जीएन साईबाबा की ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज किए जाने के चार दिन बाद उनकी मां का निधन

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा ने ज़मानत के लिए दाखिल याचिका में कहा था कि उनकी मां अंतिम सांसें गिन रही हैं और उन्हें अपने बेटे को देखने का अधिकार है. चार दिन पहले इसे बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने ख़ारिज कर दिया था. शनिवार को साईबाबा की मां का हैदराबाद में देहांत हो गया.

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GN Saibaba PTI
जीएन साईबाबा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा ने ज़मानत के लिए दाखिल याचिका में कहा था कि उनकी मां अंतिम सांसें गिन रही हैं और उन्हें अपने बेटे को देखने का अधिकार है. चार दिन पहले इसे बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने ख़ारिज कर दिया था. शनिवार को साईबाबा की मां का हैदराबाद में देहांत हो गया.

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दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. जीएन साईबाबा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नागपुर: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने चार दिन पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा की उनकी मां से मिलने के लिए दाखिल जमानत याचिका खारिज कर दी थी.

साईबाबा की मां का बीते शनिवार को हैदराबाद में निधन हो गया.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, साईबाबा के वकील आकाश सोर्डे ने बताया कि साईबाबा की उनकी 74 वर्षीय कैंसर पीड़ित मां गोकरकोंडा सूर्यवती से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बात करवाने के लिए शुक्रवार को आखिरी बार कोशिश की क्योंकि डॉक्टरों ने कहा था कि वह अब 48 घंटे से अधिक जीवित नहीं रह सकती हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमने नागपुर केंद्रीय कारागार के पुलिस अधीक्षक अनूपकुमार कुमरे से संपर्क करने की कोशिश की ताकि अपनी अंतिम इच्छा पूरी करने के वह उन्हें देख सकें. लेकिन हमारे कॉल का कोई जवाब नहीं आया. कुमरे ने हमारे कॉल और मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया.’

दिल्ली में साईबाबा की पत्नी वसंता द्वारा जारी बयान में कहा गया कि सूर्यवती का शनिवार दोपहर में निधन हो गया और उड़ान प्रतिबंधों के कारण वह भी वहां नहीं जा सकीं.

उन्होंने कहा, ‘उनका स्वास्थ्य लगातार खराब होता जा रहा था. इस‌ तरह दयालु और देखभाल करने वाली महिला के निधन से मैं बहुत दुखी हूं और खुद से बेहद निराश हूं कि मैं उनकी आखिरी इच्छा पूरी नहीं कर सकी.’

51 वर्षीय साईबाबा को उनकी मां देखना चाहती हैं इस आधार पर जमानत दिए जाने के खिलाफ बहस करते हुए विशेष सरकारी वकील प्रशांत सतानाथन ने कहा था कि उनके भाई उनकी मां के साथ हैं और वह कोविड-19 कंटेनमेंट जोन में रहती हैं जहां साईबाबा को भी यह बीमारी हो सकती है.

आजीवन कारावास की सजा काट रहे साईबाबा ने 45 दिन की अस्थायी जमानत के लिए अर्जी दी थी.

अपनी मां को देखने के साथ साईबाबा ने जमानत के लिए शारीरिक अक्षमता के साथ गंभीर बीमारियों का हवाला दिया था जिसमें उच्च रक्तचाप, लिवर और किडनी की समस्याएं शामिल हैं और कोविड-19 के कारण इससे उन्हें खतरा हो सकता है.

साईबाबा के वकील निहाल सिंह राठौड़ ने अदालत में कहा था कि नागपुर जेल में कोरोना संक्रमण के कई मामले मिले हैं, साथ ही साईबाबा को उनकी जरूरतों के मुताबिक फिजियोथेरेपी भी नहीं मिल रही है न ही उन्हें चलने-फिरने में मदद देने के लिए असिस्टेंट मुहैया करवाए गए हैं.

राठौड़ ने यह भी कहा कि एक मां के अपने अंतिम समय में उनके बेटे को देखने के अधिकार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता.

इस पर विशेष सरकारी वकील ने कहा कि स्वास्थ्य कारणों के आधार पर दी जा रही उनकी जमानत अर्जी और पैरोल आवेदन को हाईकोर्ट में उनके द्वारा दी गई चुनौती को पहले ही ख़ारिज कर दिया गया है. उन्होंने नागपुर जेल में फैले कोरोना संक्रमण के बारे में यह दलील भी दी की साईबाबा कोविड नेगेटिव पाए गए हैं.

बेंच ने यह स्वीकारा कि एक बार ख़ारिज हुई जमानत की अपील के बाद साईबाबा को स्वास्थ्य आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती. अदालत ने यह भी माना कि सरकार ने आश्वासन दिया है कि जेल में साईबाबा को आवश्यक मेडिकल देखभाल दी जा रही है.

जस्टिस अतुल चांदूरकर और अमित बोरकर की पीठ ने कहा, ‘हम जमानत देने के इच्छुक नहीं हैं.’

साईबाबा को मार्च 2017 में गढ़चिरौली कोर्ट द्वारा गैरकानूनी गतिविधियां (निवारक) अधिनियम (यूएपीए) के तहत माओवादियों से संबंध रखने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाली गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. उन्होंने इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है.