इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मिज़ोरम, असम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.
आइजॉल/गुवाहाटी/कोहिमा/ईटानगरः मिजोरम में बीते 24 घंटों में कोरोना के 531 नए मामले दर्ज हुए हैं. इसके साथ ही राज्य में कोरोना टेस्ट की दैनिक पॉजिटिविटी दर 11.11 फीसदी है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मिजोरम देश के आठ पूर्वोत्तर राज्यों में से मिजोरम में दैनिक आधार पर कोरोना संक्रमितों की संख्या सबसे अधिक बनी हुई है.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, बीते 24 घंटों के दौरान पूर्वोत्तर में कुल नए मामलों की संख्या में से अकेले 57.28 फीसदी मामले मिजोरम में दर्ज हुए हैं.
मिजोरम में शनिवार को लगातार चौथे दिन कोरोना के मामले बढ़े हैं और 669 नए मामले दर्ज किए गए हैं, जिसके बाद राज्य में कुल कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर 1,28,217 हो गई है.
वहीं, शनिवार को कोरोना मृतकों की संख्या बढ़कर 458 हो गई है. मिजोरम में आइजॉल जिले में सबसे ज्यादा नए मामले 307 दर्ज किए गए हैं, जिसके बाद लुंगलेई में 102, चंफाई में 80 दर्ज किए गए हैं.
म्यांमार शरणार्थियों को कोविड-19 टीके की खुराक देगी मिज़ोरम सरकार
मिजोरम सरकार म्यांमार के उन नागरिकों को कोविड-19 रोधी टीकों की खुराक देने की योजना बना रही है, जिन्होंने बीते फरवरी महीने में पड़ोसी देश में सैन्य तख्तापलट के बाद राज्य में शरण ली है.
राज्य पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार, अभी म्यांमार के 12,736 लोग मिजोरम के विभिन्न हिस्सों, खासतौर से देश की सीमा के साथ लगते जिलों में रह रहे हैं.
अधिकारी ने बताया कि इन जिलों के प्राधिकारी सभी योग्य शरणार्थियों को टीके की खुराक देने की योजना बना रहे हैं. पूर्वी मिजोरम के चम्फाई जिले में सबसे अधिक 7,291, उसके बाद लांगतलाई जिले में 1746 और राज्य की राजधानी आइजोल में 1622 म्यांमार नागरिक हैं.
राज्य में शरण लेने वाले लोगों का एक बड़ा वर्ग चिन समुदाय से ताल्लुक रखता है जिसे ‘जो’ भी कहा जाता है. उनका मिजोरम के मिजो लोगों की तरह ही वंशावली और संस्कृति है. वे मुख्यत: म्यांमार के चिन राज्य के निवासी हैं जिसकी सीमा मिजोरम के साथ लगती है.
रिपोर्टों के मुताबिक, म्यांमार के चिन स्टेट के कई बच्चों सहित म्यांमार के 13,000 से अधिक नागरिकों ने इस साल फरवरी में उनके देश में सैन्य तख्तापलट के बाद मिजोरम में शरण ली थी.
मिजोरम के गृहमंत्री लालचमलियाना ने बताया कि म्यांमार के 13,000 से अधिक नागरिकों ने मौजूदा समय में मिजोरम के अलग-अलग जिलों में शरण ले रखी है.
लुंगलेई जिले के एक वरिष्ठ मेडिकल अधिकारी ने बताया कि सभी योग्य लोगों को इस कोविड-19 टीकाकरण अभियान में शामिल किया जाएगा.
अधिकारी ने बताया, ‘मिजोरम के स्थानीय लोगों के अलावा म्यांमार के लगभग 200 नागरिकों को लुंगेलेई जिले में पहले ही कोविड-19 वैक्सीन लगा दी गई है.’
उन्होंने बताया कि ठीक इसी तरह म्यांमार के लगभग 100 नागरिकों को सिरचिप जिले में कोविड-19 वैक्सीन दी गई है.
इससे पहले मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे मानवीय आधार पर म्यांमार के नागरिकों को शरण देने का अनुरोध किया था. बहरहाल केंद्र ने इस पर अभी जवाब नहीं दिया है.
