आईपीएस अधिकारी द्वारा आसाराम पर लिखी किताब के रिलीज़ पर कोर्ट ने रोक लगाई

दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने नाबालिग के बलात्कार के दोषी ठहराए गए स्वयंभू संत आसाराम की सह-आरोपी की याचिका पर उन पर लिखी किताब को रिलीज़ होने से रोक दिया है. किताब आसाराम को गिरफ़्तार करने वाली राजस्थान पुलिस की टीम का नेतृत्व कर रहे आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा ने लिखी है.

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आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा की किताब गनिंग फॉर द गॉडमैन. (फोटो साभार: फेसबुक/हार्पर कॉलिन्स)

दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने नाबालिग के बलात्कार के दोषी ठहराए गए स्वयंभू संत आसाराम की सह-आरोपी की याचिका पर उन पर लिखी किताब को रिलीज़ होने से रोक दिया है. किताब आसाराम को गिरफ़्तार करने वाली राजस्थान पुलिस की टीम का नेतृत्व कर रहे आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा ने लिखी है.

आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा की किताब गनिंग फॉर द गॉडमैन. (फोटो साभार: फेसबुक/हार्पर कॉलिन्स)
आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा की किताब गनिंग फॉर द गॉडमैन. (फोटो साभार: फेसबुक/हार्पर कॉलिन्स)

नई दिल्लीः दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने बलात्कार के आरोप में जेल में बंद स्वयंभू संत आसाराम पर लिखी एक किताब को रिलीज़ करने पर रोक लगा दी है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सात साल पहले बलात्कार के आरोप में आसाराम को गिरफ्तार करने वाली राजस्थान पुलिस की टीम की अगुवाई करने वाले आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा ने यह किताब लिखी है.

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश आरएल मीणा की अदालत ने 30 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई तक किताब ‘गनिंग फॉर द गॉडमैनः द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू कंविक्शन’ को रिलीज़ पर रोक लगा दी है.

बलात्कार मामले में सह-आरोपी संचिता गुप्ता की अपील के बाद यह रोक लगाई गई है. अदालत का यह आदेश वर्चुअल तौर पर किताब के रिलीज़ होने से एक दिन पहले आया.

संचिता गुप्ता के वकील विजय अग्रवाल ने अदालत को बताया कि किताब के सच्ची घटनाओं पर आधारित होने का दावा किया गया है.

गुप्ता के वकील विजय अग्रवाल ने अदालत से कहा, ‘यह किताब सत्य कथा पर आधारित होने का दावा करती है, लेकिन यह ट्रायल रिकॉर्ड से मेल नहीं खाती और सबसे महत्वपूर्ण इससे संचिता की अपील में हस्तेक्षप हुआ है, जो फिलहाल विचाराधीन थी. साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट पहले ही उनकी सजा निरस्त कर चुका है.’

अदालत ने अपने आदेश में कहा है, ‘यह माना जाता है कि वादी की प्रतिष्ठा दांव पर है और अगर रोक नहीं लगाई जाती, विशेष रूप से तब जब किताब पांच सितंबर को प्रकाशित हो रही है तो इससे उनकी प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी.’

आदेश में कहा गया, ‘मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर तक किताब के प्रकाशन पर रोक लगाई जाती है. इसके साथ ही अगली सुनवाई तक प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स, अमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर भी इस किताब को प्रकाशित करने या बेचने पर प्रतिबंध है.’

बता दें कि इस किताब को अजय पाल लांबा ने लिखा है, जो फिलहाल जयपुर में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त हैं जबकि इस किताब के सहलेखक संजीव माथुर हैं.

लांबा ने इस घटनाक्रम को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. लांबा (42) ने कहा, ‘किताब उन्हीं तथ्यों पर आधारित हैं, जो सार्वजनिक हैं. मैंने सिर्फ उन तथ्यों को इकट्ठा कर इसे किताब का रूप दिया है.’

इस किताब में आसाराम मामले की जांच पर प्रकाश डाला गया है कि किस तरह 2005 बैच के एक आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में टीम ने दिल्ली पुलिस में बलात्कार की शिकायत दर्ज होने के 10 दिनों के भीतर 2013 में आसाराम को गिरफ्तार किया था.

अप्रैल 2018 में जोधपुर की विशेष अदालत ने आसाराम को एक नाबालिग से बलात्कार का दोषी पाया था. उन पर आईपीसी की धाराओं, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के आरोप तय किए थे.

उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. इस मामले में सह-आरोपी संचिता गुप्ता उसी हॉस्टल की वॉर्डन थी, जहां नाबालिग 2013 से रह रही थी.

राजस्थान की निचली अदालत ने उसे आसाराम के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र रचने और बच्ची को आसाराम के पास भेजने का आरोप था ताकि वह (आसाराम) उसका यौन शोषण कर सके.

संचिता गुप्ता ने बाद में राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष अपील की थी, जहां उनकी सजा को स्थगित कर दिया गया था.

गुप्ता के वकील ने शुक्रवार को कहा, ‘जब सजा स्थगित कर दी गई है तो ऐसे में उनकी मुवक्किल संचिता निर्दोष माने जाने की हकदार है. यह पूरी तरह से संभव है कि राजस्थान हाईकोर्ट या तो गवाहों की दोबारा जांच करें या दोबारा सुनवाई के आदेश दे सकता है. इस तरह की परिस्थिति में मौजूदा स्वरूप में किताब के प्रकाशन को मंजूरी नहीं दी जा सकती.’

अदालत को बताया गया कि 11 अगस्त को इस किताब के कुछ अंश स्क्रोल वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए थे. इस वेबसाइट और इसके एडिटर-इन-चीफ को भी इस मामले में प्रतिवादी बनाया गया है.

संचिता गुप्ता की याचिका में कहा गया कि वेबसाइट पर प्रकाशित किताब के अंशों से पता चलता है कि किस तरह से वादी का खराब चित्रण किया गया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा कम हुई.

गुप्ता की याचिका में आरोप लगाया गया कि किताब की सामग्री ‘मनगढ़ंत और निंदनीय’ है और मामले में वादी और उनके सह आरोपी के नाम पर ‘सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास’ है.