बिहार इंटर रिज़ल्ट: जिन छात्र-छात्राओं को कॉलेज में होना चाहिए, वे पुलिस के डंडे खा रहे हैं

बिहार में इंटरमीडिएट के रिज़ल्ट को लेकर हंगामा मचा हुआ है. तमाम छात्र-छात्राओं के रिज़ल्ट में गड़बड़ियां सामने आई हैं. परीक्षा में शामिल होने के बाद भी कई छात्रों को ग़ैरहाज़िर कर दिया गया, वहीं कुछ को पूर्णांक से भी ज़्यादा नंबर दे दिए गए हैं.

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Patna: All India Students Federation activists raise slogans during a protest against the low pass percentage in the Intermediate exams, in Patna on Wednesday, June 13, 2018. (PTI Photo) (PTI6_13_2018_000049B)
Patna: All India Students Federation activists raise slogans during a protest against the low pass percentage in the Intermediate exams, in Patna on Wednesday, June 13, 2018. (PTI Photo) (PTI6_13_2018_000049B)

बिहार में इंटरमीडिएट के रिज़ल्ट को लेकर हंगामा मचा हुआ है. तमाम छात्र-छात्राओं के रिज़ल्ट में गड़बड़ियां सामने आई हैं. परीक्षा में शामिल होने के बाद भी कई छात्रों को ग़ैरहाज़िर कर दिया गया, वहीं कुछ को पूर्णांक से भी ज़्यादा नंबर दे दिए गए हैं.

Patna: All India Students Federation activists raise slogans during a protest against the low pass percentage in the Intermediate exams, in Patna on Wednesday, June 13, 2018. (PTI Photo) (PTI6_13_2018_000049B)
बीते 13 जून को पटना में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के दफ़्तर के बाहर इंटर के रिज़ल्ट में गड़बड़ियों को लेकर छात्र-छात्राओं ने प्रदर्शन किया. (फोटो: पीटीआई)

पटना के बुद्ध मार्ग पर स्थित बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (उच्च माध्यमिक) के भव्य दफ्तर के गेट पर दो दर्जन से अधिक लाठीधारी पुलिस कर्मचारी तैनात हैं. गेट के बाहर इंटरमीडिएट के सैकड़ों छात्र-छात्राएं खड़े हैं. उनके चेहरे पर मायूसी और अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता है.

उन्हें परीक्षा समिति के पास अपनी शिकायतें पहुंचानी हैं, लेकिन पुलिस झिड़क कर गेट से दूर कर दे रही है. इसी महीने छह जून को बिहार का इंटरमीडिएट (12वीं) रिज़ल्ट जारी हुआ है. परीक्षा में क़रीब 12 लाख छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया था, जिनमें से 6,31,246 छात्र-छात्राएं (51.95 प्रतिशत) उत्तीर्ण हुए.

पिछले वर्ष 35.24 प्रतिशत छात्र-छात्राएं ही पास हो पाए थे. इस बार 16.71 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. इस ‘कामयाबी’ पर राज्य का शिक्षा विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा है, लेकिन रिज़ल्ट में आई तमाम तरह की गड़बड़ियों ने लाखों छात्र-छात्राओं के करिअर को दांव पर लगा दिया है.

रिज़ल्ट आने के बाद छात्र-छात्राओं को विभिन्न कॉलेजों में नामांकन के लिए दौड़ लगानी चाहिए थी, लेकिन वे रिज़ल्ट में गड़बड़ी को दुरुस्त कराने के लिए कभी संबंधित ज़िला शिक्षा कार्यालय तो कभी पटना स्थित परीक्षा समिति के दफ़्तर का चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन उन्हें राहत मिले, ऐसा आश्वासन कहीं से नहीं मिल रहा है.

विशाल कुमार रोहतास ज़िले के डेहरी ऑन सोन में रहते हैं. उन्होंने सभी विषयों की परीक्षा दी थी. साथ ही प्रेक्टिकल एग्ज़ाम भी दिया था, लेकिन उनके रिज़ल्ट में बताया जा रहा है कि वह परीक्षा में ग़ैर-मौजूद थे.

