तेलतुम्बड़े और नवलखा की गिरफ़्तारी भारत के राजनीतिक इतिहास में ओछेपन का नया स्तर: पीयूडीआर

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने कहा कि लॉकडाउन के बीच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा की गिरफ़्तारी भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दों को उठाने वाले कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों को चुप कराने के केंद्र सरकार के प्रयासों को मज़बूत करती है.

आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा (फोटोः पीटीआई)

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने कहा कि लॉकडाउन के बीच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा की गिरफ़्तारी भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दों को उठाने वाले कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों को चुप कराने के केंद्र सरकार के प्रयासों को मज़बूत करती है.

आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा (फोटोः पीटीआई)
आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों आनंद तेलतुम्बडे और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) ने कहा कि देशभर में फैले कोरोना वायरस के संकट के बीच दोनों का एनआईए के समक्ष ‘आत्मसमर्पण’ करवाया जाना आधुनिक भारत के राजनीतिक इतिहास में ओछेपन का एक नया स्तर है.

लोकतांत्रिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता की वकालत करने वाले संगठन पीयूडीआर ने कहा कि देशव्यापी लॉकडाउन के बीच दोनों की गिरफ्तारियां भारत में गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दों को उठाने वाले कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों को चुप कराने के केंद्र सरकार के लगातार प्रयासों को मजबूत करती हैं.

संगठन ने ऐसी कई बातों की ओर ध्यान दिलाया जो ये संकेत देती हैं कि भीमा कोरेगांव आपराधिक मामले में गिरफ्तार किए गए 11 कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले बनाने में केंद्र सरकार ने साजिश रची है.

पीयूडीआर ने आरोप लगाया कि 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हुई जिस घटना से इन नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का संबंध जोड़ने की कोशिश की गई है उसके असली दोषी संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे आज खुलेआम घूम रहे हैं, जबकि उस घटना से असंबंधित व्यक्ति गिरफ़्तार हैं और पिछले 18-20 माह से बिना ज़मानत जेलों में बंद हैं.

संगठन ने कहा कि गिरफ़्तार किए गए सभी 11 व्यक्ति और इनसे सम्बंधित संगठन लम्बे समय से मज़दूरों, किसानों और आदिवासियों के अधिकारों, जातीय और साम्प्रदायिक हिंसा, विकास, विस्थापन और पर्यावरण, और पुलिस फ़ाइअरिंग, मुठभेड़, और हिरासत में हत्याओं से जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं. इन्हीं कार्यों से जुड़ाव को, आज गिरफ़्तारियों के ज़रिए, आपराधिक ठहराया जा रहा है.

पीयूडीआर ने कहा कि क़ानूनी तौर पर भारतीय राज्य राजनीतिक बंदियों की श्रेणी का संज्ञान चाहे न ले, पर कोविड–19 महामारी के दौर में अपने कार्यकलापों से राज्य ने यह ज़ाहिर कर दिया है कि राजनीतिक विचारों के लिए जिन लोगों को बंदी बनाया जाता है, उनके लिए न्याय की एक अलग प्रणाली चलती है.

बता दें कि, पुणे में भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता डॉ. आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा ने मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, जिसके बाद इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

तेलतुम्बड़े ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार एनआईए के दक्षिण मुंबई के कम्बाला हिल स्थित कार्यालय में आत्मसमर्पण किया, जिसके बाद एजेंसी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. वहीं, मामले में एक सह-आरोपी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने भी दिल्ली में एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया.

शीर्ष अदालत ने बीते 16 मार्च को इन कार्यकर्ताओं की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि उनके खिलाफ पहली नजर में कोई मामला नहीं बना है. हालांकि न्यायालय ने इन कार्यकर्ताओं को जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिए तीन सप्ताह का वक्त दिया था.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीते नौ अप्रैल को इन दोनों को आत्मसमर्पण करने के लिए एक और सप्ताह का समय दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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