सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने उस याचिका पर यह आदेश पारित किया जिसमें जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार प्रत्यर्पित करने से रोकने के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए अनुरोध किया गया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं को निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना म्यांमार प्रत्यर्पित नहीं किया जाएगा.
सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने उस याचिका पर यह आदेश पारित किया जिसमें जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को तुरंत रिहा करने और उन्हें म्यांमार प्रत्यर्पित करने से रोकने के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए अनुरोध किया गया था.
केंद्र ने इससे पहले याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि भारत अवैध प्रवासियों की ‘राजधानी’ नहीं बन सकता.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि रोहिंग्या बच्चों की हत्याएं कर दी जाती हैं और उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तथा म्यांमार की सेना अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का पालन करने में नाकाम रही है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्यर्पण को आवश्यक बताने वाली रिपोर्ट्स का उल्लेख करते हुए याचिका में कहा गया, यह शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता और शरणार्थियों के लिए दायित्वों के खिलाफ है. याचिकाकर्ता ने कहा कि प्रत्यर्पण से उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है और यह भारत में रहने वाले सभी रोहिंग्या व्यक्तियों के अनुच्छेद 21 के अधिकारों का उल्लंघन है.
इस महीने की शुरुआत में एक 14 वर्षीय रोहिंग्या लड़की के म्यांमार प्रत्यर्पण के भारत के कदम की संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग और अधिकार समूहों ने आलोचना की थी.
बीते छह मार्च को जम्मू शहर में सत्यापन अभियान के दौरान महिलाओं और बच्चों सहित करीब 168 रोहिंग्याओं को अवैध रूप से रहते हुए पाए जाने पर उन्हें कठुआ जिले के हिरानगर स्थित एक विशेष केंद्र में भेज दिया गया था.
पिछले हफ्ते एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा था कि जम्मू कश्मीर में इस माह के प्रारंभ में अवैध अप्रवासियों के विरूद्ध चलाए गए विशेष अभियान में हिरासत में लिए गए 150 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को वापस उनके देश भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
सरकारी आंकड़े के अनुसार जम्मू कश्मीर के जम्मू और सांबा जिलों में रोहिंग्या मुसलमानों एवं बांग्लादेशियों समेत 13,700 से अधिक विदेशी बसे हुए हैं और उनकी जनसंख्या में 2008 से 2015 के बीच 6,000 से अधिक वृद्धि हुई.
उल्लेखनीय है कि बौद्ध बहुल म्यांमार रोहिंग्या को बांग्लादेश का बंगाली मानता है, जबकि वे पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं. वर्ष 1982 में उनसे नागरिकता भी छीन ली गई थी और वे देशविहीन जीवनयापन करने को मजबूर हैं.
साल 2017 में म्यांमार की सेना ने एक रोहिंग्या छापेमार समूह के हमले के बाद उत्तरी रखाइन प्रांत में कथित नस्लीय नरसंहार अभियान शुरू किया. इसकी वजह से 10 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों ने भागकर पड़ोसी बांग्लादेश के साथ भारत में भी शरण ली.
म्यांमार पर आरोप लगाया गया कि सेना ने बड़े पैमाने पर बलात्कार, हत्या और घरों को जलाने का काम किया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)