रात 11 बजे ट्रेन पकड़कर विशाल पटना आए. रात स्टेशन पर लेटकर बिताई और दिन चढ़ने पर बोर्ड के दफ़्तर के सामने पहुंचे, ताकि यहां से सुकूनदेह जवाब उन्हें मिल जाए.

विशाल ने बताया, ‘मैंने सारी परीक्षाएं दी थीं, लेकिन रिज़ल्ट में बता रहा है कि मैंने परीक्षा ही नहीं दी. अपनी शिकायत लेकर मैं कई बार दफ़्तर के अधिकारियों से मिलने की कोशिश की, लेकिन अधिकारियों से मिलना तो दूर पुलिसवाले दफ़्तर के भीतर घुसने ही नहीं दे रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘रिज़ल्ट में जब तक सुधार नहीं आ जाता है, तब तक कुछ सोच नहीं सकता. अभी बस हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं.’

रोहतास के ही निरंजन कुमार की शिकायत है कि उन्हें फिजिक्स और केमिस्ट्री में बहुत कम नंबर मिले हैं. निरंजन ने बताया, ‘मैंने दोनों पेपर जितना बढ़िया लिखा है, वैसा रिज़ल्ट नहीं आया है. पांच विषयों को मिलाकर मेरे 296 नंबर आए हैं जबकि रिज़ल्ट 65 से 70 प्रतिशत आना चाहिए था. मैं कॉपियों की दोबारा जांच कराना चाहता हूं.’

विशाल और निरंजन इंडियन नेवी की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन रिज़ल्ट ने सारी तैयारियों को मिट्टी में मिला दिया.

मोतिहारी ज़िले के राजेपुर के रहने वाले संदीप कुमार आर्ट साइड से इंटर कर रहे थे. उन्होंने भी सभी विषयों की परीक्षा दी थी, लेकिन रिज़ल्ट में बताया जा रहा है कि वह परीक्षा में अनुपस्थित थे.

संदीप मुज़फ़्फ़रपुर में रूम किराये पर लेकर पढाई करते हैं. रिज़ल्ट में सुधार के लिए वह कॉलेज से लेकर जिला शिक्षा कार्यालय तक की दौड़ लगा चुके हैं. लेकिन, कहीं से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला, तो अल-सुबह मुज़फ़्फ़रपुर से बस पकड़कर परीक्षा समिति के दफ़्तर के सामने पहुंच गए.

Patna: Police personnel detain All India Students Federation activists during a protest against the low pass percentage in the Intermediate exams, in Patna on Wednesday, June 13, 2018. (PTI Photo) (PTI6_13_2018_000047B)
बीते 13 जून को पटना में इंटर की परीक्षाओं में गड़बड़ी को लेकर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के दफ़्तर के बाहर आॅल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया. कुछ प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने हिरासत में भी लिया था.

सुबह 8:30 बजे से ही दफ़्तर खुलने का इंतज़ार कर रहे संदीप ने अपना रिज़ल्ट दिखाते हुए कहा, ‘जब कॉलेज गया तो वहां बताया गया कि ज़िला शिक्षा अधिकारी से मिलूं. ज़िला शिक्षा अधिकारी के पास गया तो उन्होंने पटना दफ़्तर जाने को कहा. यहां जब शिकायत की तो, उन्होंने वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करने को कहा. लेकिन वेबसाइट खुल ही नहीं रही है कि आवेदन करूं.’

संदीप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं और स्नातक करने के बाद सरकारी नौकरी करना चाहते हैं. उसने कहा, ‘रिज़ल्ट में सुधार हो जाने तक मैं कुछ सोच ही नहीं पा रहा हूं.’

संदीप ने बताया, ‘इंटर की परीक्षा के लिए फॉर्म भरने से लेकर रजिस्ट्रेशन तक तीन हज़ार रुपये ख़र्च होते हैं. अगर रिज़ल्ट में सुधार नहीं हुआ तो न केवल अतिरिक्त तीन हज़ार रुपये ख़र्च करने होंगे बल्कि दो कीमती साल भी जाया हो जाएंगे.’

संदीप की तरह ही राधेश्याम कुमार के रिज़ल्ट में भी उसे अनुपस्थित बताया गया है, जबकि उन्होंने भी सभी विषयों की परीक्षाएं दी थीं.

