यौन संबंधों में नहीं का मतलब नहीं, बेशक पूर्व में हां क्यों न कहा होः हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि न का मतलब न है, फिर बेशक शुरुआत में हामी क्यों न रही हो. सहमति नहीं होना पूर्व में दी गई सहमति को ख़त्म कर देता है. जबरन यौन संबंध असहमति से बने संबंध कहलाएंगे, जो आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दंडात्मक है.

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(फोटो साभार: Simlyn J/Feminism In India)

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि न का मतलब न है, फिर बेशक शुरुआत में हामी क्यों न रही हो. सहमति नहीं होना पूर्व में दी गई सहमति को ख़त्म कर देता है. जबरन यौन संबंध असहमति से बने संबंध कहलाएंगे, जो आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दंडात्मक है.

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का कहना है कि यौन संबंधों के लिए पूर्व में दी गई सहमति भविष्य में हर बार प्रभावी नहीं होगी, बेशक दो लोगों के बीच में पूर्व में सहमति से संबंध ही क्यों न बने हो.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस विवेक पुरी ने कहा कि न का मतलब न है, फिर बेशक शुरुआत में हां ही क्यों न कहा हो.

उन्होंने कहा, ‘सहमति वापस लेना पूर्व में दी गई सहमति को खत्म कर देता है इसलिए जबरन यौन संबंध बनाना असहमति से बने संबंध कहलाते हैं, जो आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दंडात्मक है.’

जस्टिस पुरी ने यह टिप्पणी ऐसे मामले में दी है, जहां 35 साल की एक तलाकशुदा महिला ने एक शख्स पर बिना उसकी सहमति के यौन संबंध बनाने के आरोप लगाए.

यह शख्स महिला के साथ पूर्व में लिव इन रिलेशनशिप में रह चुका है.

मामले में याचिका दायर करने वाले आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि महिला ने प्रेम संबंध असफल रहने पर जबरन वसूली के मकसद से यह मामला दर्ज कराया है और दोनों लोगों के पूर्व में सहमति से बने संबंधों के आधार पर मामला बनाने की कोशिश की.

जस्टिस पुरी ने यह कहकर इसका जवाब दिया कि यह सच है कि कानून ने लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता दी है और कानून महिलाओं के अपने हिसाब से यौन संबंध बनाने के अधिकारों को भी स्वीकार करता है.

जस्टिस पुरी ने कहा, ‘यह धारणा कि अगर दो लोगों के बीच किसी कारण से पूर्व में सहमति से यौन संबंध बने हैं तो ऐसे में पूर्व में बने यौन संबंधों को भविष्य के लिए लागू नहीं माना जाएगा. इसका अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि आरोपी को हमेशा के लिए अभियोक्ता शोषण करने का अधिकार मिल गया है.’

आरोपी ने अपने दावे की पुष्टि के लिए कि दोनों के बीच पूर्व में सहमति से संबंध बने हैं, उसके लिए अदालत के समक्ष दोनों पक्षों की तस्वीरें पेश की.

हालांकि, अदालत ने कहा कि तस्वीरें केवल यह सिद्ध कर सकती हैं कि दोनों पक्ष एक दूसरे को जानते हैं लेकिन प्रथमदृष्टया इससे यह नहीं माना जा सकता कि उनकी आरोपी से सहमति थी.

जस्टिस पुरी ने कहा कि महिला द्वारा दायर एफआईआर में सहमति का कोई उल्लेख नहीं है. इसमें जबरन यौन संबंधों का आरोप लगाया गया है.

उन्होंने कहा कि जांच पूरी हो गई है और चालान पेश किया जा चुका है, अभियोक्ता की जांच अभी बाकी है और इसके पूरे होने पर ही आरोप तय किए जा सकते हैं. इसके साथ ही अदालत ने आरोपी की याचिका खारिज कर दी.

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