तिब्बत में चीन के बढ़ते अत्याचारों के ख़िलाफ़ तिब्बत यूथ कांग्रेस के सदस्यों ने नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप करने की मांग की.
भारत में रह रहे तिब्बती शरणार्थियों ने चीन की तिब्बत विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ को संयुक्त राष्ट्र के दिल्ली मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया.
एएनआई की ख़बर के अनुसार, गैर सरकारी संगठन तिब्बत यूथ कांग्रेस के नेतृत्व में तिब्बती शरणार्थियों ने सोमवार को दिल्ली के ख़ान मार्केट से ताबूतों के साथ मार्च निकाला और दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय पहुंचे, जहां उन्होंने तिब्बती झंडों में लिपटे इन ताबूतों के बगल में लेटकर विरोध जताते हुए चीन के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी भी की. ये ताबूत उन लोगों की मौतों का प्रतीक थे, जिन्होंने चीन के अत्याचारों से तंग आकर आत्मदाह कर लिया.
इन प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि विश्वभर में मानवाधिकार उल्लंघन की गतिविधियों पर नज़र रखने वाला संयुक्त राष्ट्र तिब्बत के मामले में भी हस्तक्षेप करे. प्रदर्शनकारियों ने मीडिया से बातचीत में कहा कि चीन से आज़ादी की लड़ाई में अब तक तिब्बत के अंदर 150 तिब्बती नागरिक अपना बलिदान दे चुके हैं. तिब्बत में ही तिब्बती नागरिक चीनी शासन के अत्याचारों के ख़िलाफ़ विरोध जताने के लिए खुद को आग के हवाले कर रहे हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को हालात की इसी गंभीरता से रूबरू कराने के लिए हमने विरोध का यह तरीका चुना है और हम उनसे मांग करते हैं कि वह तिब्बत की समस्या का समाधान करने के लिए विशेष सत्र बुलाए.
ज्ञात हो कि 2009 से तिब्बत के नागरिकों ने कड़े चीनी शासन के ख़िलाफ़ आत्मदाह की नीति अपनाई है. बीते 19 मई को ही एक 22 वर्षीय तिब्बती भिक्षु जाम्यांग लोसाल तिब्बत के कांग्त्सा में खुद को आग के हवाले कर दिया था.
गौरतलब है कि तिब्बत-चीन विवाद लगभग सात दशक पुराना है. चीन तिब्बत पर अपना अधिकार जताता है जबकि तिब्बती नागरिक चीन से स्वतंत्रता की मांग करते हैं. तिब्बत पर अधिकार जमाए रखने के लिए चीन पर लंबे समय से वहां के नागरिकों के मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लगते रहे हैं. वर्तमान में तिब्बती नागरिकों का एक समूह भारत में शरणार्थी के तौर पर रहता है.