इंटर की परीक्षा छात्रों के लिए महत्वपूर्ण होती है. इसके रिज़ल्ट के आधार पर ही जॉइंट एंट्रेस एग्ज़ाम (जेईई) दिया जा सकता है. अच्छा रिज़ल्ट होने पर छात्र बेहतर कॉलेज में नामांकन करवाते हैं. इंटर में उम्दा रिज़ल्ट आने पर छात्र दिल्ली की तरफ़ भी रुख़ करते हैं.

इस साल इंटर की परीक्षा फरवरी के मध्य में ख़त्म हुई थी. परीक्षा का रिज़ल्ट 7 जून को घोषित होना था, लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए ऑनलाइन आवेदन की आख़िरी तारीख़ सात जून होने से छह को ही रिज़ल्ट घोषित किया गया. रिज़ल्ट में गड़बड़ियों के कारण छात्र कॉलेजों में दाख़िला नहीं ले पा रहे हैं.

कई छात्र जेईई की तैयारी कर रहे थे, इस उम्मीद में कि अच्छा रिज़ल्ट आएगा तो जेईई पास कर उच्च शिक्षा ले सकेंगे, लेकिन परीक्षा परिणाम ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया है.

गया के रहने वाले रोहित रौशन को इंटर में सेकेंड डिविज़न मिला है, लेकिन उनका दावा है कि उन्होंने कॉपियों में जितना लिखा है, उसके हिसाब से उसे कम से कम 70 प्रतिशत अंक मिलने चाहिए थे.

रोहित ने कहा, ‘जेईई (मेन) की परीक्षा के लिए इंटर में 292 अंक होने चाहिए, लेकिन मुझे 278 अंक ही मिले हैं. मैं पिछले एक साल से जेईई की तैयारी कर रहा था. मैं अपने इंस्टिट्यूट के टॉप बैच में हूं, लेकिन रिज़ल्ट ने बेहद निराश किया है. अब मुझे अपने करिअर के बारे में नए सिरे से सोचना होगा.’

हालांकि, कॉपियों की दोबारा जांच के लिए उन्होंने ऑनलाइन आवेदन किया है, लेकिन उन्हें बहुत उम्मीद नहीं है.

रिज़ल्ट में गड़बड़ी की शिकायत के बाद बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से कॉपियों की दोबारा जांच के लिए ऑनलाइन आवेदन की व्यवस्था शुरू की गई है. दोबारा कॉपियों की जांच के लिए छात्रों को 70 रुपये देने होंगे.

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के कार्यालय के बाहर लगी नोटिस, जिसमें बताया गया है कि छात्र-छात्राओं को ज़्यादा अंक नहीं दिए गए हैं. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के कार्यालय के बाहर लगी नोटिस, जिसमें बताया गया है कि छात्र-छात्राओं को ज़्यादा अंक नहीं दिए गए हैं. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

पिछले दिनों जब छात्रों ने रिज़ल्ट में गड़बड़ी को लेकर बोर्ड दफ्तर के सामने प्रदर्शन किया था तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया था जिसमें कई छात्र जख़्मी हो गए थे.

पुलिस का आरोप था कि छात्रों ने पत्थर फेंके थे. इस पर जवाबी कार्रवाई करते हुए पुलिस ने लाठीचार्ज किया था. इस मामले में कुछ छात्रों को हिरासत में भी लिया गया था.

उक्त घटना के बाद से दफ़्तर के बाहर भारी संख्या में पुलिस की तैनाती की गई है. दफ़्तर के भीतर छात्रों के प्रवेश पर पूरी तरह पाबंदी है. छात्र-छात्राओं की तमाम शिकायतों का जवाब माइक के ज़रिये दिया जा रहा है.

छात्रों का कहना है कि माइक के ज़रिये जो जवाब मिल रहा है, वह संतोषजनक नहीं है. हर शिकायत का एक ही जवाब दिया जा रहा है कि सब कुछ ऑनलाइन ही करना होगा, दफ़्तर में कोई शिकायत नहीं ली जाएगी.

नंबर कम मिलने, परीक्षा देने वाले छात्र-छात्राओं को भी अनुपस्थित बताने के अलावा ऐसी भी चूक हुई है, जो हास्यास्पद है और परीक्षा समिति की कार्यप्रणाली व राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाती है.

