गुजरात राज्य पेट्रोलियम कॉरपोरेशन में 30,651 करोड़ का घोटाला: कांग्रेस

सरकारी खजाने को 19,576 करोड़ का लगाया चूना. नजदीकी अधिकारियों को नवाजे गए ऊंचे पद. विदेशी मुद्रा के नाम पर 10,651 करोड़ बाहर ले जाया गया और गुम हो गया.

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सरकारी खजाने को 19,576 करोड़ का लगाया चूना. नजदीकी अधिकारियों को नवाजे गए ऊंचे पद. विदेशी मुद्रा के नाम पर 10,651 करोड़ बाहर ले जाया गया और गुम हो गया.

Gujarat Assembly Election (1)

नई दिल्ली: गुजरात चुनाव के पहले मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने गुरुवार और शुक्रवार को लगातार दो दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रदेश की भाजपा सरकार पर 30651 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया है.

कांग्रेस की ओर से पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और अजय कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेस में और उसके बाद प्रेस रिलीज जारी करके आरोप लगाया है कि मोदी के मुख्यमंत्री रहते गुजरात राज्य पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (जीएसपीसी) में गुजरात सरकार एवं बैंकों का 19,576 करोड़ रुपये डुबो दिया.

पार्टी का दावा है कि गुजरात मॉडल के नाम पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने सांठगांठ करने वाले पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाया और सरकारी निगम को नुकसान पहुंचाया.

कांग्रेस प्रवक्ता अजय कुमार ने कहा कि मोदी ने 2005 में घोषणा की थी कि जीएसपीसी को केजी बेसिन में 2,20,000 करोड़ रुपये के मूल्य का 20 हजार अरब घन फीट गैस का भंडार मिला. लेकिन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग के अनुसार जीएसपीसी को अभी तक कोई गैस नहीं मिली. उन्होंने कैग की रिपोर्ट के आधार पर दावा किया कि जीएसपीसी में, गुजरात सरकार एवं बैंकों का 19,576 करोड़ रुपये डुबो दिया.

जीएसपीसी से ही जुड़े एक अन्य मामले में कांग्रेस ने दावा किया है कि गुजरात की जनता का 10,651 करोड़ रुपया विदेशी मुद्रा के नाम पर खर्च किया गया लेकिन इसका जिक्र कॉरपोरेशन के अकाउंट में नहीं है. सुरजेवाला ने दावा किया कि विदेशी मुद्रा के नाम पर 10,651 करोड़ खर्चा हो गया और यह पैसा गुम हो गया. इतनी बड़ी रकम कहां गई, किसके द्वारा गबन किया गया, इसका किसके द्वारा इस्तेमाल किया गया, इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है.

जीएसपीसी में 20,000 करोड़ का घोटाला

‘जीरो गैस, लुट गया गुजरात का कैश’ शीर्षक से जारी प्रेस नोट में कांग्रेस ने कहा है कि खोजी पत्रकारिता द्वारा किए एक बड़े रहस्योद्घाटन में 20,000 करोड़ रुपये के ‘जीएसपीसी घोटाले’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका, जिम्मेदारी व जवाबदेही पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.

पार्टी के मुताबिक, घोटाले के तथ्यों और सबूतों से साबित होता है कि क्रोनी कैपिटलिज़्म (पूंजीपति मित्रवाद), देश व अंतरराष्ट्रीय गैस रिज़र्व की खरीद में गुजरात सरकार के खजाने को हजारों करोड़ का चूना लगाया गया और निजी व्यक्तियों तथा कंपनियों को सरकार के पैसे से फायदा पहुंचाया गया.

गुरुवार को जारी प्रेस रिलीज में कहा गया कि 26 जून, 2005 को नरेंद्र मोदी ने पत्रकार वार्ता में घोषणा की कि जीएसपीसी को केजी बेसिन में 50 बिलियन अमेरिकी डाॅलर यानि 2,20,000 करोड़ की 20 ट्रिलियन क्यूबिक फीट (टीसीएफ) गैस का भंडार मिला है. उन्होंने दावा किया था कि ‘गुजरात में नल खोलोगे तो गैस आएगी’.

17 जुलाई, 2008 को नरेंद्र मोदी ने फिर एक घोषणा की कि ‘अब जीएसपीसी 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर यानी 4,40,000 करोड़ रुपये की गैस का उत्पादन करेगा. लेकिन खोजी पत्रकारिता व सीएजी रिपोर्ट के जरिये झूठ, भ्रष्टाचार, गड़बड़झाले और घोटाले का पर्दाफाश हो गया है.

