मीडिया में संदेश जाना चाहिए कि समुदाय विशेष को निशाना नहीं बनाया जा सकता: जस्टिस चंद्रचूड़

सुदर्शन न्यूज़ के एक कार्यक्रम के विवादित एपिसोड के प्रसारण की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का किसी पर रोक लगाना न्यूक्लियर मिसाइल की तरह है, लेकिन हमें आगे आना पड़ा क्योंकि किसी और द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही थी.

/
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)

सुदर्शन न्यूज़ के एक कार्यक्रम के विवादित एपिसोड के प्रसारण की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का किसी पर रोक लगाना न्यूक्लियर मिसाइल की तरह है, लेकिन हमें आगे आना पड़ा क्योंकि किसी और द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही थी.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने आगे बढ़कर 15 सितंबर को सुदर्शन न्यूज़ के ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम का प्रसारण इसलिए रोका क्योंकि कोई और कुछ नहीं कर रहा था.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का किसी चीज पर रोक लगाना न्यूक्लियर मिसाइल की तरह है. लेकिन हमें आगे आना पड़ा क्योंकि किसी और द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही थी. एक सरकारी अधिकारी ने पत्र लिखा- बस.’

बता दें कि बीते मंगलवार को  सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन न्यूज़ के बिंदास बोल कार्यक्रम के विवादित ‘नौकरशाही जिहाद’ एपिसोड के प्रसारण को रोकते हुए कहा था कि देश की शीर्ष अदालत होने के नाते यह कहने की इजाज़त नहीं दे सकते कि मुस्लिम सिविल सेवाओं में घुसपैठ कर रहे हैं.

कोर्ट का यह भी कहना था कि यह कार्यक्रम पहली नजर में ही मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाला लगता है.

गौरतलब है कि ‘बिंदास बोल’ सुदर्शन न्यूज चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके का शो है. अगस्त के आखिरी सप्ताह में जारी हुए इसके एक एपिसोड के ट्रेलर में चव्हाणके ने हैशटैग यूपीएससी जिहाद लिखकर नौकरशाही में मुसलमानों की घुसपैठ के षडयंत्र का बड़ा खुलासा करने का दावा किया था.

इस शो का प्रसारण 28 अगस्त को रात आठ बजे होना था, लेकिन जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने  उसी दिन इस पर रोक लगा दी थी.

इसके बाद 9 सितंबर को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने चैनल को कार्यक्रम के प्रसारण की अनुमति दे दी थी, जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे नोटिस भेजा था, लेकिन प्रसारण रोकने से इनकार कर दिया था.

इसके बाद इस कार्यक्रम के प्रसारण के बारे में शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ता के वकील ने इस कार्यक्रम के प्रसारण पर अंतरिम रोक लगाने सहित कई राहत मांगी थी.

15 सितंबर की सुनवाई के दौरान अदालत ने मीडिया रिपोर्टिंग और स्व-नियमन की बात भी उठाई थी, जिसके जवाब में 17 तारीख सुनवाई में  सरकार का कहना था कि पहले डिजिटल मीडिया का नियमन होना चाहिए, प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए पर्याप्त नियमन मौजूद हैं.

शुक्रवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े मुद्दे पर बड़े फलक पर बात की जा रही है, जिस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने उनसे सुझाव मांगते हुए कहा, ‘यह स्व-नियमन लाने का अच्छा मौका हो सकता है.’

अदालत को इस बारे में मदद करने की हामी भरते हुए मेहता ने पीठ से आग्रह किया कि अभी वे केवल सुदर्शन न्यूज़ के मौजूदा मामले को ही देखें न कि इसे पूरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियम बनाने के लिए न फैलाएं क्योंकि यह मामला सीजेआई एसए बोबडे की पीठ के समक्ष लंबित है.

पीठ ने सुदर्शन टीवी से पूछा कि क्या मीडिया को ‘पूरे समुदाय को निशाना बनाने की अनुमति दी जा सकती है.’ शीर्ष अदालत ने कार्यक्रम को लेकर की शिकायत पर सुनवाई करने के दौरान कहा कि चैनल खबर दिखाने को अधिकृत हैं लेकिन ‘पूरे समुदाय की छवि नहीं बिगाड़ सकता और इस तरह के कार्यक्रम कर उन्हें अलग-थलग नहीं कर सकता.

मामले की सुनवाई कर रही पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘यह वास्तविक मुद्दा है. जब भी आप उन्हें प्रशासनिक सेवा से जुड़ते दिखाते हैं, आप आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट) को दिखाते हैं. आप कहना चाहते हैं कि प्रशासनिक सेवा से मुस्लिमों का जुड़ना गहरी साजिश का हिस्सा है. क्या मीडिया को एक पूरे समुदाय को निशाना बनाने की अनुमति दी जा सकती है.’

पीठ ने कहा, ‘सभी उम्मीदवारों को एजेंडा के साथ दिखाना नफरत को दिखाता है और यह तत्व चिंता का विषय है.’

अदालत ने कहा, ‘यह बोलने की आजादी नफरत में तब्दील हो गई है. आप समुदाय के सभी सदस्यों की एक छवि नहीं बना सकते हैं. आपने अपने विभाजनकारी एजेंडे के जरिये अच्छे सदस्यों को भी अलग-थलग कर दिया.’

जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच में उनके साथ जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ भी शामिल हैं और इन दोनों ने भी सुदर्शन न्यूज़ के कार्यक्रम में इस्तेमाल हुई कुछ तस्वीरों पर नाराजगी जताई है.

