देशभर में 17,914 बच्चे सड़कों पर रहते हैं, ऐसे बच्चे सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र में: बाल संरक्षण आयोग

सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास नीति संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने यह जानकारी दी है. अदालत ने पुनर्वास नीति तैयार करने संबंधी सुझाव लागू करने का निर्देश देते हुए कहा कि अभी तक सड़क पर रहने वाले केवल 17,914 बच्चों की जानकारी उपलब्ध कराई गई है, जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया)

सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास नीति संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने यह जानकारी दी है. अदालत ने पुनर्वास नीति तैयार करने संबंधी सुझाव लागू करने का निर्देश देते हुए कहा कि अभी तक सड़क पर रहने वाले केवल 17,914 बच्चों की जानकारी उपलब्ध कराई गई है, जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास नीति तैयार करने संबंधी सुझाव लागू करने का सोमवार को निर्देश दिया और कहा कि ये सुझाव केवल कागजों पर नहीं रहने चाहिए.

जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि अभी तक सड़क पर रहने वाले केवल 17,914 बच्चों की जानकारी उपलब्ध कराई गई है, जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि देश भर में 17,914 सड़क पर रहने वाले बच्चे हैं. आयोग ने यह भी कहा कि सड़कों पर रहने वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में है.

आयोग द्वारा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे के मुताबिक, 17,914 बच्चे सड़कों पर रहते हैं, जिनमें से 9,530 बच्चे अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहते हैं, 834 बच्चे अकेले सड़कों पर रहते हैं और 7,550 बच्चे दिन में सड़कों पर रहते हैं लेकिन रात में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों में वापस चले जाते हैं. इन 17,914 बच्चों में से 10,359 बच्चे लड़के और 7,554 लड़कियां हैं.

एनसीपीसीआर ने सड़कों रहने वाले बच्चों की स्थिति पर दायर एक स्वत: संज्ञान याचिका के संबंध में बीते 17 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के जवाब में अपना अनुपालन हलफनामा दायर किया है.

यह नवीनतम आंकड़ा बीते 15 फरवरी तक राज्यों द्वारा संकलित किया गया और आयोग द्वारा बनाए गए ‘बाल स्वराज’ पोर्टल पर अपलोड किया गया. इस आंकड़े में उन 2 लाख बच्चों को शामिल नहीं किया गया है, जिन्हें इससे पहल ‘सेव द चिल्ड्रन’ संगठन द्वारा एनसीपीसीआर के लिए संकलित किया गया था.

उम्र के हिसाब से अलग-अलग समूहों में पाया गया है कि सड़कों पर रहने वाले बच्चों का सबसे बड़ा समूह 7,522 बच्चों की उम्र 8-13 साल के बीच है और इसके बाद 4-7 साल की उम्र के 3,954 बच्चे हैं.

आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र में सड़क पर रहने वाले बच्चों की सबसे बड़ी संख्या 4,952 है, इसके बाद गुजरात में 1,990, तमिलनाडु में 1,703, दिल्ली में 1,653 और मध्य प्रदेश में 1,492 बच्चे हैं. लेकिन सड़कों पर अकेले रहने वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा 270 उत्तर प्रदेश में है.

आयोग ने कहा है कि सड़क पर रहने वाले बच्चे सबसे अधिक धार्मिक स्थलों, ट्रैफिक सिग्नलों, औद्योगिक क्षेत्रों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों और पर्यटन स्थलों पर पाए जाते हैं.

एनसीपीसीआर ने 17 राज्यों में 51 धार्मिक स्थलों की भी पहचान की है, जहां बाल भिखारी, बाल श्रम और साथ ही बाल शोषण अधिक प्रचलित है.

आयोग ने इन स्थानों का तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट पहले ही शुरू कर दिया है और 27 धार्मिक स्थलों का अध्ययन पहले ही पूरा किया जा चुका है.

विभिन्न आयु समूहों में बड़ी संख्या में बच्चे सड़कों पर रहते हैं, यह संख्या 14-18 वर्ष के आयु समूहों के बीच कम हो जाती है. आयोग ने कहा है कि संख्या में इस गिरावट की जांच की जानी चाहिए, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इन बच्चों की अवैध व्यापार में तस्करी की जा रही है.

आयोग ने आगे कहा है कि कानून द्वारा अनिवार्य बाल एवं किशोर श्रम पुनर्वास कोष अधिकांश राज्यों में नहीं बनाया गया है.

शीर्ष अदालत ने दोहराया कि संबंधित प्राधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के वेब पोर्टल पर आवश्यक सामग्री को बिना किसी चूक के अद्यतन करना होगा.

न्यायालय ने कहा कि बच्चों को बचाना एक अस्थायी काम नहीं होना चाहिए और उनका पुनर्वास सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

पीठ ने कहा, ‘हमने सुझावों की ध्यान से समीक्षा की है. ये सुझाव समग्र हैं और इनमें हरसंभव परिस्थिति को ध्यान में रखा गया है. राज्य सरकारें इनमें कुछ सुधारों का सुझाव दे सकती हैं. इसके बाद राज्य सरकारें/केंद्रशासित प्रदेश एनसीपीसीआर के इन सुझावों को लागू करें.’

उसने कहा, ‘एनसीपीसीआर से सुझावों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए समय-समय पर समीक्षा करने का निर्देश दिया जाता है. बेहतर होगा कि यदि यह समीक्षा महीने में एक बार की जाए.’

शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एनसीपीसीआर को पूरा सहयोग देने का निर्देश दिया.

एनसीपीसीआर की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने आरोप लगाया कि राज्यों के अधिकारी जांच एवं निरीक्षण में सहयोग नहीं कर रहे हैं.

इस मामले में एक पक्ष की ओर से वकील टीके नायक पेश हुए. मामले में आगे की सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी.

शीर्ष अदालत ने पहले निर्देश दिया था कि बाल तस्करी के पीड़ित बच्चों के बयान या तो बच्चा जिस जिले में रह रहा है, उसके जिला कानूनी सेवा प्राधिकारण के कार्यालय या जिला अदालत परिसर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये दर्ज किए जाएं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)