वकील दुष्यंत दवे ने पत्र लिखकर पूछा, अर्णब गोस्वामी की याचिका पर तत्काल सुनवाई क्यों?

दुष्यंत दवे के इस पत्र पत्र अर्णब गोस्वामी की पत्नी ने भी पत्र लिखकर आरोप लगाया कि वह उन्हें निशाना बना रहे हैं. उन्होंने पत्रकार विनोद दुआ और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के मामलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये मामले तत्काल सूचीबद्ध किए गए थे, लेकिन दुष्यंत दवे ने इन पर कोई टिप्पणी नहीं की थी.

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दुष्यंत दवे. (फोटो साभार: मंथन संवाद)

दुष्यंत दवे के इस पत्र पत्र अर्णब गोस्वामी की पत्नी ने भी पत्र लिखकर आरोप लगाया कि वह उन्हें निशाना बना रहे हैं. उन्होंने पत्रकार विनोद दुआ और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के मामलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये मामले तत्काल सूचीबद्ध किए गए थे, लेकिन दुष्यंत दवे ने इन पर कोई टिप्पणी नहीं की थी.

दुष्यंत दवे. (फोटो साभार: मंथन संवाद)
दुष्यंत दवे. (फोटो साभार: मंथन संवाद)

नई दिल्ली: वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को कड़े शब्दों में पत्र लिखकर पूछा है कि रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की याचिकाएं तुरंत सुनवाई के लिए कैसे सूचीबद्ध कर दी जाती हैं?

दवे ने विरोध जताते हुए पत्र में कहा है कि जब पहले से ही इस तरह की कई याचिकाएं लंबित हैं, ऐसे में गोस्वामी की याचिका को सुनवाई के लिए किस आधार पर तत्काल आगे बढ़ा दिया जाता है. उन्होंने सवाल किया कि क्या ऐसा करने के लिए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने स्वयं विशेष निर्देश दिया है?

वरिष्ठ वकील ने लिखा, ‘जब हजारों लोग लंबे समय से जेलों में बंद हैं और उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में कई हफ्तों और महीनों से सुनवाई नहीं हुई है, ऐसे में ये बेहद चिंताजनक है कि कैसे और किस तरह से गोस्वामी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दी जाती है. क्या इसे लेकर मास्टर ऑफ रोस्टर और मुख्य न्यायाधीश की ओर से कोई विशेष आदेश या निर्देश दिया गया है?’

रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी ने बीते मंगलवार (10 नवंबर) को सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर कर बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें न्यायालय ने दो लोगों की आत्महत्या से जुड़े एक मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था.

खास बात ये है कि इस याचिका को सुनवाई के लिए अगले ही दिन (11 नवंबर) के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया. इसी के चलते दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट महासचिव को पत्र लिखा है और सवाल उठाया है कि आखिर ये कैसे किया गया?

दवे ने रजिस्ट्रार पर भी सवाल उठाया है और पूछा है कि क्या वे मुख्य न्यायाधीश की जानकारी के बिना गोस्वामी को ये तरजीह दे रहे हैं?

सुप्रीम कोर्ट महासचिव को लिखे पत्र में उन्होंने कहा, ‘यह सबको पता है कि इस तरह मामलों की तत्काल सुनवाई मुख्य न्यायाधीश के विशेष आदेश के बिना नहीं हो सकती है. या फिर प्रशासनिक मुखिया के रूप में आप या रजिस्ट्रार गोस्वामी को विशेष तरहजीह दे रहे हैं?’

पी. चिदंबरम के आईएनएक्स मीडिया मामले से गोस्वामी केस की तुलना करते हुए दुष्यंत दवे ने कहा कि पी. चिदंबरम जैसे वरिष्ठ वकील को भी अपनी जमानत याचिका पर तत्काल सुनवाई नहीं मिल पाई थी और उन्हें कई महीने जेल में बिताने पड़े थे, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए.

दवे ने कहा कि यहां पर गंभीर मुद्दा ये है कि कोरोना महामारी के पिछले आठ महीनों में रजिस्ट्री चुनिंदा अंदाज में मामलों को सूचीबद्ध करने में लगा हुआ है.

इस पत्र के सार्वजनिक होने के कुछ देर बाद अर्णब गोस्वामी की पत्नी सम्यब्रता राय गोस्वामी ने पलटवार करते हुए एक पत्र लिखा और आरोप लगाया कि दवे उन्हें निशाना बना रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट महासचिव को लिखे पत्र में उन्होंने कहा, ‘मैं दवे का पत्र पढ़कर अचंभित और डरी हुई हूं. न तो मैं दवे को जानती हूं और न ही उनसे कभी मिली हूं. हालांकि दवे द्वारा मेरे पति की याचिका को निशाना बनाने का मेरे द्वारा विरोध किया जाएगा, जैसा कि उन्होंने उन अन्य मामलों पर नहीं बोला, जब न्यायालय ने अपनी समझ के आधार पर अतीत में तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.’

सम्यब्रता ने कहा कि दवे का कदम न सिर्फ अर्णब गोस्वामी के मामले को प्रभावित करेगा, बल्कि यह अवमाननाकारी भी है, क्योंकि यह न्याय के प्रशासन में दखलअंदाजी है.

उन्होंने अगस्त 2019 के रोमिला थापर मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि यह केस जिस दिन दायर किया गया था, उसी दिन सूचीबद्ध किया गया और दवे ने थापर की पैरवी की थी.

इसके अलावा उन्होंने पत्रकार विनोद दुआ और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि ये मामले तत्काल सूचीबद्ध किए गए थे, लेकिन दुष्यंत दवे ने इन पर कोई टिप्पणी नहीं की थी.

अपने पत्र में सम्यब्रता गोस्वामी ने कहा कि दवे ने देश के सर्वोच्च न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ बयान देकर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास किया है.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने वाले मामले में बुधवार को अर्णब गोस्वामी एवं दो अन्य आरोपियों को अंतरिम जमानत दे दी.