कोहली के शतक जमाने पर क्यों नहीं कहा जाता कि वे पुरुष क्रिकेट के मिताली हैं?

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज के शतक पर कोहली या सचिन से तुलना कर जनमानस में ये बात बिठाई जाती है कि क्रिकेट महिलाओं का नहीं पुरुषों का खेल है.

//

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज के शतक पर कोहली या सचिन से तुलना कर जनमानस में ये बात बिठाई जाती है कि क्रिकेट महिलाओं का नहीं पुरुषों का खेल है.

Mitali Raj 4
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज. (फोटो: मिताली राज/फेसबुक)

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान और दिग्गज बल्लेबाज़ मिताली राज ने इंग्लैंड में चल रहे 11वें महिला विश्वकप में न्यूजीलैंड के ख़िलाफ़ खेले गए मैच में एक बार फिर अपने बल्ले का दम दिखाया.

विपरीत परिस्थितियों से टीम को निकालकर कप्तानी पारी खेली और शतक जड़कर भारत को बड़े स्कोर तक पहुंचाया. जिसके दबाव में न्यूजीलैंड की बल्लेबाज़ी पूरी तरह से बिखर गई और भारत ने यह महत्वपूर्ण नॉकआउट मुकाबला 186 रन के बड़े अंतर से जीतकर विश्वकप के सेमीफाइनल में जगह बना ली.

शतक के साथ ही मिताली ने एक और बड़े रिकॉर्ड की बराबरी कर ली. वे एकदिवसीय में 50 रन से बड़ी पारियां खेलने के मामले में इंग्लैंड की पूर्व खिलाड़ी चार्लेट एड्वर्ड्स की बराबरी पर आ गई हैं.

दोनों ने अपने करिअर में 55 पारियां ऐसी खेली हैं जिनमें 50 रन से अधिक बनाए हों. ऐसा करने वाली विश्व में सिर्फ यही दो महिला क्रिकेटर हैं. वहीं एक अर्द्धशतक और मारने के साथ मिताली टॉप पर होंगी.

इससे पिछले ही मैच में मिताली एकदिवसीय क्रिकेट में 6000 रन बनाने वाली विश्व की पहली महिला क्रिकेट खिलाड़ी बनी थीं. उनकी तुलना तब सचिन तेंदुलकर से की गई.

उन्हें महिला क्रिकेट का सचिन तेंदुलकर ठहराया गया. स्वाभाविक है कि इस पारी के बाद भी उनकी कुछ ऐसी ही तुलना की जानी है.

तुलना से याद आया कि विश्वकप से एक रात पहले लंदन में हुई डिनर पार्टी के दौरान एक पत्रकार ने मिताली से एक सवाल किया था.

उनसे पूछा गया कि उनका पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर कौन है? इसके जवाब में उन्होंने एक सवाल दाग दिया था. सवाल था, ‘क्या आप यही सवाल एक पुरुष क्रिकेटर से कर सकते हैं कि आपकी फेवरेट महिला क्रिकेटर कौन है?’

कहने का आशय है कि मिताली की उपलब्धियों की तुलना जब आज सचिन से हो रही है तो वे कहीं गायब ही हैं. तो क्या वे इसे सहर्ष स्वीकार करेंगी?

क्या मिताली को यह भाएगा कि उनके द्वारा हासिल की गई उपलब्धि पर उनके नाम से अधिक सचिन का नाम लिया जाए?

आज अख़बारों या टीवी चैनलों पर मिताली से संबंधित ख़बरों के शीर्षक देखेंगे तो यही पाएंगे कि हर जगह उनके नाम के साथ किसी न किसी पुरुष क्रिकेटर का नाम जोड़कर तुलना की जा रही है.

तुलना भी ऐसी जिसमें पुरुषों को श्रेष्ठ बताकर महिलाओं की उपलब्धियों की बात की जाए. पुरुषों को उद्धृत करते हुए महिलाओं की बात की जाए.

Mitali Raj 1
एक वेबसाइट में प्रकाशित पुरुष क्रिकेटरों से तुलना करती रिपोर्ट.

