तिनसुकिया ज़िले के बाघजान में 27 मई से ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक तेल के कुएं में ब्लो आउट होने के बाद से लगातार गैस रिसाव हो रहा था. कंपनी के अनुसार अब कुएं के मुंह को बंद कर दिया गया है. साथ ही गैस रिसाव और उसमें लगी आग को काबू करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
गुवाहाटी: असम के तिनसुकिया जिले के बाघजान में गैस के क्षतिग्रस्त कुएं को 83 दिनों बाद बंद कर दिया गया.
ऑयल इंडिया लिमिटेड (ऑयल) ने सोमवार को यह जानकारी दी कि गैस कुएं की आग को बुझाने की दिशा में पहले सफल कदम के तहत उसके मुंह पर लपटें रोकने वाला एक उपकरण ब्लो आउट प्रेवेंटर (बीओपी) रख दिया गया है.
बीओपी कई टन की धातु की बहुत भारी चादर होती है जिसे किसी भी गैस या तेल कुएं पर नीचे से ईंधन का रिसाव रोकने के लिए रखा जाता है.
कंपनी अपने तीसरे प्रयास में इस कुएं पर बीओपी रख पाई है. ऑयल ने एक बयान में कहा, ‘कुएं को ढंकने का अभियान सुबह शुरू किया गया था और कुएं के मुंह पर बीओपी सफलतार्वूक रख दिया गया.’
बता दें कि इससे पहले बीते 10 जुलाई को गैस के क्षतिग्रस्त कुएं को बंद करने का दूसरा प्रयास विफल हो गया था. उस दौरान ढक्कन उठाने वाला लोहे का केबल टूट गया था.
इससे पहले 31 जुलाई को भी कुएं का मुंह बंद करने की कोशिश की गयी थी, लेकिन उस समय हाइड्रोलिक मशीन पलट गयी थी. अब तीसरे प्रयास में ढक्कन को बैठाने में सफलता मिली है.
कंपनी की ओर से कहा गया है कि वे अब कुएं को ‘खत्म’ करने का प्रयास करेंगे, जिससे गैस रिसाव को रोका जा सके और आग पर काबू पाया जा सके.
बयान में कहा गया, ‘किलिंग ऑपरेशन की तैयारियां जारी हैं. बीओपी और इससे जुडी लाइन्स को लगातार पानी छिड़ककर ठंडा रखा जा रहा है.
कुएं को खत्म या किल करने के लिए तरल से भरे एक भारी कॉलम को कुएं में डाला जाता है, जिससे इसमें हो रहे रिसाव को बिना किसी दबाव नियंत्रित करने के उपकरण के रोका जा सकता है.
गौरतलब है कि 27 मई को राजधानी गुवाहाटी से करीब 450 किलोमीटर दूर तिनसुकिया जिले के बाघजान गांव में ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक तेल के कुएं में विस्फोट (ब्लोआउट) हो गया था, जिसके बाद इस कुएं से अनियंत्रित तरीके से गैस रिसाव शुरू हुआ था.
ब्लोआउट वह स्थिति होती है, जब तेल और गैस क्षेत्र में कुएं के अंदर दबाव अधिक हो जाता है और उसमें अचानक से विस्फोट के साथ और कच्चा तेल या प्राकृतिक गैस अनियंत्रित तरीके से बाहर आने लगते हैं.
कुएं के अंदर दबाव बनाए रखने वाली प्रणाली के सही से काम न करने से ऐसा होता है. इसके बाद नौ जून को यहां भीषण आग लग गई, जिसमें दो दमकलकर्मियों की मौत हो गई थी. तब से यह रिसाव और आग अब तक नियंत्रित नहीं की जा सकी है.
आग लगने की घटना के बाद मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए थे. इसके अलावा देश और विदेश के तमाम विशेषज्ञों द्वारा इस आग और रिसाव पर काबू पाने के प्रयास किए जा रहे थे.
बीते 22 जुलाई को सिंगापुर की एक कंपनी के तीन विदेशी विशेषज्ञों को ओआईएल और ओएनजीसी के विशेषज्ञों की मदद के लिए बुलाया गया था. कुएं में लगी आग को बुझाने के प्रयास के दौरान भीषण विस्फोट हुआ था जिसमें तीनों विशेषज्ञ घायल हो गए थे.
मई महीने से वहां गैस रिसाव लगातार हो रहा है, जिसके चलते भारी प्राकृतिक नुकसान हो रहा है. आसपास के संवेदनशील वेटलैंड, डिब्रु-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान और लुप्त हो रही प्रजातियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इस आग पर काबू पाने में असफल रहने पर ऑयल इंडिया पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. अधिकरण का कहना है कि कुएं में लगी आग से पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है.
वहीं, पीएसयू ने बताया था कि वर्तमान में ईआरएम इंडिया, टेरी और सीएसआईआर-एनआईईएसटी जैसी कई एजेंसियों द्वारा गांवों और आस-पास के वन क्षेत्रों में विस्फोट के विभिन्न आकलन और प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है.
तिनसुकिया और डूमडोमा सर्कल दोनों में 14 जुलाई तक कुल सर्वे किए गए परिवारों की संख्या 1,491 है. मई में कुएं में आग लगने के बाद से 9,000 से अधिक लोगों को 13 राहत शिविरों में पहुंचाया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)