सांसद आदर्श ग्राम योजना का न गांवों पर कोई प्रभाव पड़ा, न लक्षित उद्देश्य मिला: ऑडिट रिपोर्ट

सांसद आदर्श ग्राम योजना के प्रभाव का आकलन करने के लिए बनाई गई एक समिति ने कहा है कि इसके लिए कोई समुचित फंड नहीं है और सांसदों ने इसमें कोई ख़ास रुचि नहीं दिखाई है, जिसके कारण योजना काफी प्रभावित हुई है.

/
2014 में सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो: पीआईबी)

सांसद आदर्श ग्राम योजना के प्रभाव का आकलन करने के लिए बनाई गई एक समिति ने कहा है कि इसके लिए कोई समुचित फंड नहीं है और सांसदों ने इसमें कोई ख़ास रुचि नहीं दिखाई है, जिसके कारण योजना काफी प्रभावित हुई है.

2014 में सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो: पीआईबी)
2014 में सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
(फाइल फोटो: पीआईबी)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी सांसद आदर्श ग्राम योजना का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा है और न ही लक्षित उद्देश्य की प्राप्ति हुई है.

ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के प्रदर्शन से संबंधित एक रिपोर्ट में यह जानकारी देते हुए कहा गया है कि इस योजना की समीक्षा की जानी चाहिए.

सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) की घोषणा मोदी ने 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले स्वतंत्रता दिवस संबोधन में की थी.

इस योजना के तहत प्रत्येक सांसद को गांवों को गोद लेकर इसे आदर्श ग्राम के तौर पर विकसित करना था. योजना की शुरुआत 11 अक्टूबर 2014 को हुई थी.

केंद्र ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत आने वाली विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के समुचित क्रियान्वयन और उनके प्रभाव के आकलन के लिए एक साझा समीक्षा मिशन (सीआरएम) का गठन किया था.

अपनी रिपोर्ट में सीआरएम ने कहा है कि एसएजीवाई के लिए कोई समर्पित कोष नहीं है, जिससे योजना पर बुरा प्रभाव पड़ा है. किसी और मद की रकम के जरिये इसके लिए कोष जुटाया जाता है.

सीआरएम के मुताबिक उसके दलों ने राज्यों का दौरा किया और उन्हें योजना का कोई ‘महत्वपूर्ण प्रभाव’ नजर नहीं आया.

सीआरएम ने कहा कि इस योजना के तहत सांसदों द्वारा गोद लिए गए गांवों में भी सांसदों ने अपनी क्षेत्र विकास निधि से इसके लिए पर्याप्त रकम आवंटित नहीं की.

सीआरएम ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘कुछ मामलों में जहां सांसद सक्रिय हैं, कुछ आधारभूत विकास हुआ है, लेकिन योजना का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा है.’

सीआरएम के मुताबिक ऐसे में इन गांवों को आदर्श ग्राम नहीं कहा जा सकता और इस योजना की समीक्षा की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘सीआरएम की राय है कि यह योजना अपने मौजूदा स्वरूप में इच्छित उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करती. यह अनुशंसा की जाती है कि मंत्रालय इसका प्रभाव बढ़ाने के लिए योजना की समीक्षा कर सकता है.’

सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी राजीव कूपर की अध्यक्षता में सीआरएम के 31 सदस्यीय दल ने नवंबर में आठ राज्यों के 21 जिलों के 120 गांवों का दौरा किया था.

इन आठ राज्यों में छत्तीसगढ़, केरल, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक समिति ने गांवों की बिगड़ी हुई स्थिति बयां करने के लिए कुछ उदाहरण भी दिए हैं.

जैसे कि मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के आरूद गांव में योजना के तहत कुल 118 तरह के कार्य कराए जाने थे लेकिन अभी तक सिर्फ 60 फीसदी कार्यों को ही पूरा किया जा सका है और बाकी काम फंड की कमी की वजह से लंबित हैं.

वहीं केरल के कल्लीक्कड़ ग्राम पंचायत में मिशन की टीम को योजना के तहत कोई विशेष उपलब्धि दिखाई नहीं दी. फिर भी इस गांव को एसएजीवाई के तहत बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाया जाता है.

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के एक गांव का दौरा करने पर टीम ने कहा, यह विडंबना ही है कि आदर्श ग्राम यह गांव तक खुले में शौच मुक्त घोषित नहीं हुआ है.

यूपी के ही हरदोई जिले के एक आदर्श गांव का दौरा करने के बाद समिति ने कहा, ‘कुल मिलाकर योजना का यहां कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है.’

सीआरएम ने कहा कि उन जगहों पर अच्छा काम हुआ है जहां पर सांसदों ने योजना में रुचि दिखाई है और सांसद निधि के तहत उचित राशि आवंटित की है.

आयोग ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत आने वाली सभी कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा की और बेहतर क्रियान्वयन के लिए सुझाव दिये. सीआरएम में शिक्षाविद् और शोध संगठनों के सदस्य भी शामिल हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)