प्रसार भारती ने पीटीआई के साथ संबंध ख़त्म किए, कहा- घरेलू न्यूज़ एजेंसियों से प्रस्ताव लेंगे

इस साल जून महीने में चीन के साथ सीमा पर हुए गतिरोध के बीच पीटीआई द्वारा भारत में चीन के राजदूत का इंटरव्यू करने पर सार्वजनिक प्रसारणकर्ता प्रसार भारती ने एजेंसी की कवरेज को 'देशविरोधी' क़रार देते हुए उसके साथ सभी संबंध तोड़ने की धमकी दी थी.

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इस साल जून महीने में चीन के साथ सीमा पर हुए गतिरोध के बीच पीटीआई द्वारा भारत में चीन के राजदूत का इंटरव्यू करने पर सार्वजनिक प्रसारणकर्ता प्रसार भारती ने एजेंसी की कवरेज को ‘देशविरोधी’ क़रार देते हुए उसके साथ सभी संबंध तोड़ने की धमकी दी थी.

Press Trust Of India

नई दिल्लीः समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की स्वतंत्र कवरेज पर नाखुशी जताते हुए केंद्र सरकार के स्वामित्व वाले प्रसार भारती ने न्यूज एजेंसी को पत्र लिखकर अपना सब्सक्रिप्शन रद्द कर दिया है.

प्रसार भारती ने 15 अक्टूबर को लिखे पत्र में पीटीआई को बताया कि उसके बोर्ड ने अंग्रेजी भाषा और अन्य मल्टीमीडिया सेवाओं के लिए डिजिटल सब्सक्रिप्शन हेतु सभी घरेलू समाचार एजेंसियों से नए प्रस्ताव (बोलियां) मंगवाने का फैसला किया है.

प्रसार भारती समाचार सेवा एवं डिजिटल प्लेटफॉर्म के प्रमुख समीर कुमार द्वारा हस्ताक्षर किए गए पत्र में कहा गया, ‘प्रसार भारती द्वारा अधिसूचित किए जाने के बाद पीटीआई भी इसमें हिस्सा ले सकता है.’

प्रसार भारती अपने समाचार सब्सक्रिप्शन के लिए पीटीआई को सालाना 6.85 करोड़ रुपये का भुगतान कर रहा है.

इस साल जून महीने में प्रसार भारती के वरिष्ठ अधिकारी ने लद्दाख मामले को लेकर पीटीआई की कवरेज की निंदा कर उसे देशद्रोही करार दिया था.

उस समय समीर कुमार ने पीटीआई के मुख्य विपणन अधिकारी को पत्र लिखकर एजेंसी की न्यूज कवरेज को राष्ट्रहित के लिए हानिकारक और भारत की क्षेत्रीय अखंडता को कमतर करने वाला बताया था.

पत्र में कहा गया था, ‘यह उल्लेख किया जाता है कि पीटीआई को समय-समय पर कई बार उनकी संपादकीय खामियों के बारे में बताया गया, जिस वजह से गलत खबरों का प्रसार हुआ और इससे जनहित को हानि पहुंची.’

बता दें कि पीटीआई देशभर में संवाददाताओं और फोटोग्राफरों का एक बड़ा नेटवर्क है और इसकी सेवाओं को देश में सभी प्रमुख समाचार संगठनों के लिए अनिवार्य समझा जाता है.

प्रसार भारती दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो का संचालन करता है और ये दोनों प्रसारक लंबे समय से पीटीआई की वायर सेवाओं के सब्सक्राइबर रहे हैं.

प्रसार भारती के बोर्ड ने एक अन्य एजेंसी यूएनआई की सदस्यता को भी समाप्त करने का फैसला किया है. हालांकि घरेलू एजेंसियों से नए प्रस्ताव मंगाने के उनके फैसले को पीटीआई को निशाना बनाने के तौर पर देखा जा रहा है.

क्यों मायने रखता है पीटीआई

सरकार के लिए पीटीआई कवरेज का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि एजेंसी की रिपोर्ट्स बड़े पैमाने पर ऐसे कई अख़बार और टीवी स्टेशन लेते हैं, जिनका सूचना के लिए खुद का कोई स्रोत नहीं है.

इसकी संपादकीय स्वतंत्रता के बावजूद पीटीआई के केंद्र में रही हर सरकार के साथ बेहतरीन कामकाजी संबंध रहे. लंबे समय तक पीटीआई सभी तरह के आधिकारिक संवाद के लिए पहली पसंद रही है.

साल 2014 से हालांकि वरिष्ठ मंत्रियों के साथ संबंध थोड़े खट्टे होना शुरू हुए. बड़े पैमाने पर संघ परिवार के लोग पीटीआई की कवरेज स्वतंत्रता को लेकर नाराज थे.

