पिकासो और रोथको के कला संसार में विचरण

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पिकासो की ऊर्जा और कल्पनाशीलता अथक और अपरंपार थी. फिर पिकासो से रोथको तक जाना बिल्कुल भिन्न कलासंसार में जाना है. उनके यहां कला गहन विचार, सतत चिंतन और बहुत ठहराव से उपजती है. वह कुछ गहरा और अप्रत्याशित देखती-दिखाती है पर ख़ुद को कुछ कहने से रोकती है.

नहीं! नरेंद्र मोदी एलियांस फ़्रांसेज़ अहमदाबाद के पहले सदस्य नहीं थे

1981 में फ्रांसीसी सांस्कृतिक केंद्र 'एलियांस फ़्रांसेज़' की अहमदाबाद में शुरुआत होने पर नरेंद्र मोदी इसके सदस्य बने थे और आठ साल तक इससे जुड़े रहे थे.

फ्रांस: पुलिस की गोली से किशोर की मौत के बाद भड़के दंगे जारी, हज़ारों प्रदर्शनकारी गिरफ़्तार

बीते 27 जून को फ्रांस की राजधानी पेरिस के एक उपनगर में ट्रैफिक के दौरान एक पुलिस अधिकारी ने अल्जीरियाई मूल के एक 17 वर्षीय कार चालक को गोली मार दी थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी. घटना का वीडियो फैलते ही अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ पुलिस की हिंसा पर गुस्सा भड़क गया और फ्रांस गंभीर नस्लीय तनाव की चपेट में आ गया.

रज़ा की कृतियों में आधुनिकता का एकांत है…

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: रज़ा की पचास सालों से अधिक पहले रची गई कृतियों में न सिर्फ़ एकांत है पर एक तरह की सौम्य शास्त्रीय आभा भी है. यह आभा उनके सजग रूप से भारतीय होने भर से नहीं आई है- इसके पीछे अपने को प्रचलित अभिप्रायों से दूर रहकर अपने सच की एकांत साधना करने जैसा कुछ है. 

रज़ा की दृष्टि में मनुष्य जैसे पंच तत्व से गढ़ा गया है वैसे ही वह प्रकृति का भी अंग है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारत की प्राचीन दृष्टि से इत्तेफ़ाक रखते हुए रज़ा मानते हैं कि मानवीय कर्तव्य ऋत को बनाए रखना है जो वे स्वयं अपनी कला के माध्यम से करने की कोशिश करते हैं. उनकी कला चिंतन, मनन और प्रार्थना है.

रज़ा अपने असंख्य प्रेमियों के पास तो लौटे हैं पर लोकतांत्रिक भारत की राज्य-संस्थाओं में नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: 1948 में सैयद हैदर रज़ा का पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया था, वे यह कहकर नहीं गए कि भारत उनका वतन है और वे उसे नहीं छोड़ सकते. अब विडंबना यह है कि उनके कला-जीवन की सबसे बड़ी प्रदर्शनी पेरिस के कला संग्रहालय में हो रही है, भारत के किसी कला संस्थान में नहीं.

पेरिस में सैयद हैदर रज़ा के चित्रों की एकल प्रदर्शनी शुरू हुई

फ्रांस के पेरिस शहर में भारतीय चित्रकार सैयद हैदर रज़ा के चित्रों की प्रदर्शनी आरंभ हो चुकी है. यह किसी भी भारतीय चित्रकार की अब तक की सबसे लंबे समय तक चलने वाली प्रदर्शनी है, जो 14 फरवरी से शुरू होकर 15 मई तक चलेगी.

रज़ा का पुनर्दर्शन: आधुनिक विश्व-कला में भारतीय उपस्थिति

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: रज़ा कहते थे कि चित्र कैसे बनाए जाएं यह कौशल उन्होंने फ्रांस से सीखा पर क्या चित्रित करें यह भारत से. वे दो संस्कृतियों के बीच संवाद और आवाजाही का बड़ा और सक्रिय माध्यम बने. उसी फ्रांस में उनकी अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी होना एक तरह से उनकी दोहरी उपस्थिति का एहतराम है.

हिंदी और उसके साहित्य की विडंबनाएं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विडंबना मनुष्य मात्र की स्थिति का अनिवार्य अंग है, कोई समाज विडंबनाओं में फंसा हो, तो यह अस्वाभाविक नहीं है. हिंदी के सिलसिले में कहूं, तो इस अंचल में जैसे-जैसे शिक्षा, साक्षरता का प्रसार हुआ है वैसे-वैसे उसमें सांप्रदायिकता, धर्मांधता, जातिमूलक कट्टरता भी साथ-साथ बढ़ती गई.

पी. साईनाथ की किताब ‘अमृत महोत्सव’ के तमाशाई माहौल में सार्थक हस्तक्षेप की तरह है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पी. साईनाथ की नई किताब 'द लास्ट हीरोज़: फुट सोल्जर्स ऑफ इंडियन फ्रीडम' पढ़कर एहसास होता है कि हम अपने स्वतंत्रता संग्राम में साधारण लोगों की हिस्सेदारी के बारे में कितना कम जानते हैं. यह वृत्तांत हमें भारतीय साधारण की आभा से भी दीप्त करता है.

‘सिटी ऑफ जॉय’ लिखने वाले फ्रांसीसी लेखक डॉमिनिक लेपियर का निधन

कोलकाता के रिक्शा चालकों के जीवन के बारे में सिटी ऑफ जॉय लिखने वाले फ्रांसीसी लेखक डॉमिनिक लेपियर 91 वर्ष के थे. सिटी ऑफ जॉय के अलावा उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी पर शोध-आधारित 'फाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल' का सह-लेखन भी किया था.

पेगासस: सात देशों के 17 पत्रकारों ने पेरिस में एनएसओ ग्रुप के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई

सात देशों के 17 पत्रकारों ने रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के साथ मिलकर एनएसओ ग्रुप के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई है. संगठन की ओर से कहा गया है कि जांच में उन सभी लोगों की पहचान करनी चाहिए, जो इसमें शामिल थे, फिर चाहे वह कंपनी के कार्यकारी अधिकारी हो या संबंधित देशों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारी. एक ऐसे स्कैंडल में जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता को खामियाजा भुगतना पड़े, किसी तरह का संदेह नहीं रहना चाहिए.

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जैक शिराक का निधन

जैक शिराक पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदी नरसंहार में फ्रांस की भूमिका को स्वीकार किया था और 2003 में इराक़ पर अमेरिकी हमले का विरोध किया था.

पेरिस का ऐतिहासिक गिरजाघर नोट्रे-डैम आग लगने से तबाह

गिरजाघर में ईस्टर की तैयारी चल रही थी. आग में सबसे पहले यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित 850 साल पुरानी छत तबाह हुई और शानदार गॉथिक मीनार ढह गई. नोट्रे-डैम का निर्माण 12वीं सदी में शुरू हुआ था, जो करीब 200 वर्ष तक चला था.