भारत और नेपाल दोनों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपनी सीमा का अभिन्न हिस्सा बताते हैं. हाल ही में जारी नए राजनीतिक मानचित्र में नेपाल ने इन हिस्सों को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया है.
काठमांडू: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंगलवार को कहा कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा नेपाल के हिस्से हैं. उन्होंने राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से इन हिस्सों को भारत से दोबारा हासिल करने की बात कही.
बता दें कि भारत के साथ सीमा विवाद के बीच नेपाल के कैबिनेट ने एक नया राजनीतिक मानत्रिच जारी किया है जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है.
संसद को संबोधित करते हुए ओली ने कहा कि ये क्षेत्र नेपाल के हिस्से हैं लेकिन अपनी सेना को तैनात करके भारत ने इसे विवादित बना दिया. उन्होंने कहा कि भारत द्वारा सेना की तैनाती के बाद नेपाल के लोगों को वहां जाने से रोक दिया गया है.
उन्होंने कहा, ‘भारत ने 1962 से ही अपनी टुकड़ियों की तैनाती कर रखी है लेकिन इससे पहले हमारे शासक इस मुद्दे को उठाने से बचते रहे.’
उन्होंने कहा, ‘हम दोबारा हासिल करेंगे और वापस लेकर रहेंगे.’
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि नेपाल सरकार क्षेत्र को दोबारा हासिल करने के लिए राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयास करेगी.
ओली ने यह उम्मीद भी जताई कि भारत अपने राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र में उल्लेखित ‘सत्यमेव जयते’ द्वारा दिखाए गए सत्य के मार्ग का अनुसरण करेगा.
उन्होंने कहा कि वह भारत के साथ मधुर संबंध चाहते हैं लेकिन वह पूछना चाहते हैं कि भारत ‘सीमामेव जयते चाहता है या सत्यमेव जयते.’
ओली का यह बयान नेपाल के कैबिनेट द्वारा एक नए राजनीतिक मानचित्र को स्वीकार किए जाने के बाद आया है जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है.
विदेश मंत्री प्रदीप कुमार गयावली ने कहा था कि भूमि प्रबंधन मंत्रालय जल्द ही नेपाल का आधिकारिक मानचित्र सार्वजनिक करेगा.
नेपाल द्वारा आपत्ति जताने में चीन का हाथ होने का संकेत देने वाले भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की टिप्पणी पर ओली ने कहा कि हम जो भी करते हैं, खुद से करते हैं.
बता दें कि बीते शुक्रवार को भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने परोक्ष रूप से चीनी भूमिका का संकेत देते हुए कहा था कि यह मानने के कारण हैं कि उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे तक भारत के सड़क बिछाने पर नेपाल किसी और के कहने पर आपत्ति जता रहा है.
वहीं, बीते मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में भारतीय सेना प्रमुख की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन ने कहा कि कालापानी सीमा का मुद्दा भारत और नेपाल के बीच का है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिआन उम्मीद जताई कि दोनों पड़ोसी देश ‘एकतरफा कदम उठाने’ से परहेज करेंगे और मैत्रीपूर्ण ढंग से अपने विवाद को सुलझाएंगे.
बता दें कि लिपुलेख दर्रा, नेपाल और भारत के बीच विवादित सीमा, कालापानी के पास एक दूरस्थ पश्चिमी स्थान है. भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपनी सीमा का अभिन्न हिस्सा बताते हैं. भारत उसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा बताता है और नेपाल इसे धारचुला जिले का हिस्सा बताता है.
इन हिस्सों को भारत का मानचित्र लंबे समय से अपने हिस्से में दिखाता रहा है. हालांकि, नेपाल इसे 1816 की सुगौली संधि का उल्लंघन बताता रहा है.
मालूम हो कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसी महीने लिपुलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सर्कुलर लिंक रोड का उद्घाटन किया था.
रणनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथा चीन की सीमा से सटे 17,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रा इस सड़क के माध्यम से अब उत्तराखंड के धारचूला से जुड़ जाएगा.
इस पर आपत्ति जताते हुए नेपाल ने कहा था कि यह ‘एकतरफा कदम’ दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए बनी सहमति के खिलाफ है.
हालांकि, भारत ने नेपाल की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा था कि उत्तराखंड में धारचूला को लिपुलेख दर्रे से जोड़ते हुए जो नई सड़क बनाई गई है, वह पूरी तरह उसके क्षेत्र में है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)