ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट और बेल्जियम स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स की ओर से कहा गया है कि स्वास्थ्य संकट (महामारी) का इस्तेमाल उन लोगों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है, जिन्होंने सरकार की कार्रवाई में कमी को उजागर किया है.
नई दिल्ली: दो अंतरराष्ट्रीय प्रेस संघों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाएं कि पत्रकार उत्पीड़न और प्रतिशोध के डर के बिना काम कर सकते हैं.
बीते मंगलवार को लिखे गए अपने पत्र में ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट (आईपीआई) और बेल्जियम स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने मोदी से मांग की है कि वे राज्य सरकारों को निर्देश दें कि पत्रकारों के खिलाफ सभी आरोपों को वापस लिया जाए, जिसमें कठोर राजद्रोह कानून भी शामिल हैं. ये आरोप पत्रकारों पर उनके काम के लिए लगाए गए हैं.
पत्र में कहा गया है कि महामारी फैलने के बाद से पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है.
NEW: In joint letter to @narendramodi, IPI and @IFJGlobal urge #India to stop using sedition laws to silence journalists.
Letters follows rise in sedition cases as retaliation aginst the press in various Indian states.https://t.co/u4DE58RqXz
— IPI – The Global Network for Independent Media (@globalfreemedia) October 21, 2020
उन्होंने कहा, ‘स्वास्थ्य संकट (महामारी) का इस्तेमाल उन लोगों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है, जिन्होंने सरकार की कार्रवाई में कमी को उजागर किया है. एक सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया के लिए एक स्वतंत्र मीडिया आवश्यक है.’
उन्होंने लिखा, ‘स्वतंत्र, आलोचनात्मक पत्रकारों को परेशान करने के लिए राजद्रोह कानूनों का इस्तेमाल न केवल देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का घोर उल्लंघन है, बल्कि सरकार द्वारा आलोचनाओं को चुप कराने का प्रयास भी है. पत्रकारिता के काम को देशद्रोह या सुरक्षा व्यवस्था बिगाड़ने के रूप में नहीं देखा जा सकता है.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन लगने से लेकर 31 मई के बीच भारत में महामारी को कवर के लिए 55 पत्रकारों को निशाना बनाया गया है.’
हाल ही में बीते पांच अक्टूबर को केरल के एक पत्रकार सिद्दीकी कप्पन, जो उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में कथित बलात्कार पीड़िता के परिवार की स्टोरी करने गए थे, को गिरफ्तार किया गया और उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया. इसके बाद छह अक्टूबर को केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने कप्पन की गिरफ्तारी के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की. कप्पन यूनियन की दिल्ली इकाई के सचिव हैं.
इसी तरह मई महीने में एक गुजराती समाचार पोर्टल ‘फेस ऑफ नेशन’ के मालिक और संपादक धवल पटेल पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था. उन्होंने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि राज्य की राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन हो सकता है.
पटेल पर आपदा प्रबंधन अधिनियम (डीएमए) की धारा 54 के तहत झूठी खबरें फैलाने का भी आरोप लगाया गया था. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने 13 मई को अपने एक बयान में इस मुद्दे को उठाया, जिसमें राजद्रोह और आईपीसी के अलावा विशेष कानूनों के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की गई थी.
एक अन्य मामले में नामी पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल पुलिस द्वारा राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है. यह मामला दुआ की एक वीडियो के आधार पर दर्ज की गई थी, जिसमें उन्होंने कोविड-19 संक्रमण बढ़ने के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी की थी.
मालूम हो कि दुनियाभर में स्वतंत्र पत्रकारिता की पैरवी करने वाले संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के इस साल जारी हुए वार्षिक विश्लेषण में वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत दो पायदान लुढ़क गया है और इसे 180 देशों में से 142वां स्थान मिला है. पिछले साल भारत 140वें स्थान पर था.
रिपोर्ट में कहा गया था कि लगातार स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया, जिनमें पत्रकारों के खिलाफ पुलिसिया हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमला, बदमाशों एवं भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा बदले में हिंसा आदि शामिल हैं.