केंद्र सरकार ने दलील दी है कि उन्होंने ‘मिनिमम गवर्नमेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस’ के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसा निर्णय लिया है. हालांकि इन क्षेत्रों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने सरकार के इन क़दमों की आलोचना की है.
नई दिल्ली: केंद्र द्वारा अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड और अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड को समाप्त करने के कुछ दिनों बाद अब अखिल भारतीय पावरलूम बोर्ड को भी खत्म कर दिया गया है.
बोर्ड की स्थापना 1981 में की गई थी और यह सरकार को पावरलूम के विकास, उनकी दक्षता और इसमें शामिल श्रमिकों के कल्याण की सलाह देता था.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक केंद्र ने कहा है कि इन बोर्डों को ‘मिनिमम गवर्नमेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस’ के उद्देश्य को प्राप्त करने के दृष्टिकोण से बंद किया गया है. उन्होंने कहा कि यह कदम सरकारी निकायों के व्यवस्थित युक्तिकरण करने की दिशा में उठाया गया है.
इसके अलावा कपड़ा अनुसंधान संघों (टीआरए) के कद को ‘स्वीकृत निकायों’ में परिवर्तित कर दिया गया है. इससे पहले टीआरए को कपड़ा मंत्रालय के ‘संबद्ध निकाय’ के रूप में मान्यता दी गई थी.
सरकारी अधिसूचना के अनुसार, इसका मतलब होगा कि ‘किसी भी निपटान, बिक्री, केंद्र सरकार के अनुदान से बनाई गई संपत्तियों के हस्तांतरण के लिए कपड़ा मंत्रालय की पूर्व विशिष्ट मंजूरी की आवश्यकता होगी.’
परिवर्तित कद वाले आठ टीआरए में क्रमश: कोयंबटूर में दक्षिण भारत टीआरए, गाजियाबाद स्थित उत्तरी भारत टीआरए, अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्री रिसर्च एसोसिएशन, मुंबई में बॉम्बे टीआरए, सिंथेटिक और आर्ट सिल्क मिल्स रिसर्च एसोसिएशन, सूरत में मैन-मेड टीआरए, ठाणे में वर्ल्ड रिसर्च एसोसिएशन और कोलकाता स्थित भारतीय जूट उद्योग अनुसंधान संघ शामिल हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, केंद्र ने कहा है कि हाल ही में तीन बोर्डों की खत्म करने और टीआरए के कद में बदलाव करने से नीति-निर्माण पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा.
सरकारी सूत्रों ने अखबार को यह भी बताया कि बोर्ड राजनीतिक संरक्षण की जगह बन गए थे और इससे बिचौलिए आने लगे और बुनकरों को कोई फायदा नहीं होता था.
इन क्षेत्रों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने सरकार के कदमों की आलोचना की है. दास्तकार की चेयरपर्सन लैला तैयबजी ने कहा कि अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड को समाप्त करने का मतलब होगा कि बुनकरों और शिल्पकारों के पास अपनी चिंताओं को उठाने के लिए कोई मंच नहीं होगा.
उन्होंने कहा, ‘इतने सालों में यह एक आधिकारिक मंच बना रहा, हालांकि इसके स्तर को कम किया जाता रहा, जहां बुनकरों और शिल्पकारों की आवाज और विचार सीधे व्यक्त किए जा सकते थे. एक जगह जहां सेक्टर के प्रतिनिधि काफी संख्या में मौजूद होते थे और वास्तव में नीति और क्षेत्रीय खर्चों में सरकार को सलाह देने के लिए सशक्त थे.’
सरकार की इस दलील की भी आलोचना हुई है कि ‘मिनिमम गवर्नमेंट’ ध्यान में रखकर ये फैसला लिया गया है.
पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट नरसिम्हा रेड्डी ने सियासत डेली में लिखा, ‘इस (हथकरघा) बोर्ड पर एक साल में शायद ही 100,000 रुपये का खर्च आता था. कोई भी आश्चर्यचकित होगा कि अपने खर्च को कम करने के नाम पर ‘मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस’ के पैरोकारों ने ऐसी जगह चुनी जहां कोई खर्च नहीं हो रहा है.’