जैसे कि ‘मिताली हैं महिला क्रिकेट की सचिन’, ‘महिला क्रिकेट की कैप्टन कूल’, ‘ये हैं महिला क्रिकेट की कोहली’. चूंकि वे तीसरे नंबर पर खेलती हैं और टीम की कप्तान भी हैं इसलिए उनको कोहली बताना आम है.

वे कप्तान के तौर पर मैदान पर ठंडा दिमाग रखती हैं इसलिए उन्हें धोनी कहना आम है. लेकिन क्या मिताली की पहचान मिताली से करना इतना कठिन है?

उपलब्धि मिताली ने हासिल की है लेकिन उस उपलब्धि पर लिखी ख़बर से मिताली ही गायब हैं. उस उपलब्धि पर बात तो हो रही है लेकिन मिताली से ज़्यादा सचिन और कोहली का नाम लिया जा रहा है. मानो इनकी प्रेरणा से या इनके प्रशिक्षण के कारण ही मिताली ये मुकाम हासिल कर सकी हों.

अगर बात की जाए तो मिताली भारतीय टीम की पहली बार कप्तान दशकभर पहले बनीं. महेंद्र सिंह धोनी से भी पहले. वहीं कोहली तो हाल ही में कप्तान बने हैं. और मिताली का ठंडे दिमाग से कप्तानी करने का यह अंदाज़ आज का तो है नहीं.

इसी अंदाज़ की बदौलत तो उनकी कप्तानी में भारतीय महिला टीम 2005 विश्वकप का फाइनल खेली थी. तो जब धोनी कप्तान बने और मैदान पर उन्होंने ठंडे दिमाग से फैसले लेने शुरू किए तो क्यों नहीं कहा गया कि भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम को भी मिताली सरीखा एक कप्तान मिल गया है? उन्हें क्यों नहीं कहा गया पुरुष क्रिकेट का मिताली?

महिला क्रिकेट के अब तक कुल छह एशिया कप हुए हैं. चार एकदिवसीय मैचों के और दो टी20 मैचों के. सभी भारत ने जीते. और अब तक किसी भी एशिया कप में एक भी मैच नहीं हारा है.

एकदिवसीय के एशिया कप में भारत ने 32 मैच खेले हैं और सभी जीते हैं. वहीं टी20 में 10 में से 10. (उन मैचों का ज़िक्र नहीं है जो रद्द हुए) इस दौरान अधिकतर समय भारत की कप्तान मिताली ही थीं. पर जब भारतीय पुरुष टीम एशिया कप खेलने मैदान में उतरी तो मिताली एंड कंपनी की उपलब्धि से धोनी एंड कंपनी की उपलब्धियों का आकलन नहीं किया गया.

Mithali Raj
एक वेबसाइट में प्रकाशित पुरुष क्रिकेटरों से तुलना करती रिपोर्ट.

इसी तरह मिताली ने अपने पदार्पण एकदिवसीय मैच में ही सैकड़ा जड़ दिया था. यह कारनामा उन्होंने 1999 में किया था.

वहीं किसी भारतीय पुरुष क्रिकेटर ने यही काम पहली बार 2016 में किया. लोकेश राहुल ने जिम्बाब्वे के ख़िलाफ़ सैकड़ा जड़कर. ठीक 17 सालों बाद.

लोकेश राहुल की उपलब्धि के समय तो कहीं सुनने में नहीं आया कि लोकेश राहुल पुरुष किक्रेट में भविष्य के मिताली हैं या पुरुष क्रिकेट के मिताली.

फिर जब मिताली ने सबसे अधिक रन बनाए, सबसे अधिक पचासा जड़ने का रिकॉर्ड अपने नाम किया तो क्यों कहा गया कि वे महिला क्रिकेट की सचिन हैं?

आश्चर्य यह है कि धोनी की तर्ज पर मिताली को कैप्टन कूल का नाम दिया गया है जो मिताली के बाद कप्तान बने. उन्हें कोहली जैसा बताया जा रहा है जिन्हें तीसरे नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए, कप्तान बने हुए जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही तो हुए हैं.

मिताली जब सचिन हो सकती हैं तो कोहली मिताली क्यों नहीं हो सकते? क्यों नहीं कहा जाता कि वे मिताली से कप्तानी के गुर सीखें. मैदान पर ठंडा रहना सीखें. उन मिताली से जिनके नेतृत्व में भारतीय महिला टीम ने लगातार 16 एकदिवसीय मैच जीतने का विश्व कीर्तिमान बनाया है. एशिया कप में अपराजेय का विजयी रथ चलाया है.

