क़र्ज़ माफ़ी और फ़सलों का उचित दाम न मिलने से नाराज़ किसानों ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में अनाज, फल, दूध और सब्ज़ियों की आपूर्ति रोक दी है.
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन पर उतर आए हैं. दोनों राज्य के तमाम किसानों ने गुरुवार को अनाज, दूध, सब्ज़ी और फलों की आपूर्ति रोक दी है.
मध्य प्रदेश के किसानों का कहना है कि उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता. उन्होंने मांग की है कि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का वादा पूरा करे. दूसरी तरफ महाराष्ट्र में आंदोलनरत किसानों की मांग कि सरकार किसानों का क़र्ज़ माफ़ करे.
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने पर नाराज़ किसानों ने पश्चिमी मध्य प्रदेश में एक जून से अपनी तरह के पहले आंदोलन की शुरुआत करते हुए अनाज, दूध और फल-सब्जियों की आपूर्ति रोक दी है. इससे आम उपभोक्ताओं को परेशानी का सामना करना पड़ा. सोशल मीडिया के जरिये शुरू हुआ किसानों का आंदोलन 10 दिन तक चलेगा.
प्रदर्शनकारी किसानों ने इंदौर और उज्जैन समेत पश्चिमी मध्य प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में दूध लेे जा रहे वाहनों को रोका और दूध के कनस्तर सड़कों पर उलट दिए. उन्होंने अनाज, फल और सब्ज़ियों की आपूर्ति कर रहे वाहनों को भी रोक लिया और इनमें लदा माल सड़क पर बिखेर दिया.
किसानों के विरोध प्रदर्शन से इंदौर समेत पश्चिमी मध्य प्रदेश की प्रमुख मंडियों में कारोबार पर बुरा असर पड़ा है. किसानों ने मंडियों के भीतर कारोबारी प्रतिष्ठानों के सामने हंगामा भी किया.
किसानों के आंदोलन की अगुवाई कर रहे संगठनों में शामिल मध्य प्रदेश किसान सेना के सचिव जगदीश रावलिया ने समाचार एजेंसी भाषा से कहा, हमने सोशल मीडिया पर इस आंदोलन का आह्वान किया था और इससे किसान अपने आप जुड़ते चले गए. प्रदेश की मंडियों में भाव इस तरह गिर गए हैं कि सोयाबीन, अरहर और प्याज उगाने वाले किसान अपनी खेती का लागत मूल्य भी नहीं निकाल पा रहे हैं.
उन्होंने दावा किया कि अब तक इस आंदोलन को इंदौर, उज्जैन, देवास, झाबुआ, नीमच और मंदसौर जिलों के किसानों का समर्थन मिल चुका है.
किसान नेता ने कहा, हम अपने आंदोलन के ज़रिये उस सरकार को संदेश देते हुए ज़मीनी हक़ीक़त से रू-ब-रू कराना चाहते हैं, जो किसानों की आय दोगुनी करने के वादे करती है.
रावलिया ने कहा कि प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन और अरहर सरकार के तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम में बिक रही है, लेकिन बाज़ार की ताक़तों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. नतीजतन किसानोें के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है.
उन्होंने मांग की कि सरकार को किसानों के हित में उचित क़ानून बनाकर इस बात का प्रावधान करना चाहिए कि कृषि उत्पाद किसी भी हालत में न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे न बिकें.
#WATCH: Milk spilled on road in Shirdi as farmers go on indefinite strike in Maharashtra. pic.twitter.com/sjVpFLBuMZ
— ANI (@ANI) June 1, 2017
दूसरी ओर महाराष्ट्र में भी किसानों ने सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया. एनडीटीवी की एक ख़बर के मुताबिक, ‘राज्य में ‘किसान क्रांति’ के नाम से आंदोलन शुरू किया गया है. आंदोलनकारियों ने महाराष्ट्र के किसानों ने दूध के कंटेनर सड़क पर उलट दिए, सब्ज़ियां और फल भी सड़क पर फेंक दिए. किसानों ने चेतावनी दी है कि वे एक जून के बाद से शहरों में जाने वाले दूध, सब्जी समेत अन्य उत्पाद रोकेंगे. किसानों की शिकायत राज्य सरकार की नीतियों को लेकर है. वे किसानों की कर्ज़ से मुक्ति की मांग पर अटल हैं. जबकि राज्य सरकार किसानों की भलाई के लिए कई फ़ैसले लेने का दावा कर रही है.’
ख़बर के मुताबिक, ‘किसान क्रांति के नेता जयाजी शिंदे का कहना है कि किसान की क़र्ज़मुक्ति ही उसकी सारी समस्याओं का हल है. जबकि मौजूदा सरकार क़र्ज़मुक्ति की बात स्वीकार ही नहीं कर रही. ऐसे में किसानों के पास हड़ताल करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. शिंदे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद मुंबई में मीडिया से बात कर रहे थे. उनका दावा है कि राज्यभर से किसान उनके आंदोलन में शरीक हो रहे हैं. किसान क़र्ज़ माफ़ी के साथ कृषि उत्पादों के उचित मूल्य भी दिए जाने की मांग कर रहे हैं.’
महाराष्ट्र सरकार के कृषिमंत्री पांडुरंग फुंडकर ने किसानों से हड़ताल न करने की अपील की है.
एनडीटीवी ने ख़बर दी है कि ‘शिरडी में भी किसानों ने सैकड़ों लीटर दूध बहा दिया और भारी मात्रा में सब्ज़ियां फेंक दीं. नासिक में सब्जियों से भरे वाहन रोके जाने पर पुलिस ने लाठी चार्ज की. यहां 21 लोगों को हिरासत में लिया गया. महाराष्ट्र की मंडियां भी बंद रहीं.
इंडिया टुडे का कहना है, ‘महाराष्ट्र के किसानों ने नये तरीक़े का प्रदर्शन शुरू करते हुए दूध के टैंकर सड़क पर ख़ाली कर दिए. सामानों से भरे ट्रकों को रोका गया और उनमें भरी सब्जियां, फल आदि सड़क पर फेंक दिये गए.
महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां सबसे ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, 1995 से अबतक पूरे देश में क़रीब सवा तीन लाख किसानों ने क़र्ज़, फ़सल बर्बाद होने या ग़रीबी के चलते आत्महत्या की है.
भाजपा ने केंद्रीय सत्ता में आने से पहले किसानों से वादा किया था कि सरकार बनने पर भाजपा किसानों की आय दोगुना कर देगी. लेकिन तीन साल के कार्यकाल ऐसा नहीं हो सका. राज्य की सरकारों ने भी किसानों के क़र्ज़ की समस्या को लेकर कोई राहतकारी क़दम नहीं उठाया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने हाल में जो आंकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक, किसान आत्महत्याओं में करीब 42 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. 30 दिसंबर, 2016 को ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015’ शीर्षक से जारी ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 में 12,602 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की. 2014 में कुल 12,360 किसानों और मजदूरों ने आत्महत्या की थी. आंकड़ों के मुताबिक, 1995 से लेकर अब तक देश भर में क़र्ज़, सूखा और भुखमरी के चलते करीब सवा तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)