कांग्रेस ने दावा किया कि गुजरात की मोदी सरकार ने जीएसपीसी में सरकारी खजाने व बैंकों का 19,576 करोड़ रुपया तो केजी बेसिन गैस ब्लाॅक में डुबो दिया, लेकिन 13 साल में गैस निकली ही नहीं. सरकारी खजाने को हासिल हुआ- ‘ज़ीरो गैस, ज़ीरो मुनाफा’.

सीएजी आॅडिट के मुताबिक, जीएसपीसी 64 ‘गैस ब्लाॅक्स’ की मालिक थी. जीएसपीसी ने इन 64 गैस ब्लाॅक्स में से 45 गैस ब्लाॅक्स को सरेंडर कर दिया, जिससे 2,992.72 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

इनमें से 11 ‘ओवरसीज़ गैस ब्लाॅक्स’ थे (5 मिस्र में, 3 यमन में, 2 इंडोनेशिया में व 1 आॅस्ट्रेलिया में), जिससे सरकारी राजस्व को 1757.46 करोड़ का नुकसान हुआ.

पार्टी दावा कर रही है कि बगैर किसी टेंडर के जीएसपीसी ने दो ‘ज्वाइंट वेंचर पार्टनर’ बना लिए. ये थे- ‘जियो ग्लोबल रिसोर्सेस’ और ‘जुब्लिएंट आॅफशोर ड्रिलिंग प्राइवेट लिमिटेड’. दोनों कंपनियों को अलग-अलग 10-10 प्रतिशत हिस्सा दिया गया. कमाल की बात यह है कि जियो ग्लोबल रिसोर्सेस को 10 प्रतिशत हिस्सा मुफ्त में दिया गया, जबकि मोदी जी के मुताबिक जीएसपीसी के पास 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का गैस भंडार था.

इतना ही नहीं, जीएसपीसी ने इन दोनों प्राइवेट कंपनियों की ओर से 2,319.43 करोड़ रुपये का खर्च भी किया, जिसकी एक फूटी कौड़ी भी इन कंपनियों ने सरकार को वापस नहीं दी. 2,319.43 करोड़ रुपये का सीधा नुकसान सरकारी खजाने को हुआ.

मोदी के नजदीकी लोगों को पद, पैसा और ईनाम

जीएसपीसी ने कई आॅयल व गैस ब्लाॅक्स में एक और कंपनी गुजरात नेचुरल रिसोर्सेस लिमिटेड (जीएनआरएल) से भी ज्वाइंट वेंचर किया. जीएनआरएल उस समय के गुजरात के पेट्रोलियम मंत्री, सौरभ पटेल व उनके परिवार की कंपनी है. मोदी जी की नाक के नीचे उनके मंत्री अपने विभाग की सरकारी कंपनी से ज्वाइंट वेंचर कर रहे थे. जीएनआरएल का नाम ‘पनामा पेपर्स’ में नामित दो कंपनियों से जुड़ा है, जिन्हें जीएनआरएल की सब्सिडियरी बताया जाता है.

जीएसपीसी से जुड़े सब अधिकारी भारत सरकार में सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं. जब गुजरात का 20,000 करोड़ जीएसपीसी में डूब रहा था, उसी समय नरेंद्र मोदी ने उर्जित पटेल को जीएसपीसी का ‘इंडिपेंडेंट डायरेक्टर’ व ‘चेयरमैन, आॅडिट कमिटी’ नियुक्त कर रखा था. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें आरबीआई का गवर्नर नियुक्त किया गया.

इसी प्रकार डीजे पांड्यन, जो जीएसपीसी के चीफ एक्ज़िक्यूटिव आॅफिसर थे, मोदी जी ने उन्हें अक्टूबर, 2014 में गुजरात का चीफ सेक्रेटरी बनाया और फरवरी, 2016 में वे एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के वाइस प्रेसिडेंट बन गए.

जीएसपीसी के पूर्व एमडी तपन रे भी जून, 2015 में डायरेक्टर जनरल, एनआईसी, अगस्त, 2015 में भारत सरकार के कंपनी सचिव और अक्टूबर, 2015 में सेबी के डायरेक्टर बन गए. जीएसपीसी के 2014 से 2016 तक मैनेजिंग डायरेक्टर रहे अतानू चक्रवर्ती को भी फरवरी, 2016 में मोदी ने भारत सरकार में डायरेक्टर जनरल, हाईड्रोकार्बन नियुक्त कर दिया.

