क्या गुजरात सरकार द्वारा आंकड़े कम दिखाने के लिए जानबूझकर कोविड टेस्टिंग की रफ़्तार कम की गई है?

राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए उसकी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है, ऐसे में अहमदाबाद में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में ढेरों कोविड संभावित मरीज़ भर्ती होने के कई दिन बाद भी टेस्ट के लिए इंतज़ार करने को मजबूर हैं.

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Bhubaneswar: A medic works on a sample for COVID-19 Rapid Test at a camp during the nationwide lockdown imposed in a bid to contain the spread of coronavirus, in Bhubaneswar, Monday, April 20, 2020. (PTI Photo)(PTI20-04-2020_000087B)

राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए उसकी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है, ऐसे में अहमदाबाद में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में ढेरों कोविड संभावित मरीज़ भर्ती होने के कई दिन बाद भी टेस्ट के लिए इंतज़ार करने को मजबूर हैं.

Bhubaneswar: A medic works on a sample for COVID-19 Rapid Test at a camp during the nationwide lockdown imposed in a bid to contain the spread of coronavirus, in Bhubaneswar, Monday, April 20, 2020. (PTI Photo)(PTI20-04-2020_000087B)
(फोटो: पीटीआई)

अहमदाबाद में बढ़ती कोविड संक्रमितों की संख्या के बीच गुजरात सरकार पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. गुजरात हाईकोर्ट भी इस मामले में सरकार की फटकार लगा चुका है, फिर भी शहर के अस्पतालों की बिगड़ी स्थितियों में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है.

अहमदाबाद मिरर की रिपोर्ट के अनुसार शहर के निजी अस्पतालों में भर्ती मरीज कोविड के टेस्ट के लिए कई-कई दिनों तक इंतजार करने को मजबूर हैं. इसकी वजह है कि राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए उसकी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया है.

इसके चलते राज्य में टेस्टिंग की गति तो कम हुई ही है, साथ ही इलाज का इंतजार कर रहे मरीजों के लिए भी यह स्थिति घातक साबित हो रही है क्योंकि उनके ट्रीटमेंट के बारे में कोई फैसला ही नहीं लिया जा पा रहा है.

मंगलवार को प्रकाशित अख़बार की इस रिपोर्ट के अनुसार, बीते पांच-छह दिनों से कई मरीज वेंटिलेटर पर हैं और उन्हें कोविड-19 का ट्रीटमेंट दिया जा रहा है, हालांकि वे कोरोना पॉजिटिव हैं या नहीं, इस बारे में उनकी लैब रिपोर्ट नहीं मिली है.

गुजरात में अब तक कोविड-19 के 14,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें संक्रमितों की बहुत बड़ी संख्या अहमदाबाद में है, जहां कोविड से हुई मौतों का प्रतिशत देशभर में सबसे अधिक है.

तब क्या ऐसे में गुजरात सरकार द्वारा जानबूझकर टेस्टिंग कम करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे कि शहर में बढ़ते कोरोना के मामलों की स्थितियों को सुधरता हुआ दिखाया जा सके?

इस अख़बार से बात करने वाले शहर के करीब आठ प्राइवेट अस्पतालों का तो ऐसा ही मानना है. उन्हें लगता है कि राज्य सरकार द्वारा जानबूझकर टेस्ट की रफ्तार कम की गई है.

एक निजी अस्पताल के सीईओ ने कहा, ‘पहले तो सरकार ने खूब शोर मचाया कि टेस्टिंग करो, टेस्टिंग करो, इस जानलेवा वायरस को रोकने का यही तरीका है, लेकिन अब टेस्टिंग को लेकर यह धीमी पड़ गई है.’

इन सीईओ ने अपनी पहचान न जाहिर करने की शर्त पर अखबार से बात की थी क्योंकि उनका कहना था कि अगर वे नाम बताएंगे तो ब्लैकलिस्ट किए जाने का डर है.

अख़बार द्वारा उपमुख्यमंत्री और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल से भी बात करने का प्रयास किया गया था, लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.

