छत्तीसगढ़: जांच रिपोर्ट में कहा गया कि 2013 की मुठभेड़ में मारे गए नक्सली नहीं, निहत्थे आदिवासी थे

छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के एडेसमेट्टा गांव में साल 2013 में सीआरपीएफ की कोबरा इकाई द्वारा की गई फायरिंग में आठ लोग मारे गए थे, जिसमें से चार नाबालिग थे. सुरक्षाबलों ने दावा किया था कि वे नक्सली थे. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस वीके अग्रवाल ने अपनी जांच रिपोर्ट में इस मुठभेड़ को ‘एक ग़लती’ बताया है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के एडेसमेट्टा गांव में साल 2013 में सीआरपीएफ की कोबरा इकाई द्वारा की गई फायरिंग में आठ लोग मारे गए थे, जिसमें से चार नाबालिग थे. सुरक्षाबलों ने दावा किया था कि वे नक्सली थे. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस वीके अग्रवाल ने अपनी जांच रिपोर्ट में इस मुठभेड़ को ‘एक ग़लती’ बताया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के एडेसमेट्टा में साल 2013 में हुई एक मुठभेड़ की न्यायिक जांच रिपोर्ट में पाया गया है कि सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए आठ लोगों में से कोई भी माओवादी नहीं था, जैसा कि घटना के समय आरोप लगाया गया था. मारे गए आठ लोगों में से चार नाबालिग थे.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस वीके अग्रवाल ने कहा कि हो सकता है कि सुरक्षा बलों ने दहशत के क्षणों में निहत्थी भीड़ पर गोलियां चला दी हो.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस घटना को रिपोर्ट में तीन बार ‘एक गलती’ (A Mistake) बताते हुए जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि मारे गए आदिवासी निहत्थे थे और 44 राउंड फायरिंग में ये लोग मारे गए, जिनमें से 18 राउंड फायरिंग सीआरपीएफ की कोबरा इकाई के एक कॉन्स्टेबल ने की थी.

मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई द्वारा घटना की एक अलग जांच की जा रही है.

एडेसमेट्टा की घटना 17-18 मई, 2013 की रात को हुई थी. इसके एक हफ्ते बाद सुकमा जिले में झीरम घाटी की घटना (25 मई, 2013) हुई थी, जिसमें राज्य के शीर्ष कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग नक्सली हमले में मारे गए थे.

जहां पुलिस ने एडेसमेट्टा में माओवादियों की मौजूदगी से इनकार किया था, वहीं कोबरा इकाई ने एक माओवादी ठिकाने का भंडाफोड़ करने का दावा किया था.

रिपोर्ट के अनुसार, एडेसमेट्टा निकटतम सड़क से 17 किमी और जिला मुख्यालय से 40 किमी से अधिक दूर स्थित है. यह बीजापुर जिले के गंगालूर पुलिस स्टेशन के तहत आता है, जो राज्य में नक्सल उग्रवाद से सबसे बुरी तरह प्रभावित है. इस गांव में अभी भी कोई सड़क नहीं है.

उस रात आदिवासी समुदाय के 25-30 सदस्य ‘बीज पंडुम’ मनाने के लिए एकत्र हुए थे. यह एक ऐसा त्योहार है, जिसमें बीज के रूप में नए जीवन की पूजा की जाती है.

इसी दौरान केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की कमांडो इकाई बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन (कोबरा) का एक 1000 सदस्यीय समूह घटनास्थल पर पहुंचा और सभा पर गोलियां चला दीं.

जस्टिस अग्रवाल ने रिपोर्ट में कहा कि सुरक्षा बलों की गोलीबारी ‘गलत धारणा, घबड़ाहट की प्रतिकिया’ का मामला लग रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगर सुरक्षा बलों को आत्मरक्षा के लिए पर्याप्त गैजेट दिए जाते, अगर उनके पास जमीनी स्तर से बेहतर खुफिया जानकारी होती और वे सावधान रहते तो घटना को टाला जा सकता था.’

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ‘आत्मरक्षा के लिए पर्याप्त उपकरणों से लैस सुरक्षा बल नहीं थे. खुफिया जानकारी की भी कमी थी, यही वजह है कि आत्मरक्षा और घबराहट में उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी.’

उस समय सुरक्षा बलों ने आरोप लगाया था कि उन पर गोलियां चलाई गई थीं, जवाबी कार्रवाई में उन्होंने फायरिंग की थी. हालांकि जांच रिपोर्ट में पाया गया है कि कोबरा इकाई किसी ‘खतरे’ में नहीं थी और उन्होंने मानदंडों का पालन नहीं किया था.

इस घटना में कोबरा कॉन्स्टेबल देव प्रकाश की गोली लगने से मौत हो गई थी. इसे लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि ये नक्सलियों की गोली से नहीं, बल्कि ‘फ्रेंडली फायरिंग’ (जवानों की ही गोली से मौत हुई) के चलते हुआ था.

उन्होंने कहा कि घटनास्थल से दो ‘भरमार’ राइफलें जब्त की गई थीं, लेकिन इनकी गोली लगने से कॉन्स्टेबल प्रकाश की मौत नहीं हुई थी.

घटना को लेकर ग्रामीणों के बयान रिपोर्ट के निष्कर्षों से मेल खाते हैं. ग्रामीणों में से एक करम मंगलू ने बताया था कि गोलीबारी के बीच सुरक्षा बलों को यह चिल्लाते हुए सुना गया था, ‘फायरिंग रोको, हमारे एक आदमी को गोली लगी है’.

जांच आयोग ने सुरक्षा बल के काम में कई खामियां पाईं.

आयोग ने दो भरमार राइफलों की जब्ती को ‘संदिग्ध’ और ‘अविश्वसनीय’ बताया गया है. इसके अलावा जब्ती रिपोर्ट में वस्तुओं को शामिल नहीं करने और घटनास्थल से एकत्र किए गए किसी भी सबूत को फॉरेंसिक विश्लेषण के लिए भेजने में विफल रहने के लिए अधिकारियों को फटकार भी लगाई गई है.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘इस ऑपरेशन के पीछे कोई मजबूत खुफिया जानकारी नहीं थी. गांव में जमा हुए लोगों में से किसी के पास हथियार नहीं थे और न ही वे नक्सली संगठन के सदस्य थे.’

रिपोर्ट में भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए ड्रोन और अन्य मानव रहित गैजेट्स के उपयोग का सुझाव दिया है.

राज्य कैबिनेट ने जस्टिस अग्रवाल की जांच रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है.

हालांकि सरकेगुड़ा घटना पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वीके अग्रवाल की रिपोर्ट, अभी भी राज्य के कानून विभाग के पास लंबित है. इस जांच रिपोर्ट में भी सुरक्षाकर्मियों पर भी आरोप लगाया गया था.

एडेसमेट्टा की तरह सरकेगुड़ा के लोग भी जून 2012 में बीज पंडुम पर्व के लिए एकत्र हुए थे, जब सुरक्षा बलों ने नाबालिगों सहित 17 लोगों को मार गिराया था.

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