कोर्ट ने एससी महिला की नियुक्ति पर गुजरात लोकसेवा आयोग के फ़ैसले को अवैध बताया

याचिकाकर्ता महिला ने जीपीएससी के उस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें बिक्री कर विभाग में सहायक आयुक्त के पद पर नियुक्ति दी गई थी, जो उनकी तीसरी वरीयता थी, जबकि सामान्य वर्ग में 110वीं रैंक लाने वाली महिला की पुलिस उपाधीक्षक के पद पर नियुक्ति की अनुशंसा की गई थी, जो याचिकाकर्ता की पहली वरीयता थी.

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गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

याचिकाकर्ता महिला ने जीपीएससी के उस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें बिक्री कर विभाग में सहायक आयुक्त के पद पर नियुक्ति दी गई थी, जो उनकी तीसरी वरीयता थी, जबकि सामान्य वर्ग में 110वीं रैंक लाने वाली महिला की पुलिस उपाधीक्षक के पद पर नियुक्ति की अनुशंसा की गई थी, जो याचिकाकर्ता की पहली वरीयता थी.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात लोकसेवा आयोग (जीपीएससी) द्वारा अनुसूचित जाति की महिला को वर्ष 2019 की प्रतियोगी परीक्षा में आरक्षण का लाभ नहीं लेने और सामान्य वर्ग में शामिल होकर 43वां रैंक हासिल करने के बावजूद पहली वरीयता की नियुक्ति नहीं देने को सोमवार को ‘गैर कानूनी और दुर्भावनापूर्ण’ करार दिया.

उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता रोशनी सोलंकी ने जीपीएससी के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें बिक्री कर विभाग में सहायक आयुक्त के पद पर नियुक्ति दी गई थी, जो उनकी तीसरी वरीयता थी, जबकि सामान्य वर्ग में 110वीं रैंक लाने वाली महिला की पुलिस उपाधीक्षक के पद पर नियुक्ति की अनुशंसा की गई थी, जो याचिकाकर्ता की पहली वरीयता थी.

जस्टिस एएस सुपेहिया ने जीपीएससी को निर्देश दिया कि वह याचिकाकार्ता को पुलिस उपाधीक्षक के पद के लिए नियुक्ति पत्र जारी करे.

जस्टिस सुपेहिया ने उच्च न्यायालय के उस आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि सामान्य श्रेणी के लिए आरक्षित पदों पर सभी महिलाएं प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं, भले ही वे किसी भी श्रेणी से आती हों.

जीपीएससी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि सोलंकी को पहली वरीयता नहीं दी गई, क्योंकि वह पहले ही उम्र और प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा में अर्हता अंक के लिए आरक्षण का लाभ सरकार द्वारा जारी 23 जुलाई 2004 के आदेश के तहत ले चुकी थीं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘हालांकि उपरोक्त कारण पूरी तरह से गलत है, क्योंकि याचिकाकर्ता को आरक्षण का दावा करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वह पहले से ही सामान्य श्रेणी की महिला उम्मीदवार के मानदंडों को पूरा कर रही थीं. याचिकाकर्ता ने आरक्षण की मांग की थी, यह दिखाने के लिए प्रतिवादियों ने रिकॉर्ड पर कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की है. इसलिए जिस कारण से उन्हें उनकी पहली वरीयता के अनुसार नियुक्ति से वंचित किया गया था, वह गैरकानूनी और दुर्भावनापूर्ण है.’

सोलंकी के वकील चेतन पंड्या ने कहा कि वह 33 वर्ष की थीं और इसलिए अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण के तहत किसी भी आयु में छूट का लाभ नहीं उठाया था.

इसके अलावा याचिकाकर्ता ने मुख्य लिखित परीक्षा में 477.75 अंक हासिल किए थे, जबकि सामान्य महिला उम्मीदवार के लिए कट-ऑफ 442.50 थी. इसलिए कट-ऑफ अंकों में छूट का कोई सवाल ही नहीं था. इस प्रकार उन्होंने ओपन कैटेगरी के लिए भी क्वालीफाई किया था.

हाईकोर्ट ने कहा कि 23 जुलाई, 2004 का सरकारी संकल्प (जीआर), याचिकाकर्ता पर लागू नहीं होता, क्योंकि उसने अनुसूचित जाति या आरक्षित वर्ग की महिला उम्मीदवार होने के नाते किसी भी छूट का लाभ नहीं उठाया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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