सुदर्शन टीवी का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित, इसलिए इससे ख़ुद को अलग कर रहे: दिल्ली हाईकोर्ट

बीते 15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक सुदर्शन टीवी के ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम के एपिसोड का प्रसारण करने पर रोक लगा दी थी. इसके एक एपिसोड के ट्रेलर में हैशटैग यूपीएससी जिहाद लिखकर नौकरशाही में मुसलमानों की घुसपैठ के षड्यंत्र का बड़ा खुलासा करने का दावा किया गया था.

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(फोटो: पीटीआई)

बीते 15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक सुदर्शन टीवी के ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम के एपिसोड का प्रसारण करने पर रोक लगा दी थी. इसके एक एपिसोड के ट्रेलर में हैशटैग यूपीएससी जिहाद लिखकर नौकरशाही में मुसलमानों की घुसपैठ के षड्यंत्र का बड़ा खुलासा करने का दावा किया गया था.

(फोटो: पीटीआई)
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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि सुदर्शन टीवी को ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम की मंजूरी केंद्र सरकार द्वारा मिलने को चुनौती देने वाली याचिका से जुड़े मुद्दे पर पहले से ही सुप्रीम कोर्ट विचार कर रही है, इसलिए वह इस मुद्दे पर सुनवाई से खुद को अलग करते हैं.

जस्टिस नवीन चावला ने इस मामले को आठ सप्ताह तक के लिए स्थगित करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा का इंतजार करने के याचिकाकर्ता के वकील का आग्रह भी नामंजूर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट बृहस्पतिवार को इस मामले की सुनवाई कर सकती है.

इसके बाद याचिकाकर्ताओं (जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पूर्व और मौजूदा छात्रों) के वकील ने कहा कि वह याचिका वापस लेंगे और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.

अदालत ने कहा, ‘याचिका वापस ली गई, इसलिए खारिज की जाती है.’

याचिका में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ को मंजूरी दिए जाने के फैसले को चुनौती दी गई थी.

सैयद मुज्तबा अतहर और रितेश सिराज की याचिका में दावा किया गया है कि प्रस्तावित शो में घृणा से लबरेज बयान भरे पड़े हैं और उसमें याचिकाकर्ताओं को बदनाम किया गया है और अगर यह मौजूदा याचिका पर कार्यक्रम के प्रसारण से पहले फैसला नहीं आता है तो उन्हें बेहद नुकसान पहुंचेगा और याचिका का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

याचिका में कहा गया कि मंत्रालय इस प्रस्तावित शो को रोकने के लिए केबल टीवी अधिनियम के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने से परहेज कर रहा है.

गौरतलब है कि ‘बिंदास बोल’ सुदर्शन न्यूज चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके का शो है. अगस्त के आखिरी सप्ताह में जारी हुए इसके एक एपिसोड के ट्रेलर में चव्हाणके ने हैशटैग यूपीएससी जिहाद लिखकर नौकरशाही में मुसलमानों की घुसपैठ के षड्यंत्र का बड़ा खुलासा करने का दावा किया था.

इस शो का प्रसारण 28 अगस्त को रात आठ बजे होना था, लेकिन जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने उसी दिन इस पर रोक लगा दी थी.

इसके बाद 9 सितंबर को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने चैनल को कार्यक्रम के प्रसारण की अनुमति दे दी थी, जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे नोटिस भेजा था, लेकिन मंत्रालय ने प्रसारण रोकने से इनकार कर दिया था.

इसके बाद इस कार्यक्रम के प्रसारण के बारे में शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ता के वकील ने इस कार्यक्रम के प्रसारण पर अंतरिम रोक लगाने सहित कई राहत मांगी थी.

15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक चैनल द्वारा ‘बिंदास बोल’ के एपिसोड का प्रसारण करने पर रोक लगा दी थी. कोर्ट का यह भी कहना था कि यह कार्यक्रम पहली नजर में ही मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाला लगता है.

15 सितंबर की सुनवाई के दौरान अदालत ने मीडिया रिपोर्टिंग और स्व-नियमन की बात भी उठाई थी, जिसके जवाब में 17 तारीख की सुनवाई में सरकार का कहना था कि पहले डिजिटल मीडिया का नियमन होना चाहिए, प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए पर्याप्त नियमन मौजूद हैं.

इसके बाद 18 सितंबर को सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘सुप्रीम कोर्ट का किसी चीज पर रोक लगाना न्यूक्लियर मिसाइल की तरह है, लेकिन हमें आगे आना पड़ा क्योंकि किसी और द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही थी.’

इसके बाद 26 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि सुदर्शन टीवी को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय आदेश के साथ तैयार है. सुदर्शन टीवी को यह नोटिस अंतर मंत्रालयी समूह की सिफारिश पर जारी किया गया था, जिसने चैनल के ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम की सभी कड़ियों को देखा था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)