इसलिए सवाल उठता है कि क्या एक पुरुष ही आदर्श क्रिकेटर हो सकता है? महिला क्यों नहीं? क्या महिलाएं प्रदर्शन के मामले में कमतर हैं? आंकड़े गवाह हैं कि भारतीय महिलाओं ने भले ही कोई विश्वकप न जीता हो लेकिन हर एशिया कप वे जीतती हैं.

महिला टीम 16 एकदिवसीय मैच लगातार जीतने का रिकॉर्ड बनाया है जो भारतीय पुरुष भी नहीं बना सके. पिछले ही दिनों भारतीय ओपनर पूनम राउत और दीप्ति शर्मा ने पहले विकेट के लिए 320 रन की साझेदारी कर डाली.

Derby : India's Mithali Raj plays a shot against New Zealand during the ICC Women's World Cup match in Derby on Saturday. PTI Photo (PTI7_15_2017_000120B) *** Local Caption ***
इंग्लैंड के डर्बी शहर में महिला वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ एक मैच में शॉट लगातीं मिताली. (फोटो: पीटीआई)

पुरुष क्रिकेट में भी पहले विकेट के लिए सबसे बड़ी साझेदारी का रिकॉर्ड 286 रन का ही है जो श्रीलंका के सनथ जयसूर्या और उपुल थरंगा के नाम दर्ज है.

वहीं भारतीय पुरुषों के लिए यह रिकॉर्ड 258 रन है. भारतीय महिलाओं की ऐसी उपलब्धियां किसी लिहाज़ से पुरुषों से कमतर नहीं हैं.

व्यक्तिगत प्रदर्शन की बात करें तो भारत की ही एक अन्य वर्तमान खिलाड़ी झूलन गोस्वामी महिला क्रिकेट एकदिवसीय में विश्व की सर्वाधिक विकेट (190) चटकाने वाली महिला गेंदबाज़ हैं.

उनका गेंदबाज़ी औसत 22.23 और इकॉनमी रेट 3.24 है. कोई भी भारतीय पुरुष गेंदबाज़ दूर-दूर तक इन आंकड़ों के करीब नहीं फटकता.

वहीं पूर्व गेंदबाज़ नीतू डेविड के आंकड़े तो और भी अधिक प्रभावशाली रहे. उन्होंने अपने करिअर में 16.34 के औसत और 2.82 के इकॉनमी रेट से 141 विकेट चटकाए. 100 विकेट लेने वाली गेंदबाज़ों में उन्होंने अब तक विश्व में सबसे प्रभावशाली औसत और इकॉनमी निकाला है.

तर्क दिया जा सकता है कि महिला क्रिकेट में उतनी मारक बल्लेबाजी नहीं होती, रनभरी पिचें नहीं होतीं, पुरुष क्रिकेट के नियम भी बल्लेबाजी समर्थक हैं. लेकिन जब 70 और 80 के दशक में पुरुष क्रिकेट में भी बल्लेबाज़ी में मुश्किल हुआ करती थी, तब क्यों कोई भारतीय गेंदबाज़ ऐसे आंकड़े हासिल नहीं कर सका? इसलिए महिलाओं की क्षमता को, उनके क्रिकेट को कम नहीं आंका जा सकता.

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जो सम्मान नीतू डेविड या झूलन गोस्वामी को मिलना चाहिए था, वह उन्हें कभी नहीं मिला. अनिल कुंबले या कपिल देव के गेंदबाज़ी रिकॉर्ड की तो हमेशा बात की गई. लेकिन इनके गेंदबाज़ी रिकॉर्ड पर कोई बात नहीं करता.

कहा जा सकता है कि इनके विकेटों की संख्या कम है. लेकिन देखना यह भी होगा कि महिला क्रिकेट में पुरुष क्रिकेट की अपेक्षा काफी कम मैच होते हैं. अगर पुरुष क्रिकेट जितने मैच वहां भी होते तो उनके भी आंकड़े कुछ और ही होते.