मिसाल के तौर पर रोहतास के ही दुर्गेश कुमार के रिज़ल्ट को लिया जा सकता है. उन्हें अंग्रेज़ी में 51 नंबर दिया गया है, जबकि अंग्रेज़ी का पेपर 50 नंबर का ही था. दुर्गेश की तरह और भी कई छात्र हैं जिनके रिज़ल्ट में ऐसी हास्यास्पद चूक हुई है.

इसी तरह पूर्वी चंपारण के संदीप राज को भौतिकी के थ्योरी पेपर में 38 नंबर दिए गए जबकि पेपर 35 नंबर का ही था. दरभंगा के राहुल कुमार को गणित में 40 नंबर दिया गया जबकि पेपर 35 अंक ही था.

इस संबंध में समिति ने अपने दफ़्तर के बाहर नोटिस चिपकाकर यह तर्क दिया है कि किसी भी छात्र को ज़्यादा अंक नहीं मिला है और ये आरोप बेबुनियाद हैं.

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इंटर के रिज़ल्ट में गड़बड़ी के लिए सीएम नीतीश कुमार के साथ ही बोर्ड के अध्यक्ष को भी आड़े हाथों लिया है.

तेजस्वी यादव ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक ट्वीट में लिखा, ‘नीतीश जी, हर साल आपकी नाक के नीचे बिहार बोर्ड भांति-भांति के गुल खिला रहा है. आपने अपने गृह ज़िले के एक स्वजातीय मित्र को वर्षों तक बिहार बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर बिहार की शिक्षा व्यवस्था का जो सत्यानाश करवाया उसके लिए आपको बिहार के कर्णधार छात्रों से माफ़ी मांगनी ही होगी.’

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति का अध्यक्ष आनंद किशोर हैं. आनंद किशोर 1997 बैच के आईएएस अफ़सर हैं. वर्ष 2016 में टॉपर घोटाले के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार विद्यालय परीक्षा समिति का अध्यक्ष बनाया था.

बहरहाल, रिज़ल्ट में गड़बड़ियों को लेकर शिक्षकों का मानना है कि बारकोडिंग व्यवस्था इसका एक कारण हो सकता है.

बीबी कॉलेजिएट के शिक्षक प्रवीण मंडल ने कहा, ‘जल्दबाज़ी में बारकोडिंग इन गड़बड़ियों की एक बड़ी वजह हो सकती है. हो सकता है कि किसी दूसरे छात्र के बारकोड्स किसी और छात्र की कॉपी पर डाल दिए गए हों.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे कॉलेज के छात्रों को भी रिज़ल्ट को लेकर तमाम शिकायतें हैं. हमने उन्हें बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पास शिकायत करने को कहा है.’

उल्लेखनीय है कि इंटर में बारकोडिंग सिस्टम पिछले साल से शुरू की गई है. कॉपियों की बारकोडिंग बेहद गोपनीय तरीके से की जाती है और इसमें शिक्षकों की कोई भूमिका नहीं होती है.

नई व्यवस्था में कॉपियों पर रोल नंबर और परीक्षा केंद्र संख्या की जगह बारकोड डाले जाते हैं, ताकि पैसे ले-देकर कॉपियों की जांच प्रभावित करने से रोका जा सके. साथ ही किसी तरह की त्रुटि भी न रहे.

लेकिन, पिछले साल की एक घटना ने यह बताया था कि बारकोडिंग सिस्टम भी फुलप्रूफ नहीं है.

सहरसा की रहने वाली 10वीं की छात्रा प्रियंका सिंह ने 2017 में मैट्रिक की परीक्षा दी थी. जब रिज़ल्ट आया तो उन्हें संस्कृत में 100 अंक में से केवल 9 नंबर मिले थे. विज्ञान में 80 नंबर में 29 नंबर ही दिए गए थे.

उन्होंने दोनों विषयों की कॉपियों की दोबारा जांच के लिए आवेदन किया, साथ ही पटना हाईकोर्ट में इसको लेकर एक याचिका भी दायर की थी.

याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को जांच करने को कहा था. इस पर समिति ने एक जांच कमेटी बनाई. कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रियंका को संस्कृत में 80 और विज्ञान में 61 अंक दिए गए थे.

जांच में पता चला था कि समिति के किसी कर्मचारी ने प्रियंका के दोनों विषयों के बार कोड को दूसरे परीक्षार्थी की कॉपी से बदल दिया था, इस वजह से गड़बड़ हुई थी.

इंटर कॉलेज के एक अन्य शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘बारकोडिंग का ज़िम्मा बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अधिकारियों के पास होता है, अतः गड़बड़ी वहीं से हुई होगी.’

राधेश्याम कुमार, विशाल कुमार और संदीप कुमार की शिकायत है कि उन्होंने सभी विषयों की परीक्षा दी थी, लेकिन रिज़ल्ट में बताया जा रहा है कि वे परीक्षा में ग़ैरमौजूद थे. वहीं निरंजन कुमार का दावा है कि जितनी उन्हें उम्मीद थी उससे कम अंक मिले हैं. (बाएं से दाएं फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
राधेश्याम कुमार, विशाल कुमार और संदीप कुमार की शिकायत है कि उन्होंने सभी विषयों की परीक्षा दी थी, लेकिन रिज़ल्ट में बताया जा रहा है कि वे परीक्षा में ग़ैरमौजूद थे. वहीं निरंजन कुमार का दावा है कि जितनी उन्हें उम्मीद थी उससे कम अंक मिले हैं. (बाएं से दाएं फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

माध्यमिक शिक्षक संघ के पटना प्रमंडल के सचिव चंद्रकिशोर कुमार मानते हैं कि इंटर के लिए फॉर्म भरने से लेकर परीक्षा और फिर रिज़ल्ट तैयार करने तक में कई तरह के बदलाव किए गए, लेकिन इसके लिए पहले से कोई तैयारी नहीं की गई.

उन्होंने कहा, ‘परीक्षा की प्रक्रिया ऑनलाइन की गई और बारकोडिंग सिस्टम लाया गया. इन सबके लिए दक्ष तकनीशियनों की ज़रूरत है, लेकिन परीक्षा समिति ने उनकी ज़रूरत महसूस नहीं की, जिस कारण ये गड़बड़ियां हुई हैं.’

शिक्षक बालेश्वर शर्मा ने कहा, ‘बारकोडिंग समेत कई तरह की नई व क्लिष्ट व्यवस्थाएं लाई गईं, लेकिन परीक्षा से पहले एक बार ही शिक्षकों को ट्रेनिंग दी गई और वह भी 10 फीसदी शिक्षकों को ही. ऐसे में गड़बड़ी तो होनी ही थी.’

इस पूरे मामले में अब तक सरकार व परीक्षा समिति की ओर से कार्रवाई के नाम पर बस इतना हुआ है कि छात्रों को कुछ वेबसाइट्स के लिंक दे दिए गए हैं, जहां वे शिकायत कर सकते हैं.

इसके अलावा कोई बड़ी कार्रवाई के संकेत अब तक नहीं मिले हैं और न ही रिज़ल्ट में गड़बड़ियों की जड़ें तलाशने के लिए कोई ठोस क़दम उठाए जाने की ख़बर है.

पूरे मामले को लेकर शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा को फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. उन्हें मैसेज भी भेजा गया, लेकिन उस मैसेज का भी जवाब अब तक नहीं आया है.

शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया गया तो बताया गया कि 12वीं के रिज़ल्ट से जुड़े सवालों का जवाब बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर ही देंगे.

आनंद किशोर को जब फोन किया गया, तो उन्होंने भी फोन नहीं उठाया. प्रतिक्रिया लेने के लिए उनके मोबाइल नंबर पर मैसेज भेजा गया, लेकिन उस मैसेज का भी जवाब अब तक नहीं आया.

बिहार की नीतीश कुमार सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार का दावा करने के लिए जो तथ्य देती है, उसमें एक तथ्य यह है कि 2005 में स्कूलों में छात्र-छात्राओं की हाज़िरी 88 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2015 में 98.28 प्रतिशत हो गई.

लेकिन, सवाल यह है कि मैट्रिक व इंटरमीडिएट के रिज़ल्ट में गड़बड़ियां उनके करिअर को अंततः चौपट ही कर रही हैं, तो वे स्कूल जाकर करेंगे भी क्या?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं.)

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