संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान विपक्षी दलों ने अडानी मुद्दे पर भी केंद्र सरकार को घेरा. तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि उन्होंने सारे देश को टोपी पहना दी है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक इज़ाफ़ा कर्नाटक के भाजपा सांसद रमेश चंदप्पा जिगाजिनागी की संपत्ति में हुई है. उनकी संपत्ति में इस अवधि में 4,189 प्रतिशत की वृद्धि हुई. कर्नाटक से ही भाजपा सांसद पीसी मोहन उन शीर्ष 10 सांसदों की सूची में दूसरे नंबर पर हैं, जिनकी संपत्ति में 2009 और 2019 के बीच में वृद्धि हुई.
विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि संयुक्त अरब अमीरात में सर्वाधिक 1,926 भारतीय क़ैदी हैं. इसके बाद सऊदी अरब में 1,362 और नेपाल में 1,222 क़ैदी हैं. मुरलीधरन ने कहा कि भारत ने 31 देशों के साथ सज़ायाफ़्ता क़ैदियों के स्थानांतरण पर समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.
केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा को बताया कि कुल नियुक्तियों में सामान्य श्रेणी के न्यायाधीशों की संख्या 77 प्रतिशत से अधिक है. उन्होंने बताया कि इनमें से 58 न्यायाधीश ओबीसी और 19 अनुसूचित जाति से हैं. अनुसूचित जनजाति से केवल छह और अल्पसंख्यक समुदाय से 27 न्यायाधीश हैं. नियुक्तियों में 84 महिला न्यायाधीश भी शामिल हैं.
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह भी बताया कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता से संबंधित मामले पर विचार कर सकता है. उन्होंने बताया कि सरकार ने भारत के 21वें विधि आयोग से अनुरोध किया था, लेकिन इसकी अवधि 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गई.
मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने की दिशा में काम करने वाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ की ओर से कहा गया है कि इस बार के बजट में सफाई कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास और कल्याण के लिए एक भी शब्द नहीं कहा गया और न ही इस मद में धन का आवंटन किया गया है. यह हमारे समाज के साथ धोखा है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि संविधान की अनदेखी की जा रही है, संवैधानिक निकायों को कमज़ोर किया जा रहा है और न्यायपालिका को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है.
सरकार ने नए आईटी नियमों को फरवरी 2021 में अधिसूचित किया था. आम तौर पर ऐसे नियमों को चर्चा व बहस के लिए 15 दिनों के भीतर संसद में पेश किया जाना चाहिए. एक आरटीआई अर्ज़ी के जवाब में सामने आया है कि सरकार द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे इन नियमों पर लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समितियों ने चर्चा नहीं की थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, जिसमें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं, ने केंद्रीय क़ानून मंत्रालय को एक विस्तृत नोट भेजते हुए कहा है कि जजों के नाम की सिफ़ारिश को लेकर कॉलेजियम के फैसले की फिर से पुष्टि होने के बाद सरकार नियुक्ति अधिसूचित करने के लिए बाध्य है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जब कोई सिफारिश की जाती है, तो सरकार के अपने विचार हो सकते हैं, लेकिन उस पर अपनी टिप्पणी अंकित करके वापस भेजे बिना उसे रोके नहीं रखा जा सकता है. अदालत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से की जा रही कथित देरी से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी.
बीते महीने संसद में पेश एक रिपोर्ट में संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि देश में कुल 3,693 केंद्रीय संरक्षित स्मारक हैं, जिनमें से पचास 'खो चुके' हैं. इन 'लापता' स्मारकों में 11 स्मारक उत्तर प्रदेश के हैं और दो-दो दिल्ली और हरियाणा के. सूची में असम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड के स्मारक भी शामिल हैं.
हाल ही में ख़त्म हुए संसद सत्र में कई बार उच्च न्यायपालिका पर निशाना साधने के बाद केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक कार्यक्रम में कहा कि मोदी सरकार कभी भी अपनी सीमा पार नहीं करेगी और न्यायपालिका के क्षेत्र में दख़ल नहीं देगी.
केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बीते दिनों राज्यसभा में कहा था कि 2022-23 के दौरान 15 दिसंबर तक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दायर 20,756 शिकायतों और दूसरी अपीलों का निपटारा किया गया.
विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में बताया कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार के साथ ही उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था में पारदर्शिता, वस्तुनिष्ठता और सामाजिक विविधता की कमी को लेकर सरकार को कई मेमो मिले हैं.
कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने पार्टी के संसदीय दल की बैठक में केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मंत्रियों और ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठे लोगों की न्यायपालिका पर टिप्पणियां सुधार का उचित सुझाव देने का प्रयास नहीं, बल्कि जनता की नज़र में न्यायपालिका की प्रतिष्ठा कम करने की कोशिश हैं.