मोदी सरकार प्रेस की आज़ादी बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध, इसकी आवाज़ कुचलने वालों के ख़िलाफ़: अमित शाह

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत शीर्ष नेताओं ने स्वतंत्र प्रेस को ‘लोकतंत्र की आत्मा’ बताया और कहा कि प्रेस की आज़ादी पर किसी भी प्रकार का हमला राष्ट्रीय हितों के लिए नुकसानदेह है और हर किसी को इसका विरोध करना चाहिए.

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(प्रतीकात्मक फोटो: द वायर)

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत शीर्ष नेताओं ने स्वतंत्र प्रेस को ‘लोकतंत्र की आत्मा’ बताया और कहा कि प्रेस की आज़ादी पर किसी भी प्रकार का हमला राष्ट्रीय हितों के लिए नुकसानदेह है और हर किसी को इसका विरोध करना चाहिए.

(फोटो: द वायर)
(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: स्वतंत्र प्रेस को ‘लोकतंत्र की आत्मा’ बताते हुए सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत शीर्ष नेताओं ने कोविड-19 महामारी के दौरान अग्रिम योद्धा की तरह कार्य करने के लिए मीडियाकर्मियों की सराहना की.

राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर अपने संदेश में विभिन्न नेताओं ने कहा कि प्रेस की आजादी पर किसी भी प्रकार का हमला राष्ट्रीय हितों के लिए नुकसानदेह है और हर किसी को इसका विरोध करना चाहिए .

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने महामारी के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मीडिया की सराहना की वहीं उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू और केंद्रीय मंत्री अमित शाह और प्रकाश जावड़ेकर ने देश में प्रेस की आजादी की महत्ता पर जोर दिया और इस पर हमला करने वालों की आलोचना की.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर पत्रकारों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार प्रेस की आजादी बनाए रखने और इसकी आवाज को कुचलने वालों का मुखरता से विरोध करने के प्रति कटिबद्ध है.

शाह ने ट्वीट किया, ‘नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार प्रेस की आजादी बनाए रखने और इसकी आवाज को कुचलने वालों का मुखरता से विरोध करने के लिए प्रतिबद्ध है. मैं कोविड-19 के दौरान उल्लेखनीय भूमिका के लिए मीडिया की सराहना करता हूं.’

वहीं, अपने लिखित संदेश में राष्ट्रपति ने प्रिंट मीडिया का विनियमन करने वाली भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) की भी प्रेस की आजादी की रक्षा करने को लेकर प्रशंसा की.

उन्होंने कहा, ‘करीब 55 साल से अपनी सेवा दे रही पीसीआई उत्कृष्ट पत्रकारिता सुनिश्चित करते हुए प्रेस की आजादी की सुरक्षा के लिए प्रहरी बनी रही है. हमारे लोकतंत्र की कार्यप्रणाली में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है.’

राष्ट्रपति ने कहा, ‘कोविड-19 से जुड़े मुद्दों से निपटने के तहत मीडिया ने लोगों को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाई है और इस तरह, उसने इस महामारी का प्रभाव कम करने में मदद की है.’

उन्होंने कहा, ‘मीडियाकर्मी अग्रिम मोर्चे के कोरोना योद्धाओं में शामिल हैं. पीसीआई के माध्यम से मैं ऐसे मीडियाकर्मियों की प्रशंसा करता हूं.’

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी कहा कि प्रेस की आजादी पर कोई भी हमला राष्ट्रहित के लिए विनाशकारी है और उसका सभी लोगों द्वारा विरोध किया जाना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र बिना स्वतंत्र एवं निर्भीक प्रेस के फल-फूल ही नहीं सकता.

उन्होंने पीसीआई द्वारा आयोजित वेबिनार में अपने वीडियो संदेश में यह बात कही.

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘लोकतंत्र को सशक्त बनाने तथा संवैधानिक कानून के शासन को मजबूत बनाने के लिए एक सशक्त, स्वतंत्र और जीवंत मीडिया, स्वतंत्र न्यायपालिका की तरह ही महत्वपूर्ण है.’