हालांकि, मोदी सरकार ने संवाद के लिए अधिकतर तौर पर निजी समाचार एजेंसी एएनआई को तरजीह दी. दूरदर्शन के अलावा अक्सर उन्हें (एएनआई) को प्रधानमंत्री के भाषणों को प्रसारित करने के लिए चुना गया.

हालांकि भारतीय मीडिया द्वारा पीटीआई को अभी भी समाचार के लिए पहली पसंद समझा जाता है.

पीटीआई पर सरकार की तरफ से पहला आधिकारिक दबाव 2016 में उस समय डाला गया, जब प्रसार भारती ने एकतरफा घोषणा कर कहा कि वह पीटीआई को इसकी 9.15 करोड़ रुपये की वार्षिक सदस्यता फीस का सिर्फ 75 फीसदी ही भुगतान करेगा.

यह कदम ऐसे समय में आया था, जब मोदी सरकार पीटीआई के संपादक के रूप में अपने उम्मीदवार को पेश करने के प्रयासों में असफल रही थी. तब पीटीआई के बोर्ड ने दिवंगत मंत्री अरुण जेटली की ओर से सुझाए गए तीनों को दरकिनार कर एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के वरिष्ठ पत्रकार विनय जोशी को एजेंसी के निवर्तमान संपादक एमके राजदान की जगह नया संपादक चुना था.

राजदान ने पीटीआई का स्वतंत्र तरीके से संचालन किया. वहीं, विनय जोशी को भी बिना किसी राजनीतिक पक्षपात के पेशेवर तरीके से समाचार एजेंसी को चलाने के लिए जाना जाता है.

पीटीआई बोर्ड के चेयरमैन होरमूसजी कामा ने 2016 में द वायर को बताया था, ‘पीटीआई में हम स्वतंत्रता को महत्व देते हैं और इसका मतलब है कि हमें सभी राजनीतिक दलों से स्वतंत्र होना होगा- फिर चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा.’

सरकारी नियंत्रण रेखा पार करना

इस साल जून महीने में उस समय मामला अधिक बिगड़ा, जब सरकार पीटीआई के भारत में चीन के राजदूत और चीन में भारत के राजदूत के साक्षात्कारों से नाराज हो गई.

प्रसार भारती के एक अधिकारी ने उस समय संवाददाताओं से कहा था, ‘पीटीआई की देशविरोधी रिपोर्टिंग अब संबंधों को जारी रखने के लिए संभव नहीं है.’

सरकार को लगता है कि लद्दाख मामले पर चीनी राजदूत का साक्षात्कार नहीं लिया जाना चाहिए था.

भारतीय राजदूत विक्रम मिस्री के साथ पीटीआई के साक्षात्कार से साउथ ब्लॉक की काफी किरकिरी हुई थी क्योंकि मिस्री ने चीन की घुसपैठ पर टिप्पणी की थी और उनके इसी बयान को पीटीआई ने ट्वीट किया था.

असल में विक्रम मिस्री का यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन दावों से विपरीत था, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत की सीमा में किसी ने प्रवेश नहीं किया.

प्रसार भारती के एक अधिकारी का कहना है कि सार्वजनिक प्रसारक कई दशकों से पीटीआई को करोड़ रुपयों की वार्षिक फीस का भुगतान कर रहा है और एजेंसी 2016 से ही अपने शुल्क में संशोधन को लेकर सख्त रही है. तो अब पीटीआई के पूरे व्यवहार को देखते हुए प्रसारभारती पीटीआई से अपने संबंधों को परख रहा है और इस बारे में आखिरी निर्णय जल्द ही बताया जाएगा.’

प्रसार भारती पर पीटीआई का 11 करोड़ रुपये बकाया

प्रसार भारती के अधिकारियों ने पीटीआई के साथ संबंधों को समाप्त करने के लिए उनके फैसलों के महत्व को कम करने की मांग की थी, दोनों संगठनों के बीच 2006 से ही एडहॉक व्यवस्था थी.

द वायर  को मिली जानकारी के अनुसार इस व्यवस्था में एक वार्षिक एस्क्लेशन क्लॉज भी शामिल है, जिसका प्रसार भारती 2016 तक पालन करता रहा.

उस साल के बाद से प्रसार भारती पीटीआई को सिर्फ 75 फीसदी ही भुगतान कर रहा है. दोनों संगठनों के संबंधों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि प्रसार भारती पर पीटीआई का लगभग 11 करोड़ रुपये बकाया है.

फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि क्या प्रसार भारती इस राशि का भुगतान करेगा या पीटीआई अपने बकाये की वसूली के लिए किन कानूनी कदमों को इस्तेमाल करेगा.

द वायर  को प्राप्त जानकारी के अनुसार जो राशि प्रसार भारती एजेंसी को दे रहा था, वह पीटीआई के सब्सक्रिप्शन राजस्व का 6% है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)