अख़बार का कहना है कि उनके पास सरकारी, अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) द्वारा संचालित और निजी अस्पतालों में भर्ती 18 मरीजों के मेडिकल दस्तावेज हैं, जो बताते हैं कि वे गंभीर हालत में हैं या वेंटिलेटर पर हैं, लेकिन उनके कोविड-19 टेस्ट की रिपोर्ट भर्ती होने के पांच दिन बाद भी नहीं मिली.

निजी अस्पतालों ने बताया है कि टेस्टिंग के लिए किए जा रहे उनके अनुरोध, जो अनिवार्य रूप से सरकारी कर्मचारियों के माध्यम से किए जाने हैं, को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. कम से कम चार मामलों में टेस्ट के अनुरोध और टेस्टिंग में चार दिन से ज्यादा समय लगा और मरीज की मौत हो गई.

गौरतलब है कि बीते हफ्ते गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तुरंत अधिक से अधिक टेस्टिंग किट खरीदने का निर्देश दिया था और निजी लैब को सरकारी दरों पर परीक्षण करने में सक्षम बनाने के लिए कहा था.

अदालत ने सरकार से यह भी कहा था कि वह ‘चौकीदार’ की भूमिका में है, साथ ही सरकार से निजी लैब में टेस्टिंग शुरू करने के समय के बारे में निर्णय लेने को कहा था.

राज्य में यह चर्चा बहुत जोर पकड़ चुकी है कि प्रदेश सरकार का टेस्ट में देरी करना गुजरात में बढ़ते कोविड मामलों को कृत्रिम तरह से रोकने की कोशिश है. बीते हफ्ते अदालत ने भी कहा था कि राज्य सरकार अब तक केवल ‘राज्य में मामलों की संख्या को कृत्रिम रूप से नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.’

सरकार के उद्देश्यों पर सवाल खड़ा करते हुए हाईकोर्ट का कहना था, ‘यह तर्क कि अधिक संख्या में टेस्ट होने से 70 फीसदी आबादी ही पॉजिटिव निकलेगी, यह डर टेस्ट को नकारने या सीमित कर देने का आधार नहीं होना चाहिए.’

कोर्ट ने यह भी कहा था कि उन्होंने देखा है कि टेस्टिंग किट की कमी नहीं है, लेकिन टेस्ट के लिए राज्य सरकार की अनिवार्य अनुमति की शर्त के चलते डॉक्टर टेस्ट नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे मामलों में भी जहां वे देख सकते हैं कि मरीज के लक्षण कोरोना के ही हैं.

अदालत ने आगे कहा था, ‘आखिर में मरीज को ही भुगतना पड़ता है… किसी कोविड मरीज के लिए 3-5 दिन का इंतजार घातक साबित हो सकता है.’

कुछ ऐसे मरीज, जो अभी अस्पताल में भर्ती हैं, पर उनकी कोविड-19 रिपोर्ट नहीं आई है, उनकी जानकारी इस प्रकार है-

विजय शाह और शांताबेन शाह : 62 वर्षीय विजय अहमदाबाद के एसजीवीपी अस्पताल में 21 मई से भर्ती हैं. उन्हें 18 मई से बुखार आया था, जब उनके सर्जन बेटे हार्दिक ने उन्हें दवाइयां दीं, लेकिन बुखार कम न होने पर वे उन्हें इस अस्पताल में ले आए.

सोमवार 25 मई तक उनका कोविड-19 का टेस्ट नहीं किया गया था. हार्दिक ने बताया, ‘जब बुखार कम नहीं हुआ तब उनका सिटी थोरैक्स टेस्ट किया गया, जिसमें कोविड-19 के शुरुआती लक्षण जैसे दिखाई दिए. क्योंकि कोई निजी लैब टेस्ट नहीं कर रही थी, इसलिए मैं उन्हें लेकर एसजीवीपी, एसजी रोड में आया. हमने टेस्ट की अनुमति लेने के लिए उसी दिन ईमेल कर दिया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.’

