प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट को लेकर दो ट्वीट किए थे, जिसे लेकर अवमानना कार्यवाही चल रही थी. सुप्रीम कोर्ट 20 अगस्त को सज़ा पर सुनवाई करेगा और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की दलीलों को सुनेगा.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वरिष्ठ वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट के चलते अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक फैसला पढ़ते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि प्रशांत भूषण ने ‘गंभीर रूप से अदालत की अवमानना’ की है. अब 20 अगस्त को पीठ सजा पर सुनवाई करेगी.
प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट को लेकर दो ट्वीट किए थे, जिसे लेकर अवमानना कार्यवाही चल रही थी.
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले को सुनने के बाद बीते पांच अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
प्रशांत भूषण की ओर से पेश हुए वकील दुष्यंत दवे ने सफाई पेश करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ न्यायपालिका की सामान्य आलोचना की थी और ये किसी दुर्भावना से प्रभावित नहीं था.
दवे ने कहा कि न्यायपालिका के कामकाज में कई सारी कमियां हैं, जिसके कारण प्रशांत भूषण ने आलोचना की थी.
इस मामले को लेकर सौंपे विस्तृत हलफनामे में भूषण ने कहा था, ‘सीजेआई या सीजेआई के उत्तराधिकारियों के कार्यों की आलोचना करना न्यायालय को अपमानित करना और उसके अधिकार को कम करना नहीं है. ऐसा मानना या सुझाव देना कि सीजेआई ही सुप्रीम कोर्ट हैं और सुप्रीम कोर्ट सीजेआई है, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संस्था को कमजोर करना है.’
भूषण ने कहा कि मोटरसाइकिल पर सवार भारत के मुख्य न्यायाधीश के बारे में उनका ट्वीट सुप्रीम कोर्ट में पिछले तीन महीनों से अधिक समय तक होने वाली अप्रत्यक्ष सुनवाई को लेकर उनकी पीड़ा को रेखांकित करने वाला था, जिस दौरान शायद ही किसी मामले की सुनवाई हुई हो.
हलफनामे में आगे कहा गया है कि भारत के पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों के बारे में भूषण का ट्वीट उनके बारे में उनका वास्तविक प्रभाव था और यह उनका विचार है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को नष्ट करने की अनुमति दी और इस तरह की अभिव्यक्ति को अवमानना नहीं माना जा सकता है.
प्रशांत भूषण की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया है, ‘मैंने जो कुछ भी ट्वीट किए हैं, वे इस प्रकार के हैं कि पिछले वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के तरीके और कामकाज के बारे में मेरी वास्तविक राय है और विशेष रूप से पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका के बारे में, कार्यपालिका की शक्तियों पर अंकुश लगाने और सर्वोच्च न्यायालय के पारदर्शी व जवाबदेह तरीके से कार्य करने को सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका यह कहने के लिए विवश करती है कि उन्होंने लोकतंत्र को कमजोर करने में योगदान दिया.’
आगे कहा गया है, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आलोचना के अधिकार में न्यायपालिका की निष्पक्ष और मजबूत आलोचना शामिल है. यह किसी भी तरह से अदालत की अवमानना या अदालत की गरिमा को कम करना नहीं है.’
बता दें कि 27 जून को एक ट्वीट करते हुए भूषण ने पिछले छह सालों में औपचारिक आपातकाल के बिना लोकतंत्र की तबाही के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायाधीशों- जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जेएस खेहर की भूमिका की आलोचना की थी.
प्रशांत भूषण के खिलाफ एक और अवमानना कार्यवाही चल रही है जिसमें ये आरोप लगाया गया है कि साल 2009 में तहलका पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने पूर्व जजों पर भ्रष्टाचार के बेबुनियाद आरोप लगाया था, जिसके कारण अदालत की अवमानना होती है.
इस मामले पर कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई करने का फैसला किया है.
प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसले लगातार उठाते रहे हैं और हाल ही में उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे कामगारों के मामले में शीर्ष अदालत के रवैये की तीखी आलोचना की थी.
भूषण ने भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिए थे.