सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग़ में हो रहे प्रदर्शन को लेकर कहा कि लोगों के पास किसी क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने का मूल अधिकार है लेकिन सड़कों को अवरुद्ध किया जाना चिंता का विषय है. साथ ही अदालत ने एक मध्यस्थता समिति को प्रदर्शनकारियों से बात करने को कहा है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग में हो रहे प्रदर्शन को लेकर सोमवार को कहा कि किसी कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने का लोगों के पास मूल अधिकार है लेकिन सड़कों को अवरुद्ध किया जाना चिंता का विषय है और विरोध करते हुए एक संतुलन रखना होगा. साथ ही अदालत ने एक मध्यस्थता समिति को प्रदर्शनकारियों से बात करने को कहा है.
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शनों के कारण सड़कें अवरुद्ध होने को लेकर दायर की गई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि न्यायालय को इस बात की चिंता है कि यदि लोग सड़कों पर प्रदर्शन करना शुरू कर देंगे, तो फिर क्या होगा.
लाइव लॉ के अनुसार पीठ ने कहा कि अनिश्चितकाल तक सड़क बंद नहीं की जा सकती और विरोध के लिए कोई अन्य स्थान ढूंढा जा सकता है. जस्टिस कौल ने कहा कि लोगों के पास विरोध करने का हक़ है लेकिन इसमें संतुलन होना चाहिए.
जस्टिस कौल ने आगे कहा, ‘लोकतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति पर चलता है लेकिन इसके लिए भी सीमाएं हैं. अगर इस मामले की सुनवाई यहां चलने के दौरान आप विरोध करना चाहते हैं, वो भी सही है. लेकिन हमारी चिंता सीमित है. आज कोई एक कानून है, कल समाज के किसी और तबके को किसी और बात से परेशानी हो सकती है. ट्रैफिक का अवरुद्ध होना और असुविधा हमारी चिंता का विषय है. मेरी यह भी चिंता है कि अगर कल हर कोई सड़क बंद करना शुरू कर दे, भले ही उसकी वाजिब वजह हो, तो यह सब कहां जाकर रुकेगा.’
पीठ ने यह भी कहा कि एक मध्यस्थता समिति को जाकर प्रदर्शनकारियों से बात करनी चाहिए. समिति की अगुवाई वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े करेंगे. पीठ ने उनसे दो और सदस्यों को चुनने को कहा और वकील साधना रामचंद्रन और पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला का नाम सुझाया.
पीठ ने उनसे को प्रदर्शनकारियों से बात करने और उन्हें ऐसे वैकल्पिक स्थान पर जाने के लिए मनाने को कहा, जहां कोई सार्वजनिक स्थल अवरुद्ध नहीं हो. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 24 फरवरी तय की.
पीठ ने कहा कि लोगों को प्रदर्शन करने का मूल अधिकार है लेकिन जो चीज हमें परेशान कर रही है, वह सार्वजनिक सड़कों का अवरुद्ध होना है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शाहीन बाग प्रदर्शन से यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि हर संस्था इस मुद्दे पर शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को मनाने की कोशिश कर रही है. शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यदि कुछ नहीं हो पाया, तो हम स्थिति से निपटना अधिकारियों पर छोड़ देंगे.
सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के कारण पिछले वर्ष 15 दिसंबर से कालिंदी कुंज-शाहीन बाग और ओखला अंडरपास बंद है.
शीर्ष न्यायालय ने इससे पूर्व भी कहा था कि दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी सड़कों को अवरुद्ध नहीं कर सकते हैं और अन्य लोगों के लिए असुविधा पैदा नहीं कर सकते है.
उच्चतम न्यायालय वकील अमित साहनी द्वारा दायर एक अपील की सुनवाई कर रहा था. साहनी ने दिल्ली उच्च न्यायालय का भी रुख किया था और 15 दिसंबर को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा अवरुद्ध किये गये कालिंदी कुंज-शाहीन बाग मार्ग पर यातायात के सुचारू संचालन के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश दिये जाने का अनुरोध किया था.
साहनी की याचिका पर उच्च न्यायालय ने स्थानीय अधिकारियों को कानून एवं व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए स्थिति से निपटने को कहा था.
भाजपा के पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने शीर्ष न्यायालय में अलग से एक याचिका दायर की और शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिये जाने का अनुरोध किया.
अपनी अपील में साहनी ने उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या दिल्ली उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश से शाहीन बाग में स्थिति की निगरानी कराने का अनुरोध किया था.
साहनी ने अपनी याचिका में कहा कि शाहीन बाग में प्रदर्शनों ने अन्य शहरों में भी इसी तरह के प्रदर्शन किये जाने के लिए लोगों को प्रेरित किया और यदि ऐसा होता रहा तो इससे गलत उदाहरण स्थापित होगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)