उन्होंने आगे बताया कि 20 मई को उनकी दादी यानी विजय की मां शांताबेन शाह में भी लक्षण दिखने लगे. हार्दिक ने बताया कि वे उन्हें लेकर कई अस्पतालों में गए लेकिन आखिर में उन्हें शनिवार को नवरंगपुरा के सेवियर अस्पताल में भर्ती किया जा सका.

हार्दिक ने सोमवार को बताया था कि 48 घंटे होने के बाद भी उनका कोविड-19 का टेस्ट नहीं किया गया था. उन्होंने कहा, ‘सरकार कहती है कि मृत्यु दर इसलिए अधिक है कि लोग ट्रीटमेंट के लिए समय पर नहीं आ रहे हैं.  पर उन्हें टेस्ट की गति में तेजी लानी चाहिए जिससे कोविड के मरीजों का जल्दी पता चले और उन्हें इलाज मिल सके.’

सेवियर अस्पताल के निदेशक डॉ. ध्रुव शाह ने बताया शांताबेन को सांस लेने में तकलीफ है, इसलिए उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जा रहा है. उन्हें आइसोलेशन में रखा गया है, अलग स्टाफ है. लेकिन जब तक टेस्ट नहीं होता और रिपोर्ट नहीं आ जाती, उनके ट्रीटमेंट के बारे में  कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता.

डॉ. शाह कहते हैं कि ऐसे लक्षणों के साथ अस्पताल में भर्ती मरीजों की सबसे बड़ी चिंता यही है.

फोटो: पीटीआई
फोटो: पीटीआई

प्रग्नेश शाह: 62 साल के व्यापारी प्रग्नेश 21 मई से पांजरापोल के अर्थम अस्पताल में भर्ती हैं. उन्होंने बताया, ‘मुझे तीन दिनों तक आईसीयू में रखा गया फिर दो दिन पहले एक कमरे में शिफ्ट कर दिया गया.’ शाह ने बताया कि अस्पताल को सरकार से कोविड टेस्ट की इजाजत नहीं मिली है.

उन्होंने आगे बताया कि उनमें अभी कोई लक्षण नहीं हैं, लेकिन अस्पताल ने कहा है कि जब तक टेस्ट नहीं होते और रिपोर्ट नहीं आ जाती, उन्हें अस्पताल में रहना होगा. शाह ने बताया कि उन्होंने अस्पताल में ढाई लाख रुपये एडवांस में जमा किए थे, हालांकि पूरे खर्च के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.

इस अस्पताल के डॉ. मयंक ने बताया कि वे टेस्ट के लिए सरकार की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं. जैसे ही वो मिलेगी, वे टेस्ट करेंगे.

प्रीतेश पटेल: मेघानीनगर के रहने वाले 49 साल के बिजनेसमैन प्रीतेश स्टार हॉस्पिटल, बापूनगर में 22 मई से भर्ती हैं. आने के तीन दिन बाद रविवार को उनका कोविड का टेस्ट किया गया था. सोमवार को आई रिपोर्ट में वे कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं.

उन्होंने बताया, ‘एक इंफेक्शन के बाद मुझे बुखार आया था, इसलिए मैं कोविड-19 के टेस्ट करवाने के लिए 22 तारीख को अस्पताल में भर्ती हो गया, हालांकि तीन दिन के इंतजार के बाद ये हुआ. अब मुझे पॉजिटिव पाया गया है, तो मुझे अपने बूढ़े माता-पिता की फिक्र हो रही है.’

इस अस्पताल के चेयरमैन डॉ. भावेश ठक्कर कहते हैं, ‘अगर रोज मरीजों के टेस्ट किए जाएं तो कोविड अस्पतालों का बोझ कम हो सकता है. इससे कोरोना नेगेटिव मरीज अस्पताल से जा सकते हैं और पॉजिटिव मरीजों को बेड दिए जा सकेंगे.’

चंद्रिका चावड़ा: 50 साल की चंद्रिका 23 मई से वस्त्रपुर के डीएचएस अस्पताल में भर्ती हैं. उनके पति कंचन चावड़ा भी यहीं भर्ती हैं और कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद उनका इलाज चल रहा है.