मिज़ोरम में पटाखों, आकाशीय लालटेन और आतिशबाजी बनाने की अन्य सामग्री पर प्रतिबंध
मिजोरम ने त्योहारों के मौसम में पटाखों, आकाशीय लालटेन और आतिशबाजी बनाने की अन्य सामग्री पर प्रतिबंध लगा दिया है.
एक अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार ने क्रिसमस और नए साल के दौरान टॉय गन की बिक्री और रखने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें गोलियां होती हैं.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार नागरिक संस्थाओं और स्थानीय और ग्राम परिषदों के साथ मिलकर प्रतिबंध को सुनिश्चित करने के लिए आक्रामक तरीके से प्रयास करेगी.
आइजोल के पुलिस अधीक्षक सी. लालरुआइआ ने कहा कि राज्य पुलिस द्वारा गठित एक विशेष टीम जिले में दुकानों और गोदामों की नियमित जांच कर रही है.
उन्होंने लोगों से प्रदूषण मुक्त त्योहारों का आनंद लेने के लिए पटाखे, आकाशीय लालटेन और अन्य आतिशबाज़ी सामग्री के प्रयोग से बेचने और उन्हें खरीदने से परहेज करने का आग्रह किया.
असमः ‘पाकिस्तान’ के नाम पर जल परियोजना होने पर विवाद
असम के धेमाजी जिले में ‘पाकिस्तान’ के नाम पर जलापूर्ति परियोजना का नाम रखने पर यहां के स्थानीय जनजातीय समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय लोगों के विरोध के बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग (पीएचई) विभाग ने परियोजना की नेमप्लेट से ‘पाकिस्तान’ शब्द हटा दिया है.
सड़क का मूल नाम ‘पाक स्थान सुक’ है, जिसका मतलब है घुमावदार सड़क के माध्यम से पहुंचना. यह नाम बाद में बोलचाल में ‘पाकिस्तान सुक’ बन गया. यह इसी नाम से यह कई सालों से प्रचलन में है, यहां तक कि आधिकारिक दस्तावेजों में भी इसका नाम ‘पाकिस्तान सुक’ ही लिखा जाने लगा.
अब असम पीएचई विभाग ने जल परियोजना का नाम पाकिस्तान सूबा (कॉलोनी) जलापूर्ति योजना कर दिया.
पीएचई मंत्री रंजीत कुमार दास ने आश्वासन दिया था कि वह इस मुद्दे को सुलझाएंगे और त्वरित कार्रवाई करेंगे.
असम के धेमाजी की एसडीओ (सदर) नंदिता रॉय गोहैन ने जिला प्रशासन के अधिकारियों और स्टाफ के साथ स्थान का निरीक्षण करते हुए कहा, ‘परियोजना का मूल नाम पाक स्थान सुक हुआ करता था जो किसी तरह पाकिस्तान सुक हो गया और यह आधिकारिक तौर पर पीएचई विभाग के दस्तावेजों में पाकिस्तान सुक के तौर पर ही दर्ज हो गया.’
गोहैन ने कहा, ‘यहां के मौजूदा स्थानीय लोगों के पूर्वजों ने इसका नाम पाक स्थान सुक दिया था. दूरस्थ स्थान होने की वजह से यह अलग हुआ करता था और यहां पर अधिकतर अहोम और चुटिया समुदाय के लोग रहते थे. यहां कोई मुस्लिम ग्रामीण नहीं हैं.’
इस मामले पर बीते कुछ दिनों से बवाल होने के बाद पीएचई विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं करने पर बीर लच्छित सेना के कार्यकर्ताओं ने बुधवार को परियोजना की नेमप्लेट से पाकिस्तान का नाम मिटा दिया.
दास ने मामले की गंभीरता को देखते हुए निजी तौर पर धेमाजी से विधायक और शिक्षा मंत्री रनोज पेगु और असम के जल जीवन मिशन के निदेशक आकाश दीप से बात की.