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लिखित संदेश में कहा कि चाहे सकारात्मक तरीके से आलोचना हो या सफलता की गाथा का उल्लेख, मीडिया भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को लगातार मजबूत करने का काम कर रहा है.

पीसीआई द्वारा आयोजित वेबिनार में प्रधानमंत्री का संदेश पीसीआई के अध्यक्ष सीके प्रसाद ने पढ़ा.

इसमें प्रधानमंत्री द्वारा कहा गया, ‘वृहद फायदे के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर जन जागरूकता पैदा करने से लेकर समाज में व्यवहारगत बदलाव लाने के लिए हमने देखा कि मीडिया ने किस तरह सरकार के प्रयासों को आगे बढ़ाने में मूल्यवान हितधारक की भूमिका अदा की. पिछले कुछ वर्षों में जन भागीदारी बढ़ाने के लिए स्वच्छ भारत तथा जल संरक्षण जैसे कई अभियानों में भी उसने मदद की है.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे समय में जब कोविड-19 के चलते दुनिया अप्रत्याशित संकट का सामना कर रही है, महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई में उसके 130 करोड़ नागरिकों ने अपनी दृढ़ता और संकल्प को दिखाया है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसी स्थिति में मीडिया कोविड-19 को लेकर जागरूकता फैलाकर असाधारण सेवा कर रहा है.

प्रेस की आजादी को लोकतंत्र की आत्मा बताते हुए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि आजादी के साथ जिम्मेदारी की भी भावना आती है.

अपने वीडियो संदेश में जावड़ेकर ने कहा, ‘प्रेस की आजादी लोकतंत्र की आत्मा है. प्रेस की आजादी महत्वपूर्ण है लेकिन किसी भी आजादी के साथ जिम्मेदारी भी आती है . इसलिए प्रेस द्वारा जिम्मेदारी से आजादी का निर्वहन होना चाहिए और खबरों को सनसनीखेज बनाए जाने से दूर रहना चाहिए. किसी भी खबर से किसी को जानबूझकर बदनाम नहीं करना चाहिए. इन दिनों प्रेस की आजादी पर जिस तरह हमले हो रहे हैं, वह ठीक नहीं है.’

कुछ न्यूज चैनलों द्वारा टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) के साथ कथित हेराफेरी पर जावड़ेकर ने कहा कि मंत्रालय की एक कमेटी जल्द ही इन मुद्दों पर अपनी रिपोर्ट देगी.

जावड़ेकर ने टीवी चैनलों के लिए नियामकीय संस्था की गैरमौजूदगी के मुद्दे पर भी चर्चा की और कहा कि उनके लिए आचार संहिता लाने का फैसला किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘भारतीय प्रेस परिषद स्व नियामक संस्था है जिसमें विभिन्न मीडिया संस्थानों और संसद के भी प्रतिनिधि हैं. पीसीआई को और ताकत देने पर चर्चा हुई है.’

मंत्री ने कहा, ‘लेकिन टीवी चैनलों के लिए पीसीआई जैसी स्वनियामक संस्था नहीं है. हम सभी टीवी चैनलों के लिए आचार संहिता लाने पर सुझाव ले रहे हैं लेकिन इस पर अभी फैसला नहीं हुआ है.’

साथ ही कहा कि सरकार दखल नहीं देना चाहती है लेकिन प्रेस को जिम्मेदार पत्रकारिता का उदाहरण पेश करना चाहिए.

भारत में प्रेस की आज़ादी की स्थिति

देश के शीर्ष नेताओं द्वारा स्वतंत्र प्रेस की पैरवी और गृह मंत्री के इसे बचाने के दावे ऐसे समय में किए जा रहे हैं जब पत्रकारों और मीडिया को निशाना बनाने को लेकर केंद्र समेत कई राज्यों- खासकर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार सवालों के घेरे में हैं.

बीते अक्टूबर महीने में दो अंतरराष्ट्रीय प्रेस संघों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाएं कि पत्रकार उत्पीड़न और प्रतिशोध के डर के बिना काम कर सकते हैं.

