कैग की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे ने सुपरफास्ट सरचार्ज के नाम पर यात्रियों से 11 करोड़ 17 लाख रुपये वसूले हैं.
नियंत्रक व महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि रेलवे धीमी ट्रेनों की यात्रा के लिए भी सुपरफास्ट का किराया वसूल रहा है.
आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि रेलवे ने सुपरफास्ट सरचार्ज के नाम पर यात्रियों से 11 करोड़ 17 लाख रुपये वसूले हैं. कैग की रिपोर्ट में 2013 से लेकर 2016 तक उत्तर मध्य और दक्षिण मध्य रेलवे से ज़्यादा किराया वसूलने का ज़िक्र है.
भारतीय रेलवे ने 2006 में एक सर्कुलर निकाला था, जिसमें सुपरफास्ट सरचार्ज वसूलने के लिए मापदंड तय किया गया था. रेलवे की किसी भी ट्रेन को रफ़्तार अगर 55 किलोमीटर प्रति घंटा और मीटर गेज ट्रेनों का 45 किलोमीटर प्रति घंटा या उससे अधिक हो, तो उसे सुपरफास्ट की श्रेणी में रखा जाता है.
जनसत्ता की ख़बर के अनुसार 21 जुलाई को पेश की गई कैग की रिपोर्ट के अनुसार कुछ सुपरफास्ट ट्रेनें 95 प्रतिशत से ज़्यादा बार लेट हुईं.
उत्तर मध्य और दक्षिण मध्य रेलवे के ट्रेनों की आवाजाही को लेकर किए गए अध्ययन में पता चला है कि 21 सुपरफास्ट ट्रेन अपने संचालन के 16,804 दिनों में से 3,000 दिन देरी से पहुंची हैं.
कोलकाता से आगरा कैंट सुपरफास्ट ट्रेन 145 दिनों में से 138 दिन देरी से अपने निर्धारित स्थान पहुंची हैं. 2014-16 के बीच इलाहाबाद-जयपुर सुपरफास्ट ट्रेन 578, लखनऊ-आगरा 851, छत्रपति शिवजी-हैदराबाद 682 दिन अपने निर्धारित मंजिल पर देरी से पहुंची हैं.
सुपरफास्ट सरचार्ज हर श्रेणी के लिए अलग-अलग होता है. 1 अप्रैल, 2013 से जनरल क्लास के लिए 15 रुपये, स्लीपर के लिए 30 रुपये, चैरकार, ऐसी-3, ऐसी-2 के लिए 45 रुपये और प्रथम श्रेणी ऐसी के लिए 75 रुपये वसूले जाते हैं.
हाल ही में कैग की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि रेलवे का खाना और पानी मनुष्य के खाने के योग्य नहीं है. रिपोर्ट में यह भी पाया गया था कि कई वस्तुओं का दाम उसकी प्रिंटेड कीमत से ज़्यादा वसूला जाता है, साथ ही अनधिकृत ब्रांड का पानी और अन्य सामान स्टेशन और ट्रेनों में बेचा और परोसा जाता है.