वातावरण में स्थायी तौर पर बढ़ते कार्बन की मात्रा ख़तरनाक: वैज्ञानिक

प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. सोनकर ने कहा, लोगों में यह गलत धारणा है कि मास्क पहन लेने अथवा घर में एयर प्यूरीफायर लगा लेने से वे ख़ुद को सुरक्षित कर पा रहे हैं.

/
(फाइल फोटो: पीटीआई)

प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. सोनकर ने कहा, लोगों में यह गलत धारणा है कि मास्क पहन लेने अथवा घर में एयर प्यूरीफायर लगा लेने से वे ख़ुद को सुरक्षित कर पा रहे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने वातावरण में कार्बन की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण बताते हुए कहा है कि प्राकृतिक जीवन शैली की ओर लौटने के अलावा इसका अन्य कोई ठोस उपचार नहीं है.

दुनिया का सबसे बड़ा और महंगा काला मोती बनाने के लिए दुनिया भर में विख्यात डॉ. सोनकर का मानना है कि प्रदूषण को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच सबसे महत्वपूर्ण चिंता वातावरण में बढ़ते कार्बन डाईआॅक्साइड की मात्रा है जो न सिर्फ जलवायु परिवर्तन में बदलाव का मुख्य कारण बन रही है बल्कि पूरे मानव अस्तित्व के सामने एक यक्ष प्रश्न बन कर खड़ी है.

डॉ. सोनकर ने कहा कि वातावरण में स्थाई रूप से बढ़ रहे कार्बन डाईआॅक्साइड का अनुपात धरती पर जीवन को घातक स्थिति की ओर ले जा रहा है क्योंकि अभी कुछ वर्ष पहले तक वातावरण में कार्बन डाईआॅक्साइड की मात्रा 350 पीपीएम थी जो अब बढ़कर 400 पीपीएम पहुंच गई है.

उन्होंने कहा कि अनियंत्रित व अधिक मात्रा में कार्बन डाईआॅक्साइड के उत्सर्जन के कारण वातावरण में इसकी मात्रा स्थाई रूप से बढ़ गई है व निरंतर बढ़ती जा रही है.

उन्होंने कहा कि पेड़ों में 50 प्रतिशत कार्बन होता है. पेड़ वातावरण से कार्बन डाईआॅक्साइड लेकर प्रकाश की मदद से उसमें से कार्बन ले लेते हैं और आॅक्सीजन वापस वातावरण में छोड़ देते हैं. किन्तु वातावरण में मौजूद अतिरिक्त कार्बन डाईआॅक्साइड पेड़ों को अतिरिक्त कार्बन सोखने के लिए बाध्य करते हैं जिसके कारण पेड़-पौधों की मूल रचना में परिवर्तन हो रहा है और अतिरिक्त कार्बन के कारण पेड़ों में अतिरिक्त जल की आवश्यकता भी बढ़ जाती है.

उन्होंने कहा कि ऐसा मनुष्यों के भोजन में उपयोग आने वाली फसलों के साथ भी हो रहा है जिसके कारण अब हमारे फल सब्जियों में पोषक तत्वों व विटामिंस की वह मात्रा नहीं पाई जा रही है जो आज से पचास वर्ष पहले हुआ करती थी.

डॉ. सोनकर ने कहा, सामान्य तौर पर प्रकृति में कार्बन को नियंत्रित करने वाले दो प्रमुख स्रोत- पेड़ और समुद्र हैं जिन्हें कार्बन सिंक भी बोला जाता है. पौधे कार्बन डाईआॅक्साइड लेकर उसमें से कार्बन का उपयोग कर ख़ुद को बढ़ाने के लिए करते हैं और आॅक्सीजन वातावरण में मुक्त कर देते हैं जबकि समुद्र कार्बन को सोख लेता है जिसे समुद्री जीव कार्बन और आॅक्सीजन को कैल्शियम से जोड़कर कैल्शियम कार्बोनेट बनाते हैं और इसी से समुद्र के अंदर मूंगे के पर्वत कोरल, सीप, शंख, इत्यादि का सृजन होता है और जैविक रत्न मोती भी इनमें से एक है.

उन्होंने कहा, मौजूदा स्थितियों में जितनी मात्रा में कार्बन का उत्पादन हो रहा है उसका लगभग एक चौथाई हिस्सा ही पौधे और समुद्र ले पा रहे हैं जबकि शेष कार्बन वातावरण में जा रहा है जो सैकड़ों साल तक बने रह सकते हैं.

