एशियाई विकास बैंक ने अशोक लवासा को निजी क्षेत्र और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के कारोबार के लिए उपाध्यक्ष नियुक्त किया है. वह दिवाकर गुप्ता का स्थान लेंगे, जो कि 31 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं.
नई दिल्ली: चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वे अगले महीने फिलीपींस स्थित एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के उपाध्यक्ष पद को संभालेंगे. लवासा अगले मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के क्रम में थे.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, लवासा ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपना इस्तीफा सौंप दिया और 31 अगस्त को उन्हें कार्यमुक्त करने का आग्रह किया. हालांकि, फिलहाल इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार किया है या नहीं.
राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अजय कुमार सिंह ने बताया कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है.
चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तों और कामकाज) अधिनियम 1991 के प्रावधानों के मुताबिक कोई भी चुनाव आयुक्त अथवा मुख्य चुनाव आयुक्त अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है.
एडीबी ने बीती 15 जुलाई को लवासा की नियुक्ति की घोषणा की थी. एडीबी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा था, ‘लवासा का भारतीय सिविल सेवा के क्षेत्र में बेहतरीन करिअर रहा है. उन्हें सार्वजनिक-निजी भागीदारी और अवसंरचना विकास के क्षेत्र में राज्य और संघीय क्षेत्र में व्यापक अनुभव है. उन्हें सार्वजनिक नीति और निजी क्षेत्र के भूमिका का भी गहरा ज्ञान है.’
एडीबी ने अशोक लवासा को निजी क्षेत्र और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के कारोबार के लिए उपाध्यक्ष नियुक्त किया है. वह दिवाकर गुप्ता का स्थान लेंगे जो कि 31 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं.
बता दें कि एडीबी अध्यक्ष छह उपाध्यक्षों की एक प्रबंधकीय टीम का नेतृत्व करते हैं. एक उपाध्यक्ष की नियुक्ति तीन साल के कार्यकाल के लिए होती है जिसे अगले दो साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
भारत के चुनाव आयोग में उनका अभी दो साल का कार्यकाल बचा था. अगर वे मुख्य चुनाव आयुक्त बनते तो वे अक्टूबर 2022 में पद से सेवानिवृत्त होते.
कार्यकाल के बीच में आयोग छोड़ने वाले लवासा दूसरे चुनाव आयुक्त हैं. इससे पहले वर्ष 1973 में मुख्य चुनाव आयुक्त नगेंद्र सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था. उन्हें हेग में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायधीश नियुक्त किया गया था.
लवासा ने 23 जनवरी 2018 को चुनाव आयुक्त का कार्यभार संभाला था. वह मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के बाद अगले साल अप्रैल में मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते थे. ऐसे में आयोग उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा सहित अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव कराता.
लवासा के बाद आयुक्त सुशील चंद्र मुख्य चुनाव आयुक्त के पद के दावेदार होंगे.
ऑस्ट्रेलिया की सदर्न क्रॉस यूनिवर्सिटी से एमबीए डिग्री धारक, मद्रास यूनिवर्सिटी से रक्षा एवं रणनीतिक अध्ययन में एमफिल डिग्रीधारक लवासा 1980 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के हरियाणा कैडर के अधिकारी हैं.
मालूम हो कि अशोक लवासा ने ही लोकसभा चुनाव के दौरान पांच मौकों पर चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह को चुनाव आयोग द्वारा दी गई क्लीनचिट का विरोध किया था.
चुनाव समाप्त होने के बाद यह खुलासा हुआ था कि मोदी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की 11 कंपनियों को पत्र लिखकर कहा था कि वे अपने रिकॉर्ड्स खंगालकर बताएं कि 2009-2013 के दौरान विद्युत मंत्रालय में अपने कार्यकाल के दौरान चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहीं अपने प्रभाव का अनुचित इस्तेमाल तो नहीं किया था.
पिछले साल सितंबर महीने में अशोक लवासा के परिवार के तीन सदस्यों को आयकर विभाग का नोटिस मिला, जिसमें उनकी पत्नी नोवेल लवासा, बहन शकुंतला और बेटे अबीर लवासा शामिल हैं. इन सभी को आयकर की घोषणा न करने और अघोषित संपत्ति के आरोप में नोटिस भेजा गया था. इस मामले में कार्यवाही जारी है.
अशोक लवासा की बहन शकुंतला पेशे से बाल रोग चिकित्सक हैं, जबकि उनकी पत्नी नोवेल पूर्व बैंकर हैं और कई कंपनियों की निदेशक रह चुकी हैं, जबकि उनके बेटे अबीर नॉरिश ऑर्गेनिक फूड्स लिमिटेड नामक कंपनी के निदेशक हैं.
वहीं, बीते नवंबर में आई एक रिपोर्ट के अनुसार लवासा के बेटे अबीर लवासा की कथित रूप से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत जांच की जा रही है. साथ ही उस कंपनी की भी जांच की जा रही है जिसके वे निदेशक हैं.
जबकि बीते साल दिसंबर में यह आरोप लगाया गया था कि उनकी पत्नी नोवेल लवासा ने गुड़गांव में एक अपार्टमेंट को अशोक लवासा की बहन शकुंतला लवासा को ट्रांसफर करते समय स्टांप ड्यूटी नहीं भरी है. हालांकि अशोक लवासा ने आरोपों से इनकार किया था.