बिहार: मिड-डे मील न मिलने से कबाड़ बीनने को मजबूर बच्चे, एनएचआरसी ने नोटिस जारी किया

बिहार के भागलपुर ज़िले में मिड-डे मील बंद होने के कारण ग़रीब परिवार से आने वाले बच्चों के कूड़ा बीनने और भीख मांगने के साथ ठेकेदारों के पास काम करने का मामला सामने आया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया)

बिहार के भागलपुर ज़िले में मिड-डे मील बंद होने के कारण ग़रीब परिवार से आने वाले बच्चों के कूड़ा बीनने और भीख मांगने के साथ ठेकेदारों के पास काम करने का मामला सामने आया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बिहार में कोरोना वायरस के कारण बंद हुए स्कूलों के बच्चों को मिड-डे मील का लाभ नहीं देने की खबरों पर गहरी नाराजगी जाहिर की है.

इस योजना का लाभ नहीं मिलने के कारण पेट भरने के लिए बच्चों को कबाड़ बीनने और भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

आयोग ने इसे लेकर केंद्र के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और बिहार सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा है.

बीते सोमवार को इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि राज्य के भागलपुर जिले के स्कूली बच्चे भीख मांगने से लेकर कूड़ा बीनने जैसे काम कर अपने लिए खाना जुटा रहे हैं. ये मामला जिले के बडबिला गांव के मुसहरी टोला का है.

मानवाधिकार आयोग ने जारी अपने आदेश में कहा कि न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के स्कूली बच्चों को मिड-डे मील में रोटी-चावल के साथ दाल, सब्जी और अंडा दिया जाता था, लेकिन इस समय इसे बंद कर दिया गया है. इसके कारण गरीब परिवार से आने वाले बच्चे अब कूड़ा बीन रहे हैं, भीख मांग रहे हैं या फिर ठेकेदारों के पास काम करने लगे हैं.

उन्होंने कहा कि बच्चे अब कुपोषण का भी शिकार हो रहे हैं. आयोग ने कहा कि मिड-डे मील के तहत सरकारी स्कूल के बच्चों को खाना देना उनके शिक्षा और भोजन के अधिकार से जुड़ा मामला है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 21(ए) के तहत शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है.

आयोग ने एक बयान में कहा, ‘देशभर में लॉकडाउन के दौरान स्कूल नहीं खुल रहे हैं और मध्याह्न भोजन रोक दिया गया है, जिसके चलते गरीब बच्चों को छोटा-मोटा काम करना पड़ रहा है. इससे न केवल उनका स्वास्थ्य बिगड़ता है, बल्कि वे छोटे-मोटे अपराधों एवं अन्य असामाजिक गतिविधियों में पहुंच जाते हैं.’

उन्होंने कहा कि इस स्थिति में बच्चों के मादक पदार्थों की लत लगने तथा अनैतिक गतिविधियों में लगे समाज के आपराधिक तत्वों द्वारा (उनकी) तस्करी करने की आशंका होगी.

आयोग ने बयान में कहा कि इसी के मद्देनजर उसने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव तथा बिहार सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है और उनसे चार सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.

ये मामला प्रकाश में आने के बाद बिहार सरकार ने आदेश जारी कर कहा है कि मिड-डे मील योजना के तहत मई से लेकर जुलाई तक के लिए बच्चों को राशन और पैसे दिए जाए.

बीते छह जुलाई को बिहार में मिड-डे मील योजना के निदेशक द्वारा जारी आदेश में कहा गया, ‘सभी जिला पदाधिकारी को निदेशित किया गया है कि कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए विद्यालय बंदी तथा ग्रीष्मावकाश में मध्याह्न भोजन के अंतर्गत मई, जून एवं जुलाई 2020 के लिए वर्ग एक से पांच तक प्रति छात्र को आठ किलो खाद्यान्न और 358 रुपये एवं वर्ग छह से आठ तक प्रति छात्र को 12 किलो खाद्यान्न तथा 536 रुपये तत्काल दिया जाए.’

राज्य सरकार ने यह भी बताया कि पूर्व में कोरोना के कारण विद्यालय बंदी के दौरान 14/03/2020 से 03/05/2020 तक खाद्यान्न मद के एवज में 378.70 करोड़ रुपये की राशि बिहार के सभी सरकारी/अर्धसरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों के सभी नामांकित छात्रों या उनके अभिभावक के खाते में डाले गए हैं.

मालूम हो कि कोरोना वायरस के कारण लागू किए गए लॉकडाउन की शुरुआत में ही केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश जारी कर कहा था कि स्कूल बंद होने के दौरान भी बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) दिया जाए, जिसमें खाद्यान्न और खाना पकाने का मूल्य शामिल होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में संज्ञान लेते हुए मार्च में कहा था कि इस महामारी के बीच में ऐसी योजनाओं के बंद नहीं किया जा सकता है.

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