किसान आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर निकाले गए मार्च को लेकर दर्ज मामले वापस लिए जाएं: संगठन

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों का नेतृत्व कर रहे संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने बीते 26 जून को प्रदर्शन के सात महीने पूरे होने पर मार्च निकाला था. इस दौरान चंडीगढ़ पुलिस ने कई आरोपों में तमाम किसानों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किए हैं.

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किसान आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर अमृतसर के गोल्डन गेट के सामने बीते 26 जून को किसानों ने प्रदर्शन किया था. (फाइल फोटो: पीटीआई)

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों का नेतृत्व कर रहे संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने बीते 26 जून को प्रदर्शन के सात महीने पूरे होने पर मार्च निकाला था. इस दौरान चंडीगढ़ पुलिस ने कई आरोपों में तमाम किसानों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किए हैं.

किसान आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर अमृतसर के गोल्डन गेट के सामने बीते 26 जून को किसानों ने प्रदर्शन किया था. (फाइल फोटो: पीटीआई)
किसान आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर अमृतसर के गोल्डन गेट के सामने बीते 26 जून को किसानों ने प्रदर्शन किया था. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नयी दिल्लीः पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन की अगुवाई कर रहे संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने रविवार को मांग की कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में उनके प्रदर्शन को 26 जून को सात महीने पूरे होने के मौके पर उसके द्वारा मार्च निकालने पर किसानों के विरूद्ध दर्ज किए गए मामले वापस लिए जाएं.

आंदोलन कर रहे कृषक संगठनों के महागठबंधन संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि चंडीगढ़ पुलिस ने कई आरोपों में तमाम किसानों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं.

किसानों ने केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन के सात महीने पूरे होने पर शनिवार को राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन राज्यपालों को सौंपने के लिए विभिन्न राज्यों में राज भवन तक मार्च निकाला था.

किसान मोर्चा की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘चंडीगढ़ में बताया जाता है कि संगठन के कई नेताओं और कई अन्य प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 186, 188, 332 और 353 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.’

 यह भी आरोप लगाया गया कि सड़कों पर बैरीकेड लगाने के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार की और लाठीचार्ज किया.

उन्होंने इस प्रकार के अलोकतांत्रिक एवं अधिनायकवादी आचरण पर कहा कि किसान मोर्चा के नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं, जिसकी हम निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि इन एफआईआर को तत्काल बिना किसी शर्त के वापस लिया जाए.

बयान में कहा गया, कई स्थानों पर किसानों को राजभवन तक रैलियां भी नहीं निकालने नहीं दी गईं और नेताओं को हिरासत में ले लिया गया. मोर्चा इसकी निंदा करता है और बताना चाहता है कि यह अपने आप में लोकतंत्र की विफलता एवं अघोषित आपातकाल है, जिससे हम गुजर रहे हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि हिसार में पंद्रह किसानों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं. इन्होंने 25 जून को भाजपा की बैठक के विरोध में प्रदर्शन में हिस्सा लिया था और इन एफआईआर को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए.

बता दें कि किसानों ने केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

विरोध कर रहे किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लें और किसानों की उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए नए कानून बनाने की मांग की.

मालूम हो कि प्रदर्शन कर रहे किसान सोमवार को हरियाणा-राजस्थान सीमा के पास सुनेहरा प्रदर्शन स्थल पर किसान मजदूर भाईचारा दिवस मना रहे हैं.

केंद्र सरकार के विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी.

केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन किसानों ने इस मैदान को खुली जेल बताते हुए यहां आने से इनकार करते हुए दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में चार महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

अब तक प्रदर्शनकारी यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच पिछली औपचारिक बातचीत बीते 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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