4 अगस्त, 2017 को वित्तीय तौर से 20,000 करोड़ डुबोने के बाद जीएसपीसी के 80 प्रतिशत शेयर को भारत सरकार की नवरत्न कंपनी ‘ओएनजीसी’ द्वारा 7,738 करोड़ में खरीद लिया गया. हालांकि 2005 से आज तक जीएसपीसी के केजी बेसिन ब्लाॅक से कोई गैस नहीं मिल पाई, फिर भी ओएनजीसी ने इसे क्यों खरीदा?

पार्टी ने सवाल उठाया कि क्या यह भी संयोग है कि मई, 2014 में सरकार बदलने के बाद मोदी सरकार ने ओएनजीसी के सीएमडी व इंडिपेंटेंड डायरेक्टर्स की नई नियुक्ति की है, जिनमें से एक भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा भी हैं? सीधा प्रश्न यह उठता है कि गुजरात सरकार का 20,000 करोड़ डुबाकर अब जीएसपीसी को भारत सरकार की ओएनजीसी के सर क्यों मढ़ा जा रहा है? कांग्रेस ने जीएसपीसी घोटाले की और पूरे मामले में मोदी की भूमिका की निष्पक्ष जांच की मांग की है.

विदेशी मुद्रा के रूप में 10,651 करोड़ रुपया बाहर ले जाया गया और गुम हो गया

सुरजेवाला ने मीडिया से कहा कि गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (जीएसपीसी) के कागजात के अध्ययन के बाद हमने पाया है कि किस तरह 10,651 करोड़ रुपया विदेशी मुद्रा के रूप में बाहर ले जाया गया और वह गुम हो गया. सुरजेवाला ने अलग-अलग वर्षों के आंकड़े बताते हुए कहा कि 2006-07 से लेकर 2015-16 तक का आंकड़ा देखें तो विदेशी मुद्रा पर किया गया खर्च निकलता है 10,651 करोड़ 80 लाख रुपये.

सुरजेवाला ने कहा, हजारों करोड़ का यह खर्च न इनके प्रॉफिटल लॉस में दिखता है, न बैलेंस सीट में दिखता है. ये इनके अकाउंट में अंदर जाकर किसी पन्ने में छुपा दिया गया है. अगर यह वास्तविक खर्च है तो प्रॉफिटल-लॉस अकाउंट में आना चाहिए. लेकिन वहां कहीं नहीं आता. अगर वहां नहीं डाला गया तो क्या यह अकाउंट फर्जी नहीं है? उन्होंने सवाल उठाया कि यह हजारों करोड़ रुपया जा कहां रहा है?

उन्होंने कहा, 2006-07 से 2015-16 तक गुजरात की जनता का 10,651 करोड़ रुपया आपने उड़ा दिया.

शुक्रवार को जारी कांग्रेस की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, गुजरात की जनता की गाढ़ी कमाई को लुटाने वाले 20,000 करोड़ रुपये के ‘जीएसपीसी घोटाले’ की परतें आए दिन खुल रही हैं और सरकारी खजाने को चूना लगाने वाली साजिशों का पर्दाफाश हो रहा है. ‘जीरो गैस, लुट गया गुजरात का कैश’ के फाॅर्मूले से सब आश्चर्यचकित हैं. पहले ‘सीएजी’ की रिपोर्टों में और कल ही खोजी पत्रकारों ने कई बड़े रहस्योद्घाटन किए. क्या ‘न खाउंगा, न खाने दूंगा’ मात्र एक ढकोसला है, या प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी इस पूरे घोटाले के साथ-साथ खुद की भूमिका की निष्पक्ष जांच को तैयार हैं?

कांग्रेस ने दावा किया है कि साल 2006-07 से साल 2015-16 तक जीएसपीसी के खातों यानि ‘प्राॅफिट एवं लाॅस अकाउंट्स’, ‘बैलेंस शीट्स’ व ‘नोट्स आॅन अकाउंट्स’ तथा संलग्न कागजात, के अध्ययन से 10,651.80 करोड़ के विदेशी मुद्रा में किए गए खर्चे की चैंकाने वाली परतें खुलती हैं.

हजारों करोड़ के इस खर्चे की व्याख्या या जवाबदेही जीएसपीसी के प्राॅफिट एंड लाॅस अकाउंट में नहीं दिखती. सवाल यह है कि फिर यह हजारों करोड़ गया कहां?

पार्टी का कहना है कि 372.32 करोड़ का विदेशी मुद्रा में किया गया खर्च केवल ‘मिस्लेनियस एक्सपेंडीचर’ यानि ‘फुटकर खर्चे’ की श्रेणी में जीएसपीसी के खातों में डाला गया.

