बिहार में हाज़ीपुर से लोजपा सांसद और पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने कहा कि उन्होंने पार्टी को तोड़ा नहीं, बल्कि बचाया है. लोजपा के 99 प्रतिशत कार्यकर्ता चिराग पासवान के नेतृत्व में बिहार 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू के ख़िलाफ़ पार्टी के लड़ने और ख़राब प्रदर्शन से नाख़ुश हैं.
नई दिल्ली/पटना: लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में दरार पड़ने के संकेत मिल रहे हैं. पार्टी के छह लोकसभा सदस्यों में से पांच ने दल के मुखिया चिराग पासवान को संसद के निचले सदन में पार्टी के नेता के पद से हटाने के लिए हाथ मिला लिया है और उनकी जगह उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद के लिए चुन लिया है.
वहीं, पारस ने सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सराहना करते हुए उन्हें एक अच्छा नेता तथा ‘विकास पुरुष’ बताया और इसके साथ ही पार्टी में एक बड़ी दरार उजागर हो गई, क्योंकि पारस के भतीजे चिराग पासवान जदयू अध्यक्ष के धुर आलोचक रहे हैं.
हाजीपुर से सांसद पारस ने कहा, ‘मैंने पार्टी को तोड़ा नहीं, बल्कि बचाया है.’ उन्होंने कहा कि लोजपा के 99 प्रतिशत कार्यकर्ता पासवान के नेतृत्व में बिहार 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू के खिलाफ पार्टी के लड़ने और खराब प्रदर्शन से नाखुश हैं.
चुनाव में खराब प्रदर्शन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि लोजपा टूट के कगार पर थी. उन्होंने पासवान के एक करीबी सहयोगी को संभावित तौर पर इंगित करते हुए पार्टी में ‘असमाजिक’ तत्वों की आलोचना की. पासवान से उस नेता की करीबी पार्टी के कई नेताओं को खटक रही थी.
पारस ने कहा कि उनका गुट भाजपा नीत राजग सरकार का हिस्सा बना रहेगा और पासवान भी संगठन का हिस्सा बने रह सकते हैं.
चिराग पासवान के खिलाफ हाथ मिलाने वाले पांच सांसदों के समूह ने पारस को सदन में लोजपा का नेता चुनने के अपने फैसले से लोकसभा अध्यक्ष को अवगत करा दिया है. हालांकि पारस ने इस संदर्भ में कोई टिप्पणी नहीं की.
पांच सांसदों ने रविवार रात को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात की और चिराग पासवान की जगह पारस को अपना नेता चुने जाने के फैसले से उन्हें अवगत कराया. लोकसभा अध्यक्ष कार्यालय के सूत्रों ने कहा कि उनके अनुरोध पर विचार किया जा रहा है.
चाचा पारस के पत्रकारों से बात करने के बाद चिराग पासवान राष्ट्रीय राजधानी स्थित उनके आवास पर उनसे मिलने पहुंचे. पासवान के रिश्ते के भाई एवं सांसद प्रिंस राज भी इसी आवास में रहते हैं.
बीते कुछ समय से पासवान की तबीयत ठीक नहीं चल रही, उन्होंने 20 मिनट से ज्यादा समय तक अपनी गाड़ी में ही इंतजार किया, जिसके बाद वह घर के अंदर जा पाए और एक घंटे से भी ज्यादा समय तक घर के अंदर रहने के बाद वहां से चले गए. उन्होंने वहां मौजूद मीडियाकर्मियों से कोई बात नहीं की.
ऐसा माना जा रहा है कि दोनों असंतुष्ट सांसदों में से उनसे किसी ने मुलाकात नहीं की. एक घरेलू सहायक ने बताया कि पासवन जब आए तब दोनों सांसद घर पर मौजूद नहीं थे.
सूत्रों ने बताया कि असंतुष्ट लोजपा सांसदों में प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीना देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं, जो चिराग के काम करने के तरीके से नाखुश हैं.
