछ पर एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज हैं. रैगिंग और मारपीट जैसी घटनाओं में वे लिप्त पाए गए जिसके चलते उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई और ग्वालियर के कृषि कॉलेज से अन्य जिले के कृषि कॉलेज में स्थानांतरण तक किया गया.

छात्र कहते हैं, ‘अगर एक बार स्थानांतरण हो जाए तो डिग्री पूरी करने से पहले वे अपने मूल संस्थान नहीं आ सकते हैं लेकिन यहां भी कॉलेज प्रबंधन की मिलीभगत के चलते उन्हें नियमों को ताक पर रखकर ग्वालियर वापस लाया गया क्योंकि दूसरे जिले में वे धांधली करके परीक्षा पास नहीं कर पा रहे थे.’

चर्चा तो यहां तक है कि इन छात्रों को सत्तारूढ़ दल का प्रश्रय प्राप्त है. इसलिए वर्षों से उनके घपले-घोटाले दबे हुए हैं. यही कारण है कि मामले ने राजनीतिक तूल भी पकड़ लिया और विधानसभा में मुद्दा गूंज रहा है.

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कांग्रेस ने मामले में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा तक को कटघरे में खड़ा कर दिया है. प्रदेश कांग्रेस ने संदेही छात्रों की वीडी शर्मा के साथ तीन तस्वीरें भी जारी की हैं.

दिग्विजय ने ट्वीट में लिखा है कि वीडी शर्मा मुरैना के हैं और उनके पास भी बीएससी एग्रीकल्चर की डिग्री है. इसे संयोग ही कहेंगे कि परीक्षा में टॉप करने वाले 10 में से 8 छात्र भी शर्मा और ब्राह्मण ही हैं.

बहरहाल, अब छात्र आर-पार के मूड में हैं और वे केवल वर्तमान परीक्षा ही नहीं, 2011-13 के दरमियान हुई पीएटी परीक्षाओं की जांच भी चाहते हैं. इसलिए उपलब्ध सभी तथ्यों को लेकर उन्होंने अदालत का रुख किया है.

दूसरी तरफ, उनका ग्वालियर में 18 तारीख से आंदोलन भी जारी है जिसे अब राज्य के दोनों कृषि विश्वविद्यालय और उनके 13 कैंपस के छात्रों का भी समर्थन मिलने लगा है. आंदोलन में छात्रों की मांगें हैं कि परीक्षा निरस्त हो और वापस कराई जाए एवं दोषियों पर कार्रवाई हो.

आंदोलनकारी विकास सिंह कहते हैं, ‘863 पदों पर भर्ती थी. इसलिए अनुमान है कि कम से कम 600-700 लोगों ने तो प्रश्न-पत्र खरीदे होंगे. जो टॉपर निकले हैं, वे हमारे सहपाठी रहे तो हम उनकी असलियत जानते थे इसलिए घोटाले का खुलासा हो गया. यह तो ग्वालियर, भिंड, मुरैना जिलों की बात है. बाकी जिलों में क्या हुआ होगा? वो सामने आना बाकी है जो एक उच्चस्तरीय जांच से ही संभव होगा. इसलिए अब आंदोलन पूरे राज्य में होगा.’

छात्र सुदर्शन कहते हैं, ’10-12 सालों बाद ‘वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी’ और 6 सालों बाद ‘ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी’ के पदों पर भर्ती आई थी. इसके लिए हमें सड़कों पर आंदोलन तक करना पड़ा था. जब सालों के संघर्ष के बाद भर्ती परीक्षा हो और उसी में फर्जीवाड़ा हो जाए तो बेरोजगारी के इस दौर में युवा आत्महत्या ही तो करेगा.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq