मेघालय हाईकोर्ट ने द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक और प्रकाशक को अवमानना का दोषी ठहराया

द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिसिया मुखिम और प्रकाशक शोभा चौधरी पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है. एक सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि अदा नहीं करने पर छह महीने की जेल का प्रावधान है.

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मेघालय हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिसिया मुखिम और प्रकाशक शोभा चौधरी पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है. एक सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि अदा नहीं करने पर छह महीने की जेल का प्रावधान है.

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मेघालय हाई कोर्ट (फोटोः विकिपीडिया)

शिलॉन्गः मेघालय हाईकोर्ट ने शुक्रवार को द शिलांग टाइम्स की संपादक पैट्रिसिया मुखिम और प्रकाशक शोभा चौधरी को अदालत की अवमानना का दोषी करार देते हुए दोनों पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.

अदालत का कहना है कि एक सप्ताह के भीतर जुर्माना अदा नहीं करने पर छह महीने की कैद और अखबार पर प्रतिबंध लगाया जाएगा.

चीफ जस्टिस मोहम्मद याकूब मीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया है. द शिलांग टाइम्स में सेवानिवृत्त जजों और उनके परिवार वालों को बेहतर सुविधाएं और भत्ते दिए जाने की आलोचना को लेकर एक लेख प्रकाशित हुआ था.

पीठ ने कहा, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत निहित शक्तियों के आधार पर हम अवमानना करने वाले दोनों शख्सों को कोर्ट की कार्यवाही खत्म होने तक एक कोने में बैठे रहने और दो-दो लाख रुपये का जुर्माना अदा करने का फैसला सुनाते हैं. जुर्माने की राशि को एक सप्ताह के भीतर रजिस्ट्री के पास जमा कराना होगा और इस राशि को बाद में हाईकोर्ट के वेलफेयर फंड में जमा करा दिया जाएगा.’

अदालत ने कहा, ‘हम यह भी निर्देश देते हैं कि जुर्माना राशि अदा नहीं करने पर दोनों लोगों को छह महीने की सजा का सामना करना पड़ेगा और अखबार (शिलांग टाइम्स) पर प्रतिबंध लगेगा.’

वकील सुजित डे, एन.सिंगकोन, किशोर चौधरी गौतम और सी.एच.मावलोंग को सुनवाई के दौरान अदालत की सहायता के लिए एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया गया था.

गौरतलब है कि 10 दिसंबर 2018 को अखबार में ‘व्हेन जजेज जज फॉर दैमशेल्वज’ नाम से प्रकाशित लेख में मुखिम ने सेवानिवृत्त जजों के लिए बेहतर सुविधाओं और भत्तों को लेकर जस्टिस एसआर सेन के आदेश और हाई कोर्ट के दो पूर्व जजों के 2016 के फैसलों के बीच समानता पर रुख पेश किया था.

इस आदेश में दो जजों ने विशेष श्रेणी की सुरक्षा की मांग की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

इसके बाद अदालत ने मुखिम और चौधरी के खिलाफ नोटिस जारी करते हुए उन्हें अदालत के समक्ष पेश होकर यह बताने को कहा कि आखिर क्यों इस आलेख के प्रकाशन के लिए अखबार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू नहीं की जानी चाहिए.

जस्टिस सेन ने कारण बताओ नोटिस में कहा था कि मीडिया यह नहीं बताए कि अदालत को क्या करना चाहिए.

जस्टिस सेन ने कहा था, ‘यह चौंकाने वाला है कि कथित अखबार के संपादक और प्रकाशक ने कानून और मामले की पृष्ठभूमि जाने बगैर टिप्पणी की, जो इस मामले को देख रहे जज और पूरी जज बिरादरी के लिए निश्चित तौर पर अपमानजक है.’