कोलकाता के टॉलीगंज इलाके में स्थित लाइटहाउस आॅफ द ब्लाइंड स्कूल के छात्र ज्ञान और विश्वास की रोशनी से भरे हुए हैं.
दुनिया में सबसे अधिक दृष्टिहीनों की संख्या भारत में है. देश में हर साल लगभग 30 हजार लोग दृष्टिहीन हो जाते हैं. बढ़ती दृष्टिहीनता का सबसे बड़ा कारण मोतियाबंद है. हर साल तकरीबन 30 लाख लोग मोतियाबिंद का शिकार हो जाते हैं और इस आंकड़े का सबसे खराब पहलू ये है कि इसके आधे मामले ही साध्य होते हैं यानी जिनका इलाज संभव होता है, बाकी मामलों में या तो व्यक्ति पूरी तरह या फिर आंशिक रूप से दृष्टिहीन हो जाते हैं.
इसके अलावा देश में नेत्रदान को लेकर बढ़ रही जागरूकता के बाद भी दान की गई आंखों की काफी कमी है. दान की गई आंखों में से भी 60 फीसदी आंखें या तो ट्रांसप्लांट करने योग्य नहीं होतीं या फिर इनका प्रयोग नहीं हो पाता.
एक विषय ये भी है कि देश में दृष्टिहीन बच्चों को शिक्षित करने के लिए भी कोई खास सजगता नहीं है. ऐसे बच्चों की कुल आबादी के मात्र पांच फीसदी बच्चों को ही शिक्षित होने का अवसर मिल पाता है. ऐसे में ब्लाइंड स्कूलों की जरूरत और बढ़ जाती है क्योंकि ये दृष्टिबाधित बच्चों को शिक्षा प्राप्त करके एक सामान्य ज़िंदगी बिताने का अवसर देते हैं.
कई सालों तक बाल मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और विशेष शिक्षा के क्षेत्र में किए गए शोध में ये सामने आया है कि दृष्टिहीन बच्चों को अगर बिना कड़े नियम-प्रतिबंधों के माहौल में रखा जाता है तो वे ज्यादा बेहतर तरह से बढ़ते हैं, उनका आत्म-विश्वास दूसरे दृष्टिहीन बच्चों की तुलना में ज्यादा होता है. विशेषज्ञों के द्वारा दी जाने वाली ऐसी शिक्षा के जरिये ही ये बच्चे अपने आसपास की चीज़ों को जानते हैं, रोजमर्रा के छोटे-छोटे अनुभवों को महसूस करते हुए अपने लिए एक सामान्य ज़िंदगी बनाते हैं.
ये तस्वीरें कोलकाता के टॉलीगंज इलाके में स्थित लाइटहाउस आॅफ द ब्लाइंड नाम के स्कूल की हैं, जो इन मासूमों को एक खूबसूरत जिंदगी की उम्मीद दे रहा है. इन बच्चों की आंखों में रोशनी भले ही न हो पर ये स्कूल इनकी ज़िंदगी में ज्ञान और विश्वास की रोशनी तो भर ही रहा है.