इस गुट के निर्वाचन आयोग के समक्ष असली लोजपा का प्रतिनिधित्व करने का दावा ठोकने की भी उम्मीद है, क्योंकि पिछले साल अपने पिता रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान अलग-थलग होते दिख रहे हैं. गुट आने वाले वक्त में पासवान को पार्टी अध्यक्ष पद से भी हटा सकता है.
उनके करीबी सूत्रों ने जनता दल (यूनाइटेड) को इस विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पार्टी लंबे समय से लोजपा अध्यक्ष को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही थी, क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जाने के चिराग के फैसले से सत्ताधारी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा था.
रामविलास के पुत्र एवं जमुई से सांसद चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और जदयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से कई भाजपा के बागी थे. लोजपा ने अपने दम पर राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा था.
इसने उन सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए जहां जदयू मैदान में थी, जबकि भाजपा के लिए कुछ सीटें छोड़ दी थी. हालांकि लोजपा बिहार चुनावों में केवल एक सीट जीत सकी, लेकिन इसने जदयू को गंभीर नुकसान पहुंचाया, जिसकी संख्या 71 से गिरकर 43 हो गई थी.
लोजपा उम्मीदवारों की मौजूदगी के कारण 35 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की हार का सामना करने वाली जदयू पहली बार राज्य में भाजपा से कम सीट पाई और यही वजह है कि वह लोजपा के कई सांगठनिक नेताओं को अपने पाले में लाने की लिए प्रयासरत थी. इससे पहले लोजपा के एक मात्र विधायक ने भी जदयू का दामन थाम लिया था.
हालांकि, विधानसभा चुनाव में सहयोगी पार्टी भाजपा से कम सीट जीतने के बावजूद नीतीश के नेतृत्व में राज्य में जदयू की ही सरकार बनी थी.
बहरहाल पारस ने इन आरोपों को खारिज किया कि पार्टी के विभाजन में नीतीश कुमार का कोई हाथ है. भाजपा ने इस मामले में फिलहाल चुप्पी साध रखी है और कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि यह लोजपा का आंतरिक मामला है.
विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के लिए बिहार में सत्ताधारी राजग से अलग होने वाले पासवान ने हालांकि नरेंद्र मोदी और भाजपा समर्थक रुख कायम रखा था.
केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की सुगबुगाहट के बीच सियासी समीकरणों पर नजर रखने वालों का मानना है कि यह कदम पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने से रोकने का प्रयास है, हालांकि यह देखना अभी बाकी है कि भगवा दल लोजपा में इस फूट को कैसे देखता है.
बिहार में सत्ता में साझेदारी के बावजूद भाजपा और जदयू के रिश्ते बहुत अच्छे स्तर पर नहीं हैं और विधानसभा चुनावों में झटके के बाद कुमार अपनी पार्टी की ताकत बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय करते नजर आ रहे हैं.
सूत्रों ने कहा कि पारस को भी भाजपा के मुकाबले नीतीश कुमार के ज्यादा करीब माना जाता है और पासवान को पूरी तरह हाशिये पर ढकेल दिया जाना पार्टी का एक वर्ग नहीं चाहेगा, भले ही पार्टी का एक वर्ग उनके व्यवहार को लेकर बहुत खुश न हो.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी में दो फाड़ की खबरों के बीच चिराग पासवान ने अपने करीबी सहयोगियों से कहा है, ‘अगर मैं अपने पिता की मृत्यु के सदमे को सहन कर सकता हूं तो मैं इस सदमे को भी सहन कर सकता हूं.’
लोजपा के एक नेता का कहना है, ‘चुनाव आयोग द्वारा चार या पांच लोजपा सांसदों को अलग समूह के रूप में मान्यता देने की सूचना के बाद ही विभाजन आधिकारिक होगा.’
मालूम हो कि लोजपा ने 2019 लोकसभा में छह सीटें जीती थीं, जिनमें वैशाली (बीना देवी), समस्तीपुर (रामचंद्र पासवान और बाद में उनके बेटे प्रिंस राय), खगड़िया (चौधरी महबूब अली कैसर), नवादा (चंदन कुमार) और जमुई (चिराग पासवान) शामिल हैं.