क्या सरकारी खजाने से खर्च की जाने वाली 372.32 करोड़ रुपये की बड़ी रकम मात्र ‘फुटकर खर्चे’ में डाली जा सकती है? सवाल यह है कि यह पैसा कहां गया?

पार्टी का कहना है कि प्रथमदृष्टया जीएसपीसी के खातों में विदेशी मुद्रा के खर्च का यकायक बढ़ जाना सरकारी पैसे को खुर्द-बुर्द करने की एक रहस्यमयी साजिश की ओर इशारा करता है.

सुरजेवाला की प्रेस कॉन्फ्रेंस और पार्टी की प्रेस रिलीज में कहा गया कि साल 2008-09 में विदेशी मुद्रा में किए गए खर्चे की राशि 175.21 करोड़ दिखाई गई है. परंतु अगले साल यानी 2009-10 के खातों में पिछले साल यानी 2008-09 की राशि यकायक बढ़कर 208.85 करोड़ हो जाती है. इस प्रकार 33.64 करोड़ का अतिरिक्त खर्च दिखा दिया जाता है.

साल 2012-13 में भी विदेशी मुद्रा में किए गए खर्चे की राशि 474.12 करोड़ दिखाई गई. परंतु अगले साल के खातों में यह राशि बढ़कर 622.92 करोड़ हो जाती है, यानी 148.80 करोड़ की बढ़ोत्तरी.

इसी प्रकार साल 2013-14 में विदेशी मुद्रा में किए गए खर्चे की राशि 614.99 करोड़ है. परंतु अगले साल के खातों में इसे 1667.53 करोड़ दिखाया गया है, यानि 1052.54 करोड़ की बढ़ोत्तरी. प्रथमदृष्टया ही खातों की गड़बड़ी साफ नजर आती है.

पार्टी का दावा कि सीएजी आॅडिट के मुताबिक जीएसपीसी के पास 64 ‘गैस ब्लाॅक्स’ थे, जिनमें से 11 ‘ओवरसीज़ गैस ब्लाॅक्स’ थे (5 मिस्र में, 3 यमन में, 2 इंडोनेशिया में व 1 आॅस्ट्रेलिया में). इन 11 ‘ओवरसीज़ गैस ब्लाॅक्स’ को सरेंडर करने से कैग के मुताबिक सरकारी राजस्व को 1757.46 करोड़ का नुकसान हुआ.

यदि यह सही है, तो फिर विदेशी मुद्रा में किया गया 10,651.80 करोड़ का खर्चा कहां गया?

4 अगस्त, 2017 को वित्तीय तौर से 20,000 करोड़ डुबोने के बाद जीएसपीसी के 80 प्रतिशत शेयर को भारत सरकार की नवरत्न कंपनी ‘ओएनजीसी’ द्वारा 7,738 करोड़ रुपये में खरीद लिया गया. हालांकि 2005 से आज तक जीएसपीसी के केजी बेसिन ब्लाॅक से कोई गैस नहीं मिल पाई, फिर भी ओएनजीसी ने इसे क्यों खरीदा?

क्या ओएनजीसी द्वारा सरकारी खजाने के 7,738 करोड़ रुपये देने से पहले वित्तीय अनियमितताओं तथा गैस की उपलब्धता न होने बारे कोई जांच की गई?

पार्टी प्रवक्ता अजय कुमार ने कहा कि किसी भी सरकारी कंपनी में या छोटी सी छोटी निजी कंपनी में 10 हजार करोड़ के खर्च की कोई चर्चा न हो? विदेशी मुद्रा में 10,651 करोड़ खर्च किए गए लेकिन इसके अकाउंट में यह कहीं जिक्र नहीं है कि किस मद में खर्च हुआ. जबकि सरकारी खर्च में आपको 100 रुपये भी खर्च करना हो तो उसका बाउचर देना पड़ता है. 50 रुपये का चाय का बाउचर भी दिखाकर साइन कराना पड़ता है. लेकिन नरेंद्र मोदी की जीएसपीसी में 10 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि का कोई विवरण ही नहीं है कि यह किस मद में खर्च हुआ.

कांग्रेस पार्टी ने इसे जीएसपीसी गैस स्कैम नाम दिया है. पार्टी के प्रवक्ताओं और कुछ नेताओं ने इस बारे में ट्वीट करते हुए इस पर सवाल उठाया है और जांच की मांग की है.

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