Women Cricket Team
भारतीय महिला क्रिकेट टीम. (फोटो: मिताली राज/फेसबुक)

बहरहाल मुख्य बात यह है कि विश्व में सर्वाधिक विकेट उन्होंने लिए हैं. फिर संख्या 200 में हो या 600 में.

स्मृति मंधाना का भी ज़िक्र करना यहां ज़रूरी हो जाता है. विश्वकप के शुरुआती दो मैचों में जब उन्होंने अर्द्धशतकीय और शतकीय पारियां खेलीं तो वे ट्रेंड में आ गईं. ओपनिंग में उनका विस्फोटक अंदाज़ देखकर लोग उन्हें सहवाग बताने लगे.

एक ट्विटर यूजर ने इसी तरह स्मृति को सहवाग बताते हुए ट्विट कर दिया. जिसके बाद स्वयं सहवाग ने मोर्चा संभाला और कहा, ‘स्मृति महिला क्रिकेट की सहवाग नहीं, स्मृति महिला क्रिकेट की स्मृति ही हैं.

पर यह बात न मीडिया समझ पा रहा है और न हम कि महिला क्रिकेटरों की उपलब्धियों को उनका ही रहने दिया जाए. उनकी उपलब्धि पर उनके ही नाम का ज़िक्र किया जाए, न कि स्मृति या मिताली के शतक पर सहवाग और सचिन का नाम लेकर बार-बार जनमानस में यह बिठाया जाए कि यह पुरुषों का खेल है और महिलाएं बस उनके नक्शेकदम पर चलने की कोशिश कर रही हैं.

मिताली का गुणगान करने के लिए सचिन की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए. ख़ुद मिताली के रिकॉर्ड किसी भी लिहाज़ में सचिन से कम नहीं हैं.

कई मामलों में तो वे सचिन से भी आगे हैं. हां, उन्होंने 100 सैकड़े नहीं बनाए. दोनों फॉर्मेट में 30,000 से ज्यादा रन भी नहीं बनाए. लेकिन सचिन जितने मैच भी तो नहीं खेले हैं.

सीके नायडू और वीनू मांकड़ जैसे भारतीय पुरुष क्रिकेटरों को महान बताया जाता है. पर क्या उन्होंने 30,000 रन बनाए थे? क्या 600 विकेट लिए थे? नहीं. क्योंकि उस समय क्रिकेट मैच सीमित संख्या में होते थे. बावजूद इसके वे महान हैं.

इसी तर्ज पर मिताली, झूलन या अन्य महिला क्रिकेट खिलाड़ी महान क्यों नहीं हो सकतीं? क्यों उन्हें महान बताने के लिए सचिन, कोहली, धोनी के नाम की ज़रूरत है?

मिताली ने अपने पहले ही एकदिवसीय में सैकड़ा जड़ा. उन्होंने अपने तीसरे ही टेस्ट में दोहरा शतक मार दिया. 214 रन की पारी खेलकर तीसरे ही टेस्ट में वे महिला टेस्ट क्रिकेट का सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर बनाने वाली खिलाड़ी बन गईं.

Mitali Raj
एक वेबसाइट में प्रकाशित पुरुष क्रिकेटरों से तुलना करती रिपोर्ट.

आज भी उस रिकॉर्ड को विश्व में केवल एक ही खिलाड़ी तोड़ सकी हैं, पाकिस्तान की किरन बलूच जिन्होंने 242 रन की पारी खेली है.

साथ ही मिताली एकदिवसीय और टेस्ट दोनों में ही 50 से अधिक के औसत से रन बनाती हैं. ये रिकॉर्ड न तो कभी सचिन के नाम रहा है और न ही कोहली के.

क्या इतना काफी नहीं मिताली को मिताली कहने के लिए? क्या इतना काफी नहीं कि उनकी उपलब्धियां उनके ही नाम से गिनाई जाएं? लेकिन समस्या यही है कि पुरुषवादी समाज में महिला की बात क्यों की जाए? क्रिकेट को हम जेंटलमैन गेम कहते हैं. जेंटलवूमैन जैसा शब्द कहीं सुना है भला?

साफ है कि इस खेल पर पुरुषों का एकाधिकार ही हम स्वीकारते हैं. अगर महिला अच्छा भी करें तो पुरुषों का खेल है, इसलिए पुरुषों की बात पहले होगी. उपलब्धि महिला ने हासिल की पर वही गौण हो जाएंगी.

