कोर्ट ने कहा कि सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वे समय-समय पर इसकी समीक्षा करें ताकि जरूरतमंद लोगों को आरक्षण का लाभ मिले और संपन्न या सक्षम लोग इस पर अधिकार जमाए न बैठे रहें.
नई दिल्ली: ओबीसी और एससी/एसटी समुदाय के जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ न मिलने की चिंताओं की ओर इशारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार को कहा कि सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वे समय-समय पर इसकी समीक्षा करें ताकि इस वर्ग के जरूरतमंद लोगों को आरक्षण का लाभ मिले और संपन्न या सक्षम लोग इसे न हड़पें.
साल 2000 के जनवरी महीने में पूर्ववर्ती आंध्र प्रदेश के राज्यपाल द्वारा जारी किए गए एक आदेश को असंवैधानिक ठहराते हुए पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘अब आरक्षित वर्ग के भीतर चिंताएं हैं. इस समय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर संपन्न और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उच्च श्रेणी के वर्ग हैं. अनुसूचित जातियों/जनजातियों में से कुछ के सामाजिक उत्थान से वंचित व्यक्तियों द्वारा आवाज उठाई गई है लेकिन वे अभी भी जरूरतमंदों तक लाभ नहीं पहुंचने देते हैं. इस प्रकार, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षित वर्गों के भीतर पात्रता को लेकर संघर्ष चल रहा है.’
राज्यपाल के इस आदेश के तहत आंध्र प्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों के स्कूलों में टीचर की नियुक्ति में एसटी उम्मीदरवार को 100 फीसदी आरक्षण दिया गया था. इसका मतलब है कि इस क्षेत्रों में सिर्फ अनुसूचित जनजाति वर्ग के टीचर की ही नियुक्ति होनी थी.
कोर्ट ने कहा कि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है कि 100 फीसदी आरक्षण दिया जाए. साल 1992 में इंदिरा साहनी फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि अधिकतम आरक्षण 50 फीसदी तक ही हो सकता है.
जस्टिस अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के साथ सहमति व्यक्त की कि आरक्षण के हकदार लोगों की सूचियों को समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘हमारी राय में डॉ. राजीव धवन द्वारा सही आग्रह किया गया था है कि सरकार द्वारा सूचियों को संशोधित करने की आवश्यकता है. आरक्षण के प्रतिशत से छेड़छाड़ किए बगैर ऐसा किया जा सकता है ताकि जरूरतमंदों तक इसका लाभ पहुंचे और ऐसा न हो कि पिछले 70 सालों इसका लाभ उठाकर संपन्न या सक्षम हुए लोग इस पर अपना अधिकार जामाए रहें. सरकार की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी प्रक्रिया को अपनाएं, जो कि इंदिरा साहनी फैसले में भी कहा गया है और संवैधानिक भी है.’
पीठ ने कहा, ‘आरक्षण को 100 फीसदी करना भेदभावपूर्ण और असंगत होगा. सार्वजनिक रोजगार के अवसर को अनुचित तरीके से इनकार नहीं किया जा सकता है, और यह कुछ का विशेषाधिकार नहीं है. नागरिकों के पास समान अधिकार हैं, और एक वर्ग के लिए एक अवसर पैदा करके दूसरों का बहिष्कार करना भारत के संविधान के संस्थापकों द्वारा विचार नहीं किया गया है. अनुच्छेद 51ए के तहत अन्यायपूर्ण और मनमाने ढंग से किसी को मौका देने से वंचित नहीं किया जा सकता है.’