दिल्ली दंगों के सिलसिले में दर्ज 758 प्राथमिकी में से 361 में आरोप-पत्र दाख़िल, 67 में आरोप तय: पुलिस

दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल सीएए के विरोध में प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में हिंसा और नफरत फैलाने के संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि वह राष्ट्रीय राजधानी में फरवरी 2020 में हुए दंगे के सिलसिले में दर्ज आपराधिक मामलों की स्थिति रिपोर्ट हलफनामे के साथ जमा करे.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल सीएए के विरोध में प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में हिंसा और नफरत फैलाने के संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. अदालत ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि वह राष्ट्रीय राजधानी में हुए दंगे के सिलसिले में दर्ज आपराधिक मामलों की स्थिति रिपोर्ट हलफ़नामे के साथ जमा करे.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि वह राष्ट्रीय राजधानी में फरवरी 2020 में हुए दंगे के सिलसिले में दर्ज आपराधिक मामलों की स्थिति रिपोर्ट हलफनामे के साथ जमा करे.

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ को पुलिस ने जानकारी दी कि दिल्ली दंगों के सिलसिले में 758 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 361 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किया गया है और 67 मामलों में आरोप तय किए गए हैं.

इसके बाद अदालत ने निचली अदालतों में लंबित मामलों की स्थिति की जानकारी तलब की.

इस पीठ में जस्टिस ज्योति सिंह भी शामिल हैं, जो पिछले साल नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में हिंसा और नफरत फैलाने के संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही हैं.

अदालत ने कहा, ‘हम प्रतिवादी (दिल्ली पुलिस) को और विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं जिसमें निचली अदालतों के समक्ष लंबित मामलों की विस्तृत जानकारी हो.’

अदालत ने इसी के साथ ही रेखांकित किया कि मौजूदा हलफनामा रिकॉर्ड पर दर्ज नहीं है. उच्च न्यायालय अब इस मामले पर 28 जनवरी को सुनवाई करेगा.

गौरतलब है कि अक्टूबर में दाखिल हलफनामे में बताया गया था कि 287 मामलों में अब भी आरोप-पत्र दाखिल किया जाना है और चार प्राथमिकी को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है.

दिल्ली पुलिस ने बताया कि सभी लंबित मामलों में कानूनी प्रक्रिया अंतिम चरण में है, जबकि दो मामलों में फैसला आ चुका है और आरोपियों को बरी किया गया है.

हलफनामा में बताया गया, ‘कुल दर्ज 758 प्राथमिकी में से 695 मामलों की जांच उत्तर पूर्व दिल्ली पुलिस कर रही है. 62 मामले हत्या जैसे गंभीर अपराध के हैं, जिन्हें अपराध शाखा को स्थानांतरित किया गया है और वह तीन विशेष जांच दलों (एसआईटी) का गठन कर इनकी जांच की जा रही है और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा इनकी निगरानी की जा रही है. एक मामला, जो दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे की साजिश रचने से जुड़ा है, उसकी जांच विशेष प्रकोष्ठ कर रहा है.’

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ के समक्ष दायर एक स्थिति रिपोर्ट (Status Report) में दिल्ली पुलिस ने कहा कि पुलिस द्वारा कुल 695 मामलों की जांच की जा रही है और 315 मामलों में आरोप-पत्र दायर किए गए हैं. इसमें आगे कहा गया कि 695 मामलों में से 56 मामलों में आरोप तय हो चुके हैं और दो मामलों में सुनवाई शुरू होने से पहले ही आरोपियों को क्लीनचिट दे दी गई थी.

पिछले साल की हिंसा से संबंधित याचिकाओं को दिल्ली पुलिस की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक रजत नायर द्वारा दायर किया गया.

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुईं, सीएए के समर्थकों और उसका विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद कम से कम 53 लोग मारे गए थे, जबकि 700 से अधिक घायल हो गए थे.

रिपोर्ट के अनुसार, अदालत कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही है, जिनमें से एक में आरोप लगाया गया है कि कई राजनेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए जिससे दंगे भड़के.

कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग के अलावा कुछ याचिकाओं में एसआईटी का गठन करने, कथित रूप से हिंसा में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने, गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की जानकारी देने सहित अन्य राहत की मांग की गई है.

अदालत दिल्ली निवासी अजय गौतम की एक जनहित याचिका पर भी सुनवाई कर रही है, जिसमें हिंसा की यूएपीए [गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम] के तहत एनआईए जांच की मांग की गई है.

याचिका में अदालत से केंद्र को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को प्रदर्शनों के पीछे ‘राष्ट्र विरोधी ताकतों’ का पता लगाने और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की भूमिका की जांच करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है, जिसने कथित तौर पर विरोध को प्रेरित और समर्थन करने के लिए ‘फंड’ किया है.

अपने जवाब में पुलिस ने अदालत को बताया था कि उसने अपराध शाखा के तहत पहले ही तीन एसआईटी बना लिए हैं और अब तक इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उसके अधिकारी हिंसा में शामिल थे. इसमें कहा गया था कि दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए लोगों के परिवारों को सूचित कर दिया गया था.

गुरुवार को अदालत ने मामले की सुनवाई 28 जनवरी को तय की.

अदालत ने कहा, ‘हम प्रतिवादी (दिल्ली पुलिस) को एक और विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं, जिसमें निचली अदालतों में लंबित मामलों का विवरण दिया गया है.’

दिल्ली पुलिस ने बताया कि सभी लंबित मामलों में कानूनी प्रक्रिया अंतिम चरण में है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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