लोजपा के एकमात्र विधायक राज कुमार सिंह, जो 2020 विधानसभा चुनाव में बेगुसराई के मटिहानी सीट जीते थे, वह पहले ही जदयू में शामिल हो चुके हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, आगामी दिनों में यह विद्रोही समूह जदयू का समर्थन कर सकता है. सूत्रों का कहना है, पशुपति पारस के केंद्रीय मंत्री बनने की सुगबुगाहट है.
5 MPs have submitted letter to the Speaker, we will go and meet him as and when he orders: LJP MP Pashupati Kumar Paras
— ANI (@ANI) June 14, 2021
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक सोमवार सुबह लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस ने कहा था, ‘हमारी पार्टी में छह सांसद है. इनमें से पांच सांसदों की इच्छा पार्टी को बचाने की है. चिराग पासवान मेरे भतीजे होने के साथ-साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. उन्हें लेकर मुझे कोई आपत्ति नहीं है.’
उन्होंने कहा था कि इन पांच सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को एक पत्र भेजा है. जब भी वे आदेश करेंगे हम उनसे मिलने जाएंगे.
जदयू के नेताओं से मुलाकात से जुड़े एक सवाल पर पारस ने कहा था, ‘नहीं, यह 100 प्रतिशत गलत है. लोजपा हमारी पार्टी है और यह संगठन बिहार में मजबूत है. मैं एनडीए के साथ था और गंठबंधन का हिस्सा बना रहूंगा.’
बता दें कि साल 2020 में पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग ने पार्टी की कमान संभाली थी.
चिराग पासवान ने जो बोया था, वही काटा है : जदयू
लोजपा में उत्पन्न संकट के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू सोमवार को कहा कि चिराग पासवान वही काट रहे हैं, जो उन्होंने बोया था.
जदयू को पिछले साल विधानसभा चुनाव में लोजपा प्रमुख चिराग के विरोध के कारण नुकसान उठाना पड़ा था.
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने कहा, ‘एक मशहूर कहावत है कि जैसा आप बोते हैं, वैसा ही काटते हैं. चिराग पासवान एक ऐसी पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे जो राजग के साथ थी. फिर भी उन्होंने ऐसा रुख अपनाया जिसने विधानसभा चुनाव में इसे नुकसान पहुंचाया. इससे उनकी अपनी पार्टी के भीतर बेचैनी की भावना पैदा हुई.’
जदयू प्रमुख ने चिराग पर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि इसीलिए वह अपनी पार्टी के भीतर ही हाशिये पर पहुंच गए.
लोजपा के बागी सांसदों के जदयू में शामिल होने संबंधी अटकलों पर सिंह ने कहा, ‘कई औपचारिकताएं पूरी की जानी हैं. बगावत करने वाले पांच सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा एक स्वतंत्र समूह के रूप में अधिसूचित किए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने पहले ही कहा है कि वे राजग में बने रहेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘बिहार में राजग में सिर्फ भाजपा और हमारी पार्टी है. वे जिस भी पार्टी में शामिल होंगे, वे हमारे साथ रहेंगे.’
सिंह ने एक या एक इससे अधिक बागी लोजपा सांसदों को जदयू कोटे से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने संबंधी अटकलों पर टिप्पणी से इनकार किया और कहा कि सभी राजग सहयोगियों को ‘सम्मानजनक’ हिस्सा मिलना चाहिए.
लोजपा के अकेले विधायक राजकुमार सिंह के बिहार विधानसभा उपाध्यक्ष पद के चुनाव में राजग उम्मीदवार महेश्वर हजारी के पक्ष में मतदान करने के बाद जदयू में शामिल होने के बमुश्किल तीन महीने बाद में केंद्रीय स्तर पर इस दल में यह घटनाक्रम सामने आया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)