गोहैन ने बाद में बताया कि परियोजना का नाम बदलकर अब बुरहाकुरी दखिन सुक कर दिया है, जो बुरहाकुरी गांव पर है. यहां रह रहे लोग ओबीसी वर्ग से हैं. यहां कोई अल्पसंख्यक शख्स नहीं है.
बुरहाकुरी गांव की प्रधान पारुक चुटिया (38) ने बताया कि पूरे गांव में 249 परिवार रहते हैं और पाकिस्तान सुक के परिवारों के लिए इस जलापूर्ति परियोजना को तैयार किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘बुरहाकुरी गांव में चार सेगमेंट हैं और पाकिस्तान सुक उनमें से एक है इसलिए इस नाम को इस तरह से उच्चारित किया जाता है लेकिन हमने आधिकारिक तौर पर कभी इसे ऐसे नहीं लिखा.’
सरकारी सूत्रों का कहना है कि पीएचई विभाग के रिकॉर्ड से पता चलता है कि 1992 से इस नाम का इस्तेमाल किया जा रहा है.
नगालैंड: मुख्यमंत्री ने कहा कि नया नगा समझौता होता है तो यह नई उपलब्धि होगी
नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो का कहना है कि केंद्र और नगा मुद्दे के समाधान के लिए वार्ता में शामिल किसी भी समूह के बीच किसी नए समझौते पर हस्ताक्षर होते हैं तो यह नई उपलब्धि (रिपीट उपलब्धि) होगी और राज्य ‘बहुत-बहुत खास’ बन जाएगा.
केंद्र सरकार 1997 से एनएससीएन (आईएम) और 2017 से नगा नेशनल पॉलिटकल ग्रुप (एनएनपीजी) के साथ अलग अलग बातचीत कर रही है. एनएनपीजी में सात समूह हैं.
एक आधिकारिक कार्यक्रम के इतर रियो ने पत्रकारों से कहा, ‘वार्ता जारी है. वे बातचीत करने वाले पक्ष हैं और मैं नहीं कह सकता हूं कि क्या होने जा रहा है या क्या हो रहा है. यह उन पर है कि वे (मुद्दे पर कुछ) कहें.’
उन्होंने कहा कि एनएससीएन (आईएम) के साथ फ्रेमवर्क समझौता होना या एनएनपीजी के साथ सहमत स्थिति का मतलब नगा लोगों की विशिष्टता, इतिहास, संस्कृति और परंपरा की रक्षा करने के तरीके के बारे में एक प्रणाली तैयार करना है.
केंद्र सरकार और एनएससीएन (आईएम) ने 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जबकि एनएनपीजी ने नवंबर 2017 में केंद्र के साथ सहमत स्थिति पर हस्ताक्षर किए थे.
रियो ने कहा, ‘हमारे साथ और भी बहुत सी नई चीजें जोड़ी जाएंगी और अगर कोई समझौता होता है तो हम एक बहुत ही खास राज्य होंगे.’
फ्रेमवर्क समझौता 18 साल में 80 से ज्यादा दौर की बातचीत के बाद हुआ था. पहली सफलता 1997 में तब मिली थी जब दशकों के विद्रोह के बाद संघर्ष विराम समझौता हुआ था. नगालैंड में 1947 में भारत को आजादी मिलने के थोड़े समय बाद ही विद्रोह शुरू हो गया था.
एनएससीएन (आईएम) और केंद्र के बीच बातचीत रुक गई थी, क्योंकि एनएससीएन (आईएम) ने तत्कालीन वार्ताकार आरएन रवि के साथ 31 अक्टूबर 2019 के बाद से बातचीत करने से मना कर दिया था.
नगा के लिए अलग झंडा और संविधान की अपनी मांग पर एनएससीएन (आईएम) के अड़े रहने की वजह से कोई अंतिम समाधान हासिल नहीं हुआ है, जिसे केंद्र ने खारिज कर दिया है.
एलएसी पर अपनी ओर गांव बना रहा है चीन, कोई अतिक्रमण नहीं: सीडीएस बिपिन रावत
प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) बिपिन रावत ने गुरुवार को कहा कि चीन के भारतीय क्षेत्र में आने और एक नया गांव बनाने के बारे में जारी विवाद सही नहीं है और संदर्भित गांव वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार पड़ोसी देश के क्षेत्र में है.