इस पत्र में ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट (आईपीआई) और बेल्जियम स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने मोदी से मांग की है कि वे राज्य सरकारों को निर्देश दें कि पत्रकारों के खिलाफ सभी आरोपों को वापस लिया जाए, जिसमें कठोर राजद्रोह कानून भी शामिल हैं. ये आरोप पत्रकारों पर उनके काम के लिए लगाए गए हैं.

पत्र में कहा गया है कि महामारी फैलने के बाद से पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है. 

राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 25 मार्च से हुए देशव्यापी लॉकडाउन लगने से लेकर मई केअंत तक भारत में महामारी को कवर करते हुए 55 पत्रकारों को निशाना बनाया गया.

रिपोर्ट में कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के दौरान 25 मार्च से 31 मई 2020 के बीच विभिन्न पत्रकारों के ख़िलाफ़ 22 एफआईआर दर्ज की गईं, जबकि कम से कम 10 को गिरफ़्तार किया गया. इस अवधि में मीडियाकर्मियों पर सर्वाधिक 11 हमले उत्तर प्रदेश में हुए.

हाल ही में बीते अक्टूबर को केरल के एक पत्रकार सिद्दीकी कप्पन, जो उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में कथित बलात्कार पीड़िता के परिवार को लेकर रिपोर्ट करने जा रहे थे, को गिरफ्तार किया गया था और उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है.

इसके बाद छह अक्टूबर को केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने कप्पन की गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की. कप्पन यूनियन की दिल्ली इकाई के सचिव हैं.

सोमवार को इस मामले की सुनवाई के बाद शीर्ष न्यायलय ने यूपी सरकार को नोटिस भेजा है.

इससे पहले मई महीने में एक गुजराती समाचार पोर्टल ‘फेस ऑफ नेशन’ के मालिक और संपादक धवल पटेल पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था. उन्होंने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि राज्य की राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन हो सकता है. 

बीते दिनों बिना शर्त माफ़ी मांगने पर गुजरात हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले को रद्द करने का आदेश दिया था.

इसी तरह एक अन्य मामले में नामी पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल पुलिस द्वारा राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है.

यह मामला दुआ की एक वीडियो के आधार पर दर्ज की गई थी, जिसमें उन्होंने कोविड-19 संक्रमण बढ़ने के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी की थी.

इसी तरह इस साल की शुरुआत में जम्मू कश्मीर पुलिस ने कश्मीर के दो पत्रकारों पर कठोर यूएपीए कानून के तहत मामला दर्ज किया था.

कश्मीर की फोटो पत्रकार मसरत ज़हरा पर एक फेसबुक पोस्ट के चलते देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था.

उल्लेखनीय है कि यूएपीए एक आतंकरोधी कानून है, जिसके तहत दोषी पाए जाने पर सात साल तक की सजा का प्रावधान है.

26 वर्षीय ज़हरा एक स्वतंत्र फोटो पत्रकार हैं और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समाचार संगठनों में के साथ काम करती हैं. उनके द्वारा ली गई तस्वीरें वाशिंगटन पोस्ट, अल जज़ीरा, कारवां और कई अन्य प्रकाशनों में प्रकाशित हुई हैं.

इसके अलावा द हिंदू के पत्रकार पीरज़ादा आशिक पर एक रिपोर्ट के चलते यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था.

पुलिस का कहना था कि उनकी खबर फर्जी है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इन दोनों पत्रकारों के खिलाफ दर्ज हुए केस की कड़ी निंदा की थी.

मालूम हो कि दुनियाभर में स्वतंत्र पत्रकारिता की पैरवी करने वाले संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के इस साल जारी हुए वार्षिक विश्लेषण में वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत दो पायदान नीचे आ गया था.

दुनिया भर के 180 देशों में भारत पड़ोसी देशों नेपाल, भूटान और श्रीलंका से नीचे 142वां स्थान मिला था, जबकि पिछले साल यह 140वें स्थान पर था.

रिपोर्ट में कहा गया था कि लगातार स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया, जिनमें पत्रकारों के खिलाफ पुलिसिया हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमला, बदमाशों एवं भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा बदले में हिंसा आदि शामिल हैं.

प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट में कहा गया था कि 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा के दोबारा सत्ता में आने पर पत्रकारों की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)