सचिन पहली बार 200 का आंकड़ा छूने पर छा जाएंगे लेकिन उसी काम को 13 साल पहले ही ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेटर बेलिंडा क्लार्क ने अंजाम दे दिया था, वे कहीं गुमनाम हो जाएंगी.

एकता बिष्ट की फिरकी की तुलना अश्विन से तो करेंगे लेकिन जब सचिन, रोहित शर्मा, मार्टिन गुप्टिल दोहरा शतक जमाएंगे तो हम बेलिंडा से तुलना करना भूल जाएंगे. क्योंकि यह पुरुषों का खेल है, जेंटलमैन गेम. महिलाओं का क्या काम?

हां, पिछले दिनों पाकिस्तान के ख़िलाफ़ विश्वकप में भारतीय महिलाओं की जीत पर ज़रूर देशभर से प्रतिक्रियाएं आईं. लगा भारत बदल रहा है. लेकिन उन प्रतिक्रियाओं में भारत की जीत से अधिक पाकिस्तान की हार की खुशी थी.

उस जीत का ज़िक्र सिर्फ उस खीझ को मिटाने के लिए किया गया था जो चैंपियंस ट्राफी में भारतीय पुरुष टीम के पाकिस्तान से हारने पर उत्पन्न हुई थी.

अगर भारत बदल रहा होता तो अगले मैचों में भी भारतीय महिलाओं की जीत पर प्रतिक्रियाएं आतीं. पर ऐसा नहीं हुआ. जो इस बात का सबूत है कि मर्दवादी समाज में महिलाओं को आगे करके तभी दिखाया जाता है, जब वे मर्दों की असफलता पर पर्दा डालने के विकल्प के तौर पर प्रयोग की जा सकें.

Derby: Teammates congratulate India's Jhulan Goswami, left without cap, for the dismissal of Pakistan's Javeria Wadood during the ICC Women's World Cup 2017 match between India and Pakistan at County Ground in Derby, England, Sunday, July 02, 2017. AP/PTI(AP7_2_2017_000177B)
भारतीय महिला क्रिकेट टीम. (फोटो: पीटीआई)

पिछले ओलंपिक खेलों में भी यही हुआ. साक्षी रावत और पीवी सिंधु की जीत को आसमान पर चढ़ा दिया गया और ऐसा करने से पुरुषों की असफलता दबा दी गई. लेकिन अगर उसी ओलंपिक में योगेश्वर दत्त, गगन नारंग, अभिनव बिंद्रा, नरसिंह यादव पदक जीत जाते तो क्या तब भी सिंधु और साक्षी को इतना सम्मान मिला होता?

यह सवाल ख़ुद से करना ज़रूरी है. खेलों को सिर्फ पुरुषों से जोड़कर न देखा जाए. सिर्फ पाकिस्तान से जीत पर कहना कि म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के, महिलाओं के प्रति मानसिकता को बदल नहीं सकता.

कहीं न कहीं यह पंक्ति पुरुषों की श्रेष्ठता को ही दर्शाती है. जब कहा जाएगा कि छोरी छोरों से कम नहीं, तो रोल मॉडल वहां एक छोरा ही होगा. जिससे तुलना करते हुए यह स्थापित करने की कोशिश होगी की छोरी ने छोरे जैसा काम किया. और जब तक यह सोच रहेगी तब तक सचिन, कोहली और धोनी के नाम के नीचे मितालियां दबी रहेंगी.

इसलिए मिताली की उपलब्धियों को ही मिताली की पहचान बनने दिया जाए, न कि सचिन के रिकॉर्ड को सामने रखकर मिताली का जिक्र किया जाए. मिताली को मिताली ही रहने दिया जाए ताकि भविष्य में और भी लड़कियां मिताली बनना चाहें.

महिला क्रिकेट की रोल मॉडल मिताली को ही होना चाहिए, न कि सचिन को. अब ऐसी नौबत न आए कि मिताली को मीडिया में कहना पड़े, ‘क्या कोहली के शतक बनाने पर आप कहते हो कि वाह आप तो पुरुष क्रिकेट के मिताली हैं.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है.)