डॉ. सोनकर ने कहा कि लोगों में यह गलत धारणा है कि मास्क पहन लेने अथवा घर में एयर प्यूरीफायर लगा लेने से वे ख़ुद को सुरक्षित कर पा रहे हैं जबकि कार्बन का बढ़ता स्तर कई गंभीर चुनौतियों को जन्म दे रहा है जिससे निपटने का ठोस प्रयास करना होगा.

डॉ. सोनकर ने कहा, एक औसत आदमी प्रतिदिन करीब 550 लीटर हवा का इस्तेमाल करता है. हवा में आॅक्सीजन की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत होती है. इंसान का शरीर पांच प्रतिशत सोखता है और बाकी 15 प्रतिशत वातावरण में कार्बन डायआक्साईड के साथ वापस छोड़ देता है.

उन्होंने कहा, एक औसत आदमी प्रतिदिन 2.3 पॉन्ड कार्बन डाईआॅक्साइड को वातावरण में छोड़ता है. किसी स्थान पर अगर कार्बन की मात्रा बढ़कर एक लाख पीपीएम हो जाए तो उसे घातक जमाव यानी लेथल कंसंट्रेशन बोला जाता है. अगर किसी कमरे में सोने की परिस्थिति में यह स्थिति उत्पन्न हो जाए तो इंसान की मौत भी हो सकती है.

इसके अलावा पेड़ों द्वारा अधिक मात्रा में कार्बन का उपभोग करने से उसकी पत्तियों में कीड़े लगने की आशंका बढ़ जाती है जिससे निजात पाने के लिए अधिक मात्रा में कीटनाशकों का छिड़काव करने की नौबत आ रही है. ये कीटनाशक किसी न किसी तरह भोजन के साथ-साथ भूजल को और ज़हरीला बना रहा है क्योंकि बरसात में यह कीटनाशक पानी के साथ वहां पहुंचता है. इसके अलावा किसानों की खेती की लागत बढ़ रही है.

उन्होंने कहा कि इन ख़तरों से निपटने के लिए बहुत गंभीर प्रयास करने होंगे और जितना संभव हो प्राकृतिक जीवन शैली की ओर लौटना होगा. जमीन से निकलने वाले कच्चे तेल को जलाना कम करने की आवश्यकता है और वैकल्पिक ईंधन अपनाने की ओर कदम बढ़ाना होगा जो वायुमंडल को कम से कम नुकसान पहुंचाए.

उन्होंने कहा, वाहनों में एक ऐसे फिल्टर को लगाने के बारे में सोचा जा सकता है जो कार्बन को संग्रहित कर उन्हें इकट्ठा कर दे और कार्बन डाईआॅक्साइड से आॅक्सीजन को अलग कर दे जिसे अंजाम देना बहुत जटिल नहीं है.

उन्होंने कहा कि आज विकास के नाम पर जीवन हरण हो रहा है. एक कमरे को ठंडा करने के लिए वातावरण की गर्मी को कई गुना बढ़ा दिया जाता है.

वे कहते हैं, निगमित क्षेत्र ऐसी स्थिति में भी तरह-तरह के मास्क, एयर प्यूरीफायर तथा कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा देकर नए बाजार की ओर निगाह गड़ाए हैं जबकि यह दिशाहीन विकास मानव अस्तित्व के ही सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है.

pkv games https://sobrice.org.br/wp-includes/dominoqq/ https://sobrice.org.br/wp-includes/bandarqq/ https://sobrice.org.br/wp-includes/pkv-games/ http://rcgschool.com/Viewer/Files/dominoqq/ https://www.rejdilky.cz/media/pkv-games/ https://postingalamat.com/bandarqq/ https://www.ulusoyenerji.com.tr/fileman/Uploads/dominoqq/ https://blog.postingalamat.com/wp-includes/js/bandarqq/ https://readi.bangsamoro.gov.ph/wp-includes/js/depo-25-bonus-25/ https://blog.ecoflow.com/jp/wp-includes/pomo/slot77/ https://smkkesehatanlogos.proschool.id/resource/js/scatter-hitam/ https://ticketbrasil.com.br/categoria/slot-raffi-ahmad/ https://tribratanews.polresgarut.com/wp-includes/css/bocoran-admin-riki/ pkv games bonus new member 100 dominoqq bandarqq akun pro monaco pkv bandarqq dominoqq pkv games bandarqq dominoqq http://ota.clearcaptions.com/index.html http://uploads.movieclips.com/index.html http://maintenance.nora.science37.com/ http://servicedesk.uaudio.com/ https://www.rejdilky.cz/media/slot1131/ https://sahivsoc.org/FileUpload/gacor131/ bandarqq pkv games dominoqq https://www.rejdilky.cz/media/scatter/ dominoqq pkv slot depo 5k slot depo 10k bandarqq https://www.newgin.co.jp/pkv-games/ https://www.fwrv.com/bandarqq/