रावत ने साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि चीन ने एलएसी की भारतीय अवधारणा का उल्लंघन नहीं किया है.
अमेरिकी रक्षा विभाग ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि एलएसी के पूर्वी सेक्टर में चीन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और भारत के अरुणाचल प्रदेश के बीच विवादित क्षेत्र में एक बड़ा गांव निर्मित किया है.
इससे पहले अमेरिकी रिपोर्ट पर एक आधिकारिक प्रतिक्रिया में विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत ने अपनी जमीन पर न ही चीन के अवैध कब्जे को और न ही किसी अनुचित चीनी दावों को स्वीकार किया है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को एक साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, ‘चीन ने पिछले कई वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ-साथ उन क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियां की हैं, जिन पर उसने दशकों पहले अवैध रूप से कब्जा किया था. भारत ने अपनी जमीन पर न तो इस तरह के अवैध कब्जे को और न ही चीन के अनुचित दावों को कभी स्वीकार किया है.’
हालांकि रावत ने कहा, ‘जहां तक हमारा सवाल है, एलएसी की तरफ हमारी ओर ऐसा कोई गांव नहीं बना है. मौजूदा विवाद कि चीनी हमारे क्षेत्र में आ गए हैं और एक नया गांव बनाया है, सही नहीं है.’
सीडीएस ने कहा, ‘हालांकि मैं जो कहना चाहता हूं वह यह है कि चीनी संभवतः एलएसी के साथ लगते क्षेत्र में अपने नागरिकों या अपनी सेना के लिए गांवों का निर्माण कर रहे हैं, खासकर हालिया संघर्ष के बाद.’
रावत ने यह भी कहा कि भारतीय और चीनी, दोनों सेनाओं की एलएसी पर अपनी-अपनी चौकियां हैं.
उन्होंने कहा, ‘जहां भी चीन ने अपनी चौकियां विकसित की है, हमने उस क्षेत्र में मौजूद कुछ पुरानी जर्जर झोपड़ियां देखी थी.’
उन्होंने कहा कि उनमें से कुछ झोपड़ियों को तोड़ दिया गया है और नए बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा रहा है और आधुनिक झोपड़ियां भी बन रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘हां, हो सकता है कि उनमें से कुछ गांवों का आकार बढ़ गया हो. मुझे लगता है कि शायद ये चीनी सैनिकों के लिए हैं और बाद में, वे कभी-कभी अपने परिवारों के आने पर उनकी सुविधा के लिए ये योजना बना रहे होंगे. … हमारे नागरिक वहां जा रहे हैं, हमारे परिवार अग्रिम क्षेत्रों में जा रहे हैं, इसलिए वे यह सब देख रहे हैं.’
रावत ने कहा, ‘वे (चीनी सैनिक) मुख्य भूमि से हजारों मील दूर रह रहे हैं. और वे हमारे लोगों को देखते हैं कि वे बहुत प्रसन्न मुद्रा में हैं. उन्हें बहुत जल्दी-जल्दी घर जाने को मिलता है.’
उन्होंने कहा कि एलएसी पर तैनात भारतीय सैनिकों को साल में तीन बार नहीं तो कम से कम दो बार घर जाने की छुट्टी मिलती है. उन्होंने कहा कि चीनी सैनिकों के पास यह सुविधा नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘वे इस बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहे हैं, इस तरह के तथाकथित गांव, जो एलएसी के पार उनके क्षेत्र में हैं. उन्होंने एलएसी की हमारी अवधारणा का कहीं भी उल्लंघन नहीं किया है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि इस तरह के गांव का विकास उनकी (चीन) ओर से धौंस दिखाने का एक प्रयास है.
इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल नहीं, मैं इसे धौंस जमाना नहीं कहूंगा. इन गांवों के विकास के साथ वह यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अपने सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुंच बनायें. यह कुछ ऐसा है जो हमें भी करना चाहिए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)