गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठनों ने आरोप लगाया है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने एक ऐसे अध्ययन के नतीजों को दबाया, जिसकी मदद से आरोपी कंपनियों से पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवज़ा देने के लिए दायर सुधार याचिका को मज़बूती मिल सकती थी.
भोपाल: भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए करीब 35 साल से काम करने वाले चार संगठनों ने गुरुवार को केंद्र तथा मध्य प्रदेश की सरकारों पर यूनियन कार्बाइड और उसके वर्तमान मालिक डाव केमिकल के साथ सांठगांठ जारी रखने का आरोप लगाया है.
हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेलने वाली 1984 की भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की ‘सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं’ में से एक है.
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी और भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के सदस्य सतीनाथ षडंगी और रचना ढींगरा ने संवाददाताओं को बताया कि केंद्र तथा मध्य प्रदेश की सरकारें भोपाल गैस पीड़ितों की बजाय यूनियन कार्बाइड और उसके वर्तमान मालिक डाव केमिकल के हितों की रक्षा कर रही हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र तथा मध्य प्रदेश की सरकारों ने यूनियन कार्बाइड और उसके वर्तमान मालिक डाव केमिकल के साथ सांठगांठ जारी रखी है.
इन दो संगठनों के अलावा इस प्रेस कांफ्रेंस में भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा की नवाब खान और ‘चिल्ड्रन अगेंस्ट डाव केमिकल’ की नौशीन खान भी मौजूद थीं.
अपने आरोप के समर्थन में इन चार संगठनों ने सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों के जरिए यह बताया कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एक ऐसे अध्ययन के नतीजों को दबा दिया, जिससे कंपनियों से पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए दायर सुधार याचिका को मज़बूती मिल सकती थी.
उन्होंने कहा कि इस साल हम लोगों ने एनआईआरईएच (पर्यावरणीय शोध के लिए राष्ट्रीय संस्थान) से जो दस्तावेज प्राप्त किए हैं, वह यह बताते हैं कि आईसीएमआर ने यह तय किया है कि गैस पीड़ित माताओं के बच्चों में अपीड़ित माताओं के बच्चों के मुकाबले अधिक जन्मजात विकृतियां बताने वाले एक अध्ययन के नतीजे को प्रकाशित नहीं किया जाएगा.
संगठनों ने कहा कि दस्तावजों के मुताबिक़ इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ. रूमा गलगलेकर ने गैस पीड़ित माताओं के 1,048 बच्चों में से 9 प्रतिशत में जन्मजात विकृतियां पाईं, जबकि अपीड़ित माताओं के 1,247 बच्चों में 1.3 प्रतिशत बच्चे ही विकृति ग्रस्त पाए गए.
उन्होंने दावा किया कि 48 लाख की लागत से यह अध्ययन जनवरी 2016 से जून 2017 तक चला और इसे दिसंबर 2014 से लेकर जनवरी 2017 तक हुईं तीन साइंटिफिक एडवाइजरी कमेटी (एसएसी) की बैठकों में स्वीकृति दी गई थी.
संगठनों का कहना है कि इन दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि इस अध्ययन के नतीजों को जब दिसंबर 2017 में एसएसी की सातवीं बैठक में पेश किया गया तो सदस्यों ने अध्ययन में इतने ज्यादा जन्मजात विकृति ग्रस्त बच्चे पाए जाने पर हैरानी जताई और आंकड़ों की गुणवत्ता पर कई सवाल उठाए, जिसके बाद यह तय किया गया कि एक एक्सपर्ट ग्रुप (विशेषज्ञ समूह) द्वारा आंकड़ों की समीक्षा की जाएगी.
उन्होंने कहा कि एक्सपर्ट ग्रुप की 4 अप्रैल, 2018 की बैठक के मिनिट्स के अनुसार ग्रुप ने इसकी जोरदार सिफारिश की कि ये आंकड़े अपनी अंतर्निहित गड़बड़ियों के कारण इन्हें जनता के बीच नहीं ले जाना चाहिए और किसी भी प्लेटफार्म पर साझा नहीं करना चाहिए.
उन्होंने आगे बताया, ‘ग्रुप के चार विशेषज्ञों के अनुसार अध्ययन की ‘अंतर्निहित गड़बड़ियां अध्ययन की कार्यप्रणाली, आंकड़ों के सत्यापन और अवलोकन में कमियों की वजह से है. अक्टूबर 2018 में साइंटिफिक एडवाइजरी कमेटी की आठवीं बैठक में सदस्यों ने सहमति जताई कि क्योंकि अध्ययन में गड़बड़ियां थीं… इसलिए नतीजे त्रुटिपूर्ण थे और इसलिए उसे सार्वजानिक नहीं करना चाहिए.’
इन कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यह सब यूनियन कार्बाइड और डाव केमिकल को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया. भोपाल त्रासदी के बाद डाव केमिकल ने यूनियन कार्बाइड को खरीद लिया था.
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, ‘इन दस्तावेजों ने वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक संस्थानों में हमारे भरोसे को कमजोर किया है.’ उन्होंने सवाल उठाया, ‘अगर अध्ययन का तरीका गलत था तो इसे लगातार दो साल तक हुईं बैठकों में मंजूरी कैसे मिली? सही से अध्ययन करने के लिए नया प्रस्ताव क्यों नहीं दिया गया?’
चिल्ड्रन अगेंस्ट डाव केमिकल की नौशीन खान ने कहा, ‘हमारे पास अन्य दस्तावेज हैं जो दिखाते हैं कि 1994-95 में करीब 70 हजार बच्चों का परीक्षण किया गया और इनमें से 2,435 में जन्मजात दिल की बीमारियां पाई गई थीं.’
गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठनों का दावा है कि 2-3 दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित कारखाने से रिसी जहरीली गैस 20,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और लगभग 5.74 लाख लोग प्रभावित हुए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)