उन्होंने कहा कि ये तस्वीरें ‘आक्रामक’ और ‘आहत करने वाली’ हैं और इन्हें हटाया जाना चाहिए. अदालत ने सुरेश चव्हाणके से पूछा है कि उनके पास कोर्ट की इस तरह की चिंताओं का क्या समाधान है जो उनकी कार्यक्रम प्रसारण की अनुमति की याचिका पर विचार किया जाना चाहिए.

उनकी याचिका की ओर इशारा करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि शो की एक क्लिप में भाषण, टोपी-दाढ़ी और हरी टीशर्ट पहने लोग हैं और बैकग्राउंड में आग की लपटें दिखाई दे रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह सवाल पूछा जा रहा है कि आईएएस और आईपीएस एसोसिएशन ने तब कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, जब ओवैसी ने मुस्लिमों को सिविल सेवाओं में आने को कहा गया और बैकग्राउंड में लपटें दिखाई जा रही हैं… वहां हरामखोर जैसी टिप्पणी की गई है… चार्ट हैं जो दिखा रहे हैं कि कैसे सिविल सेवाओं में मुस्लिमों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है… और तस्वीरें भी हैं.’

जस्टिस मल्होत्रा ने भी आग की लपटों के बैकग्राउंड में होने और हरी टी शर्ट पर आपत्ति जताई और उन्हें आपत्तिजनक बताते हुए हटाने को कहा.

जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘एक एपिसोड में दर्शकों में से एक व्यक्ति का इंटरव्यू लिया गया है जहां वह कहता है कि मुस्लिमों को ओबीसी आरक्षण मिल रहा है और आगे यह नहीं मिलना चाहिए, ऐसा दिखाकर क्या संदेश देने की कोशिश की जा रही है? बात यह है कि आप एक पूरे समुदाय को बदनाम करना चाहते हैं.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम सेंसर की भूमिका में नहीं हैं, इसलिए हम आपको जो कहना है, वह कहने का मौका देना चाहते हैं. कोर्ट के बिना बताए आपको यह करना है आपको बताना है कि आप क्या करेंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम फ्री स्पीच की रक्षा करना चाहते हैं लेकिन मानवीय गरिमा को बचना हमारा संवैधानिक दायित्व है. वह भी उतना ही जरूरी है.’

चव्हाणके की ओर से पेश हुए अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि वे एक हलफनामा दायर करके बताएंगे कि वे क्या करना चाहते हैं. कोर्ट ने यह टिप्पणियां दीवान के उस अनुरोध पर किन थीं जहां उन्होंने इस कार्यक्रम के बचे हुए एपिसोड का प्रसारण करने की अनुमति मांगी थी.

उनका कहना था कि पहले से प्रतिबंध लगाने का कोई कानून नहीं है और संवैधानिक कोर्ट का ऐसा करना एक खतरनाक बात है. जो सुप्रीम कोर्ट करेगा, कल वही हाईकोर्ट करेंगे.

दीवान ने चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके द्वारा दायर हलफनामे का उल्लेख किया, जिसमें चैनल ने कार्यक्रम का बचाव करते हुए कहा कि उसने ‘यूपीएससी जिहाद’ का इस्तेमाल आतंकवाद से जुड़े संगठनों द्वारा जकात फाउंडेशन को मिले चंदे के आधार पर किया है.

जकात फांउडेशन प्रशासनिक सेवा में शामिल होने के आकांक्षी विद्यार्थियों, जिनमें अधिकतर मुस्लिम होते को पठन सामग्री और प्रशिक्षण देता है.

पीठ ने दीवान से कहा कि अदालत को आतंकवाद से जुड़े संगठनों द्वारा वित्तपोषण संबंधी खोजी पत्रकारिता से समस्या नहीं है लेकिन यह नहीं कहा जाना चाहिए कि मुस्लिम एजेंडा के तहत यूपीएससी सेवा में जा रहे हैं.

पीठ ने कहा, ‘मीडिया में संदेश जाना चाहिए कि समुदाय विशेष को निशाना नहीं बनाया जा सकता. हमें भविष्य के राष्ट्र को देखना है जो एकजुट और विविधता से युक्त हो.’

अदालत ने कहा, ‘यह संदेश मीडिया को जाना चाहिए कि देश ऐसे एजेंडे से जीवित नहीं रह सकता. हम अदालत हैं और हमने देखा कि आपातकाल के दौरान क्या हुआ और यह हमारा कर्तव्य है कि मानवीय गरिमा सुरक्षित रहे.’

वीडियो कॉन्फ्रेंस से हुई सुनवाई के दौरान श्याम दीवान ने कहा कि चैनल को कोई समस्या नहीं है अगर किसी भी समुदाय का व्यक्ति प्रतिभा के आधार पर प्रशासनिक सेवा से जुड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘चैनल प्रसारण पूरा करना चाहता है. हम कहीं भागे नहीं जा रहे हैं. अब तक चार एपिसोड देखे गए हैं और पूरे प्रकरण में इसे देखा जाना चाहिए न कि किसी शब्द के आधार पर अदालत को प्रसारण पूर्व प्रतिबंध लगाने के अपने न्यायाधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करना चाहिए.’

हालांकि पीठ ने कहा, ‘बयानों को देखिए. दर्शक सभी बातें बता देंगे जो इस कार्यक्रम के माध्यम से बताया गया है. हमें गैर सरकारी संगठन या वित्तपोषण के स्रोत से समस्या नहीं है. यहां मुद्दा यह है आप पूरे समुदाय पर प्रभाव डालेंगे क्योंकि आप प्रशासनिक सेवा को लेकर यह कर रहे हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)