डॉ. पायल तड़वी की आत्महत्या मामले में आरोपी तीन डॉक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी पढ़ाई पूरी करने की अनुमति मांगते हुए याचिका दायर की थी. अदालत ने कड़ी शर्तों पर उन्हें इसकी अनुमति दी. इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने उनकी याचिका का विरोध किया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल में पिछले साल एक महिला डॉक्टर की आत्महत्या के मामले में आरोपी तीन महिला चिकित्सकों को वापस कॉलेज और अस्पताल में अपने स्नातकोत्तर (पीजी) पाठ्यक्रम की पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दे दी.
इस मामले में महिला चिकित्सक डॉ. पायल तड़वी ने कथित रूप से जाति आधारित भेदभाव के कारण आत्महत्या कर ली थी.
तीनों आरोपी स्त्री रोग और प्रसूति विज्ञान विषय में तीन वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएशन पाठ्यक्रम में पढ़ाई कर रही हैं और वे दो साल का पाठ्यक्रम पूरा कर चुकी हैं.
इन चिकित्सकों पर आरोप है कि वे डॉ. तड़वी, जिन्होंने पिछले साल 22 मई को आत्महत्या की थी, के साथ जातिगत भेदभाव करती थीं, उन्हें प्रताड़ित करती थीं.
जस्टिस उदय यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इन चिकित्सकों को वापस जाकर अपनी पढ़ाई पूरी करने की इजाजत दी जानी चाहिए. न्यायालय ने कड़ी शर्तो पर उन्हें यह अनुमति दी है.
इन शर्तो में यह भी शामिल है कि वे किसी भी गवाह को न तो प्रभावित करेंगी और न ही किसी भी तरह ऐसा करने का प्रयास करेंगी और निचली अदालत में सुनवाई की प्रत्येक तारीख पर वे हाजिर रहेंगी, बशर्ते इससे उन्हें विशेष रूप से छूट प्रदान नहीं की गयी हो.
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के इस साल फरवरी के आदेश के खिलाफ तीनों आरोपी चिकित्सकों – हेमा आहूजा, भक्ति मेहारे और अंकिता खंडेलवाल की अपील पर यह फैसला सुनाया.
डॉ. पायल तडवी भी इसी विभाग में पढ़ाई कर रही थी और उसने पिछले साल अप्रैल में अपने पहले साल की पढ़ाई पूरी कर ली थी.
उच्च न्यायालय ने पिछले साल अगस्त में इस मामले में उन्हें जमानत पर रिहा करते समय लगाई गई शर्तो में से एक शर्त में ढील देने से इनकार कर दिया था.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि वे संबंधित थाने के अधिकार क्षेत्र, विशेषकर कॉलेज में प्रवेश नहीं करेंगी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका यह आदेश शैक्षणिक सत्र 2020-2021 के दूसरे चरण के प्रारंभ से प्रभावी होगा और अगर यह सत्र पहले ही शुरू हो चुका है तो यह इस साल 12 अक्टूबर से प्रभावी होगा.
न्यायालय ने कहा कि तीन चिकित्सकों को पिछले साल मई में निलंबन के आदेश के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी जाएगी. निलंबन का आदेश कॉलेज ने तीनों चिकित्सकों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी का संज्ञान लेते हुए पारित किया था.
पीठ ने इस बात का भी जिक्र किया कि इन चिकित्सकों को पिछले साल मई में इस मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.
बता दें कि इससे पहले सितंबर महीने में महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल में रेजिडेंट डॉ. पायल सलमान तड़वी की आत्महत्या मामले में आरोपियों की पढ़ाई पूरी करने की याचिका का विरोध किया था.
महाराष्ट्र सरकार ने अपना विरोध जताते हुए कहा था कि जब तक उन पर सुनवाई खत्म नहीं हो जाती, उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
महाराष्ट्र के उप सचिव (चिकित्सा शिक्षा) ने अदालत में दायर हलफनामे में कहा था कि बीवाईएल नायर अस्पताल की एंटी-रैगिंग कमेटी ने 25 मई 2019 को दी गई अपनी रिपोर्ट में पाया था कि तीनों छात्राओं- हेमा आहूजा, भक्ति मेहारे और अंकिता खंडेलवाल ने उनकी जूनियर डॉ. पायल तड़वी की रैगिंग की थी.
हलफनामे में आगे कहा गया, ‘क्योंकि याचिकाकर्ताओं को बीवाईएल नायर अस्पताल से पहले ही निलंबित किया जा चुका है इसलिए इस निलंबन आदेश के प्रभावी रहने तक उन्हें किसी भी अन्य कॉलेज/अस्पताल में नहीं रखा जा सकता है.’
मालूम हो कि फरवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल ने इन आरोपी डॉक्टरों के रद्द किए गए मेडिकल लाइसेंस बहाल करने का आदेश दिया था.
पायल तड़वी की मां आबेदा, जो इस मामले में शिकायतकर्ता हैं, उन्होंने इसका विरोध किया था. आबेदा ने राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री अमित देशमुख को पत्र लिखकर आरोपी डॉक्टरों के निलंबित किए गए लाइसेंस मामले की सुनवाई पूरी होने तक रद्द रहने की ही मांग की थी.
उनका कहना है कि मामले की सुनवाई पूरी होने तक इनके लाइसेंस रद्द रखना जरूरी है.
अनुसूचित जनजाति के तड़वी भील समुदाय से आने वाली पायल तड़वी 22 मई, 2019 को अपने हॉस्टल के कमरे में मृत पाई गई थीं.
डॉक्टर पायल तड़वी एमडी की पढ़ाई कर रही थीं. अपने सुसाइड नोट में उन्होंने इन तीन डॉक्टरों द्वारा प्रताड़ित किए जाने की बात लिखी थी.
बता दें कि पायल के परिजनों का आरोप है कि आरोपी डॉक्टर्स उनकी बेटी का मानसिक उत्पीड़न के साथ ही जातिसूचक टिप्पणी भी करते थे. सीनियर्स के इस व्यवहार से पायल बेहद परेशान रहती थी और इसी वजह से उसने ये कदम उठाया.
इस मामले के बाद महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (मार्ड) ने तीनों आरोपी डॉक्टरों की सदस्यता निरस्त कर दी थी.
इन तीनों आरोपियों को पिछले साल गिरफ्तार किया गया था और इन पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, महाराष्ट्र प्रोहिबिशन ऑफ रैगिंग एक्ट, आत्महत्या के लिए उकसाने, साक्ष्य नष्ट करने के लिए आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले साल अगस्त में तीनों को जमानत देते हुए कई शर्तें लगाई थी, जिसमें मामले की सुनवाई पूरी होने तक एमएमसी द्वारा जारी किए गए लाइसेंस को रद्द करना भी शामिल था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)