एमजे अकबर मानहानि मामला: दो साल सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा- यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं

पत्रकार प्रिया रमानी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था, जिसके बाद अकबर ने उनके ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दायर कराया था.

प्रिया रमानी और एमजे अकबर. (फोटोः पीटीआई)

पत्रकार प्रिया रमानी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था, जिसके बाद अकबर ने उनके ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दायर कराया था.

प्रिया रमानी और एमजे अकबर (फोटोः द वायर/पीटीआई)
प्रिया रमानी और एमजे अकबर (फोटोः द वायर/पीटीआई)

नई दिल्लीः पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद दायर किए गए आपराधिक मानहानि के मुकदमे की सुनवाई के दो साल बाद दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को कहा कि वह अब इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला किसी सांसद या विधायक के खिलाफ नहीं है. यह मामला सांसद द्वारा दायर किया गया है और इसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप किसी दूसरी सक्षम अदालत में शिफ्ट किया जाना चाहिए.

बता दें कि पत्रकार प्रिया रमानी ने एमजे अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के आरोप लगाए हैं, जिसके बाद पूर्व मंत्री ने उन पर मानहानि का मुकदमा दायर किया था और मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया था.

अदालत में चल रही इस मामले की सुनवाई दोनों तरफ से चल रही अंतिम बहस के पूरा होने के बाद अपने आखिरी चरण में थी.

मामले की 19 सितंबर को हुई आखिरी सुनवाई में अकबर की वकील गीता लूथरा ने रमानी की वकील रेबेका जॉन के तर्कों को खारिज करने के लिए अदालत से मंजूरी मांगी थी और मामले में निष्कर्ष निकलवाने के लिए दो दिनों का समय मांगा था.

मंगलवार को लूथरा के अंतिम बहस पूरी करने पर अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विशाल पाहुजा ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट से निर्देश मिले हैं कि इस मामले को आगे के निर्देशों के लिए जिला या सत्र न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाए. यह अदालत सिर्फ सांसदों या विधायकों के खिलाफ मामलों का निपटारा करती है.’

अदालत ने आदेश में कहा, ‘अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के संदर्भ से देखें तो सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाई गई हैं.’

आदेश में कहा गया, ‘मौजूदा मामला सांसद या विधायक के खिलाफ दायर नहीं किया गया है इसलिए इस अदालत में इसकी सुनवाई नहीं हो सकती और इसे सक्षम न्यायालय में शिफ्ट किए जाने की जरूरत है. इस मामले को प्रधान न्यायालय या सत्र न्यायाधीश की अदालत के समक्ष 14 अक्टूबर को सुबह 10:30 बजे पेश किया जाए.’

इस मामले की अक्टूबर 2018 से तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल द्वारा सुनवाई की जा रही थी, जिन्होंने 25 अक्टूबर 2019 तक इस मामले की कार्यवाही की अध्यक्षता की. बाद में उनका तबादला कर दिया गया, जिसके बाद अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पाहुजा ने 21 नवंबर 2019 से मामले की सुनवाई शुरू की, उस समय रमानी ने मामले की जिरह पूरी की थी. उन्होंने दोनों तरफ से अंतिम बहसों को सुना था, जो कई दिनों तक चली थी.

बता दें कि मानहानि मामले में दोनों पक्षों की ओर से अंतिम बहस के समाप्त होने के बाद मामला आखिरी चरण में था.

मामले की 19 सितंबर को हुई आखिरी सुनवाई में एमजे अकबर की वकील गीता लूथरा ने रमानी की वकील रेबेका जॉन के अंतिम तर्कों को खारिज करने के लिए अदालत से मंजूरी और निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए दो दिनों का समय मांगा था.

अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए रमानी की वकील रेबेका जॉन ने कहा, ‘अगर मामले को नई अदालत को सौंपा जाएगा तो अंतिम बहसों को दोबारा शुरू करना होगा. मैं जिस सिस्टम का हिस्सा हूं, उसके प्रति निष्पक्ष रहते हुए ट्रांसफर हर समय होते हैं. सिर्फ इसलिए कि आपने तर्क दिया, इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वही अदालत फैसला सुनाएगी.’

उन्होंने कहा, ‘हाईकोर्ट के प्रशासनिक निर्देशों से स्पष्ट है कि जब तक मामला फैसले के लिए सुरक्षित न हो, हम ट्रांसफर होने तक उसी अदालत में वापस नहीं भेजेंगे. इस मामले में फैसले को सुरक्षित नहीं रखा गया है लेकिन यह निराशाजनक है. मैंने अपनी अंतिम बहस में पांच दिन लगाए और मैं दोबारा उसी तरह का प्रयास नहीं दोहरा सकती. हमने इस बहस में अपना जी-जान लगा दी थी.’

अकबर की वकील गीता लूथरा ने कहा, ‘हमें प्रतिवादी या अभियुक्त द्वारा उठाए सवालों पर अपने बचाव में जवाब देना होगा. यह बहस अंत के करीब थी लेकिन अब हमें इंतजार करना होगा कि जिला जज क्या कहते हैं.’

बता दें कि इस मामले की राउज एवेन्यू जिला कोर्ट की विशेष अदालत में सुनवाई हो रही थी. हाईकोर्ट द्वारा फरवरी 2018 में विधायकों और सांसदों के लिए समर्पित अदालत के गठन के लिए पहला प्रशासनिक आदेश फरवरी 2018 में जारी किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर सांसदों या विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए हर राज्य में विशेष अदालतें बनाने का आदेश दिया गया था.

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