वैश्विक भूख सूचकांक, 2020 में भारत पड़ोसी देशों- बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान के साथ ‘गंभीर’ श्रेणी में हैं. वहीं, नेपाल और श्रीलंका की स्थिति इन देशों की तुलना में ठीक है. सूची में ये ‘मध्यम’ श्रेणी में हैं.
नई दिल्ली: भारत वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है और भूख की ‘गंभीर’ श्रेणी में है.
विशेषज्ञों ने इसके लिए खराब कार्यान्वयन प्रक्रियाओं, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने का उदासीन दृष्टिकोण और बड़े राज्यों के खराब प्रदर्शन को दोषी ठहराया है.
भारत के साथ-साथ पड़ोसी देशों- बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान भी ‘गंभीर’ श्रेणी में हैं, लेकिन इस साल के भूख सूचकांक में भारत से ऊपर हैं.
वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) में भारत का खराब प्रदर्शन लगातार जारी है. पिछले साल 117 देशों की सूची में भारत का 102 स्थान पर था. साल 2018 के इंडेक्स में भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर था. वहीं, 2017 में इस सूचकांक में भारत का स्थान 100वां था
रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश 75वें, म्यांमार 78वें और पाकिस्तान 88वें स्थान पर हैं. वहीं, नेपाल 73वें और श्रीलंका 64वें स्थान पर हैं. दोनों देश ‘मध्यम’ श्रेणी में आते हैं.
चीन, बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत सहित 17 देश भूख और कुपोषण पर नजर रखने वाले वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) में शीर्ष पायदानों पर हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 14 फीसदी आबादी कुपोषण की शिकार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत थी. इसके अलावा ऐसे बच्चों की दर 37.4 प्रतिशत थी, जो कुपोषण के कारण बढ़ नहीं पाते.
बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के लिए 1991 से अब तक के आंकड़ों से पता चलता है कि वैसे परिवारों में बच्चों के कद नहीं बढ़ पाने के मामले ज्यादा हैं, जो विभिन्न प्रकार की कमी से पीड़ित हैं.
इनमें पौष्टिक भोजन की कमी, मातृ शिक्षा का निम्न स्तर और गरीबी आदि शामिल हैं. इस अवधि के दौरान भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी दर्ज की गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि समय से पहले जन्म और कम वजन के कारण बच्चों की मृत्यु दर विशेष रूप से गरीब राज्यों और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी है.
विशेषज्ञों का मानना है कि खराब क्रियान्वयन प्रक्रिया, प्रभावी निगरानी की कमी और कुपोषण से निपटने के लिए दृष्टिकोण में समन्वय का अभाव अक्सर खराब पोषण सूचकांकों का कारण होते हैं.
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान, नई दिल्ली में वरिष्ठ शोधकर्ता पूर्णिमा मेनन ने कहा कि भारत की रैंकिंग में समग्र परिवर्तन के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के प्रदर्शन में सुधार की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय औसत उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से बहुत अधिक प्रभावित होता है. जिन राज्यों में वास्तव में कुपोषण अधिक है और वे देश की आबादी में खासा योगदान करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘भारत में पैदा होने वाला हर पांचवां बच्चा उत्तर प्रदेश में है. इसलिए यदि उच्च आबादी वाले राज्य में कुपोषण का स्तर अधिक है तो यह भारत के औसत में बहुत योगदान देगा. स्पष्ट है कि तब भारत का औसत धीमी होगा.’
मेनन ने कहा अगर हम भारत में बदलाव चाहते हैं, तो हमें उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और बिहार में भी बदलाव की आवश्यकता होगी.
न्यूट्रीशन रिसर्च की प्रमुख श्वेता खंडेलवाल ने कहा कि देश में पोषण के लिए कई कार्यक्रम और नीतियां हैं, लेकिन जमीनी हकीकत काफी निराशाजनक है.
उन्होंने महामारी के कारण अभाव की समस्या को कम करने के लिए कई उपाय सुझाए.
उन्होंने कहा कि पौष्टिक, सुरक्षित और सस्ते आहार तक पहुंच को बढ़ावा देना, मातृ और बाल पोषण में सुधार लाने के लिए निवेश करना, बच्चे का वजन कम होने पर शुरुआती समय में पता लगाने और उपचार के साथ ही कमजोर बच्चों के लिए पौष्टिक और सुरक्षित भोजन महत्वपूर्ण हो सकते हैं.
बता दें कि वैश्विक भूख सूचकांक में देशों को चार प्रमुख संकेतकों के आधार पर रैंकिग दी जाती है- अल्पपोषण, बाल मृत्यु, पांच साल तक के कमजोर बच्चे और बच्चों का अवरूद्ध शारीरिक विकास.
यह सूचकांक वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी का आकलन करता है. भूख से लड़ने में हुई प्रगति और समस्याओं को लेकर हर साल इसकी गणना की जाती है.
वैश्विक भूख सूचकांक को भूख के खिलाफ संघर्ष की जागरूकता और समझ को बढ़ाने, देशों के बीच भूख के स्तर की तुलना करने के लिए एक तरीका प्रदान करने और उस जगह पर लोगों का ध्यान खींचना, जहां पर भारी भुखमरी है, के लिए डिजाइन किया गया है.
इसमें यह भी देखा जाता है कि देश की कितनी जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल रहा है. यानी देश के कितने लोग कुपोषण के शिकार हैं.
इसमें इस बात का भी ब्योरा होता है कि देश में पांच साल के नीचे के कितने बच्चों की लंबाई और वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है. साथ ही इसमें बाल मृत्यु दर की गणना को भी शामिल किया जाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)