चंद्रिका ने बताया, ‘हम लोग मेहसाणा से हैं. कुछ दिन पहले मेरे पति को कोरोना संक्रमण हुआ था और मेरे भतीजे की मदद से उन्हें यहां भर्ती करवाया. लेकिन अभी तक मेरा टेस्ट नहीं हुआ है क्योंकि इसके लिए सरकार से मंजूरी नहीं मिली है.’

चंद्रिका को जुकाम, खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण हैं. वे कहती हैं, ‘हमें बहुत चिंता हो रही है, बच्चों को होम क्वारंटीन किया हुआ है और पति जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन सब के बीच ये भी नहीं पता कि हम संक्रमित हैं भी कि नहीं.’

इस परिवार के रिश्तेदार डॉ. जगदीश सोलंकी बताते हैं, ‘मेरे अंकल का टेस्ट पॉजिटिव आया है तो आंटी का टेस्ट क्यों नहीं किया जा रहा? बाकी परिजनों का टेस्ट क्यों नहीं हो रहा? हो सकता है वे असिम्पटोमैटिक (बिना लक्षण के) हों, लेकिन अगर वे पॉजिटिव हुए, तो वे उसी सोसाइटी में रहने वाले परिवार के 35 और सदस्यों को संक्रमित कर सकते हैं.’

इस अस्पताल के निदेशक डॉ. स्वागत शाह कहते हैं, ‘हमारे अस्पताल को हाल ही में कोविड अस्पताल में बदला गया है. हालांकि जब ये नॉन-कोविड अस्पताल था तब भी यही मसला था. कोई संदिग्ध मामला आता था और अगर हम इलाज से पहले उसका कोविड टेस्ट करवाना चाहते थे, तब भी अनुमति नहीं मिली.’

सिफारिश के बाद हुई कोविड से गुजरे शख्स के परिजनों की टेस्टिंग

22 मई  को एएमसी द्वारा संचालित शारदाबेन अस्पताल में 57 साल के हाईस्कूल शिक्षक रमेश राजदेव सिंह की मौत हो गई थी. उनके एक रिश्तेदार ने सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती साझा की है कि कैसे एएमसी उन सभी के टेस्ट कर पाने में असमर्थ रहा.

सिंह की मौत के बाद परिजनों ने अपना कोविड टेस्ट करवाने के लिए नगर निगम की मदद मांगी थी. सिंह के बेटे सुमेश ने बताया, ‘मेरे पिता को भी जूझना पड़ा था. हम 20 मई को उन्हें प्राइवेट डॉक्टर के यहां टेस्ट के लिए ले गए थे. शुरुआत में उनका बुखार का इलाज शुरू हुआ था, फिर उन्हें कोविड का टेस्ट करवाने को कहा गया.’

उन्होंने आगे बताया, ‘इसके बाद उन्हें सांस लेने में मुश्किल होने लगी और हम 108 इमरजेंसी सर्विस से उन्हें अस्पताल लेकर गए. उनका टेस्ट हुआ, वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन उनके गुजर जाने के बाद उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई.’

सुमेश ने बताया कि इसके बाद जब उनकी मां सहित कई परिजनों में कोरोना के लक्षण दिखने लगे, तब उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि कैसे उन्हें टेस्टिंग के लिए एएमसी का सहयोग नहीं मिल रहा है.

उन्होंने बताया फिर एनसीपी के महासचिव शंकरसिंह वाघेला ने हस्तक्षेप किया और एएमसी के कमिश्नर से इस परिवार को टेस्ट करने के लिए कहा गया. सुमेश कहते हैं, ‘मैं रविवार को सिविल अस्पताल गया था. लोगों ने बताया कि 6-7 दिनों से टेस्ट नहीं हुए हैं और मेडिकल टीम बताती भी नहीं कि इसका नतीजा क्या निकला. सरकार सेल्फी और कोरोना वॉरियर अभियान में व्यस्त है, उसे ये टेस्ट करवाने चाहिए.’

वे टेस्टिंग बढ़ाए जाने की मांग करते हुए कहते हैं, ‘अगर लोग अपनी जेब से पैसे देकर टेस्ट करवाना चाहते हैं, तो इसमें सरकार को क्या परेशानी है?’