जस्टिस एनवी रमना 24 अप्रैल को भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर सीजेआई एसए बोबडे की जगह लेंगे. फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट का जज बनाए जाने से पहले जस्टिस रमना दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे.
नई दिल्ली: जस्टिस नूतलपति वेंकट (एनवी) रमना को मंगलवार को भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त कर दिया गया.
सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, जस्टिस रमना 24 अप्रैल को भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर प्रभार संभालेंगे और मौजूदा सीजेआई एसए बोबडे की जगह लेंगे. जस्टिस बोबडे 23 अप्रैल को यह पद छोड़ेंगे.
जस्टिस रमना 26 अगस्त, 2022 को सेवानिवृत्त होंगे.
अधिसूचना के मुताबिक, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, जस्टिस नूतलपति वेंकट रमना को 24 अप्रैल 2021 से भारत का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त करते हैं.’
सूत्रों ने बताया कि परंपरा के मुताबिक, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और कानून मंत्रालय में सचिव (न्याय) बरुण मित्रा ने राष्ट्रपति के हस्ताक्षर किया हुआ नियुक्ति पत्र मंगलवार सुबह जस्टिस रमना को सौंपा.
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बोबडे ने उनके बाद पद संभालने के लिए जस्टिस रमना के नाम की परंपरा और वरिष्ठता क्रम के अनुरूप हाल ही में अनुशंसा की थी.
सीजेआई की ओर से केंद्र सरकार को अनुशंसा उस दिन की गई थी जब उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस रमना के खिलाफ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी की शिकायत पर ‘उचित तरीके से विचार’ करने के बाद खारिज करने के फैसले को सार्वजनिक किया था.
नियम के मुताबिक, मौजूदा प्रधान न्यायाधीश अपनी सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले एक लिखित पत्र भेजा जाता है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, 17 फरवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाए जाने से पहले जस्टिस रमना दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे.
The Notification appointing Justice NV Ramana as the 48th Chief Justice of India.#SupremeCourt #JusticeNVRamana https://t.co/FaECplxHOx pic.twitter.com/5PKldg1zlO
— Live Law (@LiveLawIndia) April 6, 2021
उनका जन्म 27 अगस्त 1957 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पोन्नावरम गांव के एक किसान परिवार में हुआ था.
वह 10 फरवरी 1983 को एक वकील के रूप में अधिवक्ता के रूप में नामांकित किए गए थे और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट, केंद्र एवं आंध्र प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस की. रमना सिविल, क्रिमिनल, संवैधानिक, श्रम, सेवा एवं चुनाव मामलों में केस लड़ते थे.
जस्टिस रमना ने आंध्र प्रदेश के एडिशनल एडवोकेट जनरल के रूप में भी काम किया है. 27 जून 2000 को उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का स्थायी जज नियुक्त किया गया था. उन्होंने 10 मार्च 2013 से 20 मई 2013 तक आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया था.
उन्हें दो सितंबर, 2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया और 17 फरवरी, 2014 को उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया.
करीब दो हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट ने उस शिकायत को खारिज कर दी थी, जिसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने जस्टिस रमना पर आरोप लगाया था कि वे राज्य की न्यायपालिका में दखल देकर उनकी सरकार गिराने की कोशिश कर रहे हैं.
इस संबंध में एक गोपनीय जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने रेड्डी के आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि इसमें कोई दम नहीं है.
जस्टिस रमना ने शीर्ष अदालत में कई हाई-प्रोफाइल मामलों को सुना है.
जस्टिस रमना की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने से पिछले साल मार्च में इनकार कर दिया था.
वह पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने नवंबर 2019 में कहा था कि सीजेआई का पद सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण है.
नवंबर 2019 के फैसले में शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ‘जनहित’ में सूचनाओं को उजागर करते हुए ‘न्यायिक स्वतंत्रता को भी दिमाग में रखना होगा.’
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में जस्टिस रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल जनवरी में फैसला दिया था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर कारोबार करना संविधान के तहत संरक्षित है और जम्मू कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश दिया था.
वह शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे हैं जिसने 2016 में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था.
नवंबर 2019 में उनकी अगुवाई वाली पीठ ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को सदन में बहुमत साबित करने के लिए शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था.
जस्टिस रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका पर भी सुनवाई की थी जिसमें पूर्व एवं मौजूदा विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के निस्तारण में बहुत देरी का मुद्दा उठाया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)