अप्रैल 2019 में बिश्वनाथ ज़िले के 48 वर्षीय शौक़त अली को भीड़ ने उनकी दुकान पर पका हुआ गोमांस बेचने के आरोप में पीटा था और सुअर का मांस खिलाया था. एनएचआरसी ने असम सरकार को अली के मानवाधिकार उल्लंघन के लिए एक लाख रुपये मुआवज़ा देने का आदेश दिया है.
गुवाहाटी: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने असम सरकार को उस व्यक्ति को एक लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया है, जिसे बिश्वनाथ जिले में अपनी चाय की दुकान में पका हुआ गोमांस बेचने के आरोप में भीड़ ने पीटा था.
आयोग ने इस तथ्य का गंभीर संज्ञान लिया कि न तो मुख्य सचिव ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया और न ही पुलिस महानिदेशक ने मामले में आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट जमा की.
भीड़ ने शौकत अली (48) को पिछले साल सात अप्रैल में चाय की दुकान पर गोमांस बेचने के कारण कुछ पुलिसकर्मियों के सामने पीटा था और उसे सुअर का पका हुआ मांस खिलाया गया था.
अली को दुकान खोलने की अनुमति देने के लिए बाजार के एक ठेकेदार को भी कथित रूप से पीटा गया था.
एनएचआरसी के सहायक रजिस्ट्रार (कानून) द्वारा मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा गया कि आयोग असम सरकार को शौकत अली को एक लाख रुपये की राशि देने का आदेश देता है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, असम में गोमांस का उपभोग कानूनी है और असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1950 केवल क्षेत्र के एक पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा उचित प्रमाण पत्र के साथ 14 वर्ष से ऊपर की आयु मवेशियों के वध की अनुमति देता है.
डीजीपी को भेजी गई एनएचआरसी के पत्र के अनुसार, बीते 9 सितंबर को कांग्रेस नेता और सदन में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया की शिकायत पर सुनवाई करते हुए एनएसआरसी ने डीजीपी को चेतावनी दी थी कि अगर चार हफ्तों रिपोर्ट नहीं भेजी गई तो वह उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करेंगे.
आयोग को संबंधित प्राधिकरण से कारण बताओ नोटिस का कोई जवाब या कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है, जिसके चलते आयोग ने पाया कि संबंधित प्राधिकरण को कारण बताओ नोटिस के संबंध में आयोग से कोई आग्रह नहीं करना है.
एनएचआरसी सहायक रजिस्ट्रार (कानून) द्वारा मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र में कहा गया, ‘इसलिए आयोग असम सरकार के मुख्य सचिव को अपनी सिफारिश और निर्देश की पुष्टि करता है कि पीड़ित शौकत अली को 1 लाख रुपये की राशि जारी करें और छह सप्ताह के भीतर आयोग को भुगतान के प्रमाण के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें.’
पूर्व में भेजे गए कारण बताओ नोटिस में एनएचआरसी ने उल्लेख किया कि प्रथम दृष्टया यह मानव अधिकारों के उल्लंघन का मामला है, जिसकी पीड़ित को क्षतिपूर्ति के लिए राज्य परोक्ष तौर पर उत्तरदायी है.
आयोग ने एक रिपोर्ट का भी उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि लोक सेवक कुछ स्थानीय बेरोजगार युवाओं को शामिल करके बाजार से रंगदारी इकट्ठा कर रहे थे, जो कानून के खिलाफ है.
कारण बताओ नोटिस का हवाला देते हुए पत्र में कहा गया, ‘पीड़ित को जाति/धर्म के आधार पर अपमानित पाया गया. एक लोक सेवक, जो पेशे से टैक्स कलेक्टर थे द्वारा पीड़ित के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया. पुलिस ने 15 व्यक्तियों को पकड़ा है और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया है.
यह घटना एक आरोपी द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल किए गए वीडियो के बाद ही सामने आई थी, जिसके अगले दिन पुलिस ने पीड़ित के भाई सहाबुद्दीन अली की शिकायत पर मामला दर्ज किया था.
वीडियो में शौकत अली पर हमला होते दिख रहा था और भीड़ द्वारा पूछा गया था कि क्या वह बांग्लादेशी है और क्या उसका नाम पता राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे में है.
पीड़ित ने दावा किया था कि उनका परिवार तीन दशक से अधिक समय से बाजार में पका हुआ गोमांस बेच रहा था और पहले कभी इस तरह के किसी मुद्दे का सामना नहीं किया.
इस घटना ने बड़े पैमाने पर राजनीतिक तूफान पैदा कर दिया था क्योंकि असम में लोकसभा चुनाव के लिए सिर्फ चार दिन बाद मतदान शुरू होने थे.
राज्यभर में हुई आलोचना के बाद मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने डीजीपी को सभी दोषियों को पकड़ने के आदेश दिए थे. घटना के संबंध में गिरफ्तार लोगों में भाजपा के